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कभी रहा गुलजार, अब हुआ वीरान
दुखद. औरंगाबाद सरकारी बस डिपो की स्थिति बदहाल हाल िबहार राज्य पथ परिवहन के कार्यालय व डिपो का हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था.मेरी कश्ती डूबी वहां, जहां पानी कम था. यह शेर राज्य पथ परिवहन विभाग पर के औरंगाबाद कार्यालय पर सटीक बैठता है. कभी बसों के आवागमन व यात्रियों […]
दुखद. औरंगाबाद सरकारी बस डिपो की स्थिति बदहाल
हाल िबहार राज्य पथ परिवहन के कार्यालय व डिपो का
हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था.मेरी कश्ती डूबी वहां, जहां पानी कम था. यह शेर राज्य पथ परिवहन विभाग पर के औरंगाबाद कार्यालय पर सटीक बैठता है. कभी बसों के आवागमन व यात्रियों से सरकारी बस डिपो गुलजार रहता था. रात में बस डिपो रोशनी से चकाचौंध रहता था. टिकट काउंटर पर यात्रियों की लंबी कतार में लगी रहती थी. लेकिन, आज यहां वीरानी छायी हुई है, जो इस बात की गवाह की अब पहलेवाली बात नहीं.
औरंगाबाद (ग्रामीण) : औरंगाबाद शहर में कई एकड़ में फैले सरकारी बस डिपो की स्थिति पूरी तरह जर्जर हो गयी है. पैसेंजर पड़ाव, टिकट काउंटर, गार्ड रूम व वर्कशॉप से लेकर लगभग सभी कमरे ध्वस्त हो चुके हैं. भवन के नाम पर जो बचा है, उसमें किसी तरह राज्य पथ परिवहन विभाग का कामकाज चल रहा है. बस डिपो की चहारदीवारी भी टूट चुके हैं या असामाजिक तत्वों को तोड़ दिया गया है. कमरों की खिड़की, किवाड़ व लोहे की ग्रिल चोरी कर लिये गये. अब तो यहां नशेड़ियों व जुआड़ियों का अड्डा लगा रहता है. असामाजिक तत्वों के लोग बैठ कर योजना बनाते रहते हैं. इनसे बस डिपो के कर्मचारियों को भी खतरा है, लेकिन कर्मचारियों की सुनेगा कौन.
वह गुहार लगा कर थक जो चुके है. वैसे बस डिपों में कर्मचारियों का अभाव है. हालांकि, डिपो में वाहन ही नहीं हैं, तो कर्मचारी क्या करेंगे. कभी कर्मचारियों की संख्या सैकड़ों में थी, पर आज मात्र 17 रह गयी है. अब इसमें दोष, विभाग का है या विभाग के कर्मचारियों का. इससे यात्रियों को कोई लेना-देना नहीं है. जब व्यवस्था ही नहीं है, तो कर्मचारी क्या करेंगे. यह एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब वर्षों से ढूंढा जा रहा है.
बुडको से कुछ हद तक मिली राहत
वर्ष 1980 के पहले बस डिपो से सूबे के विभिन्न जिलों के लिए बसे खुला करती थीं. इसके बाद व्यवस्था में गड़बड़ी आयी. 10 साल के भीतर निगम की बसें व भवन जर्जर होते चले गये. इक्के-दुक्के वाहन ही रह गये, जो कम दूरी के लिए खुलने लगे. अभी परिवहन निगम के पास मात्र दो बसें हैं, वे भी 12 साल पुराने, जो प्रतिदिन रांची के लिए खुलती हैं. एक बस से लगभग 12 हजार रुपये निगम को प्राप्त होते हैं. उसमें आठ हजार रुपये खर्च हो जाते हैं.
यानी कि दो बसों से विभाग को आठ हजार मिलते हैं, जबकि विभागीय खर्च लाखों में है. ताज्जुब की बात तो यह है कि जो वाहन चलती हैं, उनमें चालक ही खलासी व कंडक्टर होता है, यानी कि चालक के भरोसे ही वाहन रांची की दूरी तय करते हैं. वर्कशॉप में चार बसे वर्षों से खराब पड़ी हैं. स्थिति यह है कि खराब पड़े वाहनों की मरम्मत भी नहीं हो सकती है. ऐसे में बुड़को ने निगम को राहत पहुंचायी है. सुबह साढ़े छह बजे से लेकर छह बजे शाम तक, हर घंटे बुड़को की गाड़ी बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के अधीन चलती है. वह भी सिर्फ गया के लिए. अन्य जगहों के लिए बस सेवा नहीं है.
पांचवें वेतन आयोग ने कर्मचारियों को दिया सुकून
औरंगाबाद में कार्यरत बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के कर्मचारियों को एक दिसंबर से पांचवें वेतन का लाभ मिलना शुरू हो गया है. इस वेतन ने कर्मचारियों को सुकून दिया है. पांच हजार से आठ हजार के बीच वेतन पानेवाले कर्मचारी अब 20 से 22 हजार तक वेतन उठा रहे है.
सबसे बड़ी बात यह है कि अभी सातवें वेतन की सिफारिश हुई है. बहुत जल्द सरकारी कर्मचारियों को इस वेतन का लाभ मिलना शुरू हो जायेगा, लेकिन इस वेतन का लाभ पाने के लिए परिवहन विभाग के कर्मचारियों को लंबी लड़ाई लड़नी होगी, क्योंकि लड़ाई के बाद ही पांचवें वेतन का लाभ मिलना शुरू हुआ है. अभी छठा वेतनमान भी बाकी है.
कई बार लिखा, पर नहीं बदली व्यवस्था
बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के बस डिपो सुपरिटेंडेंट कमर इमाम कहते है कि निगम की स्थिति बदतर है. डिपो की चहारदीवारी को असामाजिक तत्वों ने ध्वस्त कर दिया.
यहां तक कि ईंट भी उठा ले गये. कई समान की चोरी कर ली गयी. कर्मचारियों को हमेशा भय बना रहता है. चहारदीवारी निर्माण व व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए कई बार विभाग को पत्र लिखा, लेकिन व्यवस्था में बदलाव नहीं हुआ. वाहनों का तो अभाव है. कर्मचारी भी नहीं हैं. डिपो का भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है. जरूरत है विभागीय पहल की.
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