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और पुत्र के शव लेने पहुंचे साधू के वेश में

और पुत्र के शव लेने पहुंचे साधू के वेश में बिहारी के शव देखते ही फफक पड़े पिता व ग्रामीणमुठभेड़ में मारे गये बिहारी के पिता थे होमगार्ड के जवान (फोटो नंबर-21)कैप्शन- मायूषी हालात में बैठे नक्सली बिहारी के पिता जनार्दन यादव व अन्य केशव कुमार सिंहऔरंगाबाद (नगर) जिसके पिता वर्षों तक पुलिस के रूप […]

और पुत्र के शव लेने पहुंचे साधू के वेश में बिहारी के शव देखते ही फफक पड़े पिता व ग्रामीणमुठभेड़ में मारे गये बिहारी के पिता थे होमगार्ड के जवान (फोटो नंबर-21)कैप्शन- मायूषी हालात में बैठे नक्सली बिहारी के पिता जनार्दन यादव व अन्य केशव कुमार सिंहऔरंगाबाद (नगर) जिसके पिता वर्षों तक पुलिस के रूप में सेवा दे चुके हैं और उसका पुत्र पुलिस के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए नक्सली बन कर मार जाये, तो उस पिता पर क्या बीत रहा है, यह हालात रविवार को देखने को मिला. देव प्रखंड के जंगल में शुक्रवार को पुलिस व नक्सली मुठभेड़ के दौरान मारे गये चार नक्सलियों के शवों को लेकर मुफस्सिल थाने की पुलिस पोस्टमार्टम कराने के लिए सदर अस्पताल पहुंची. उस दौरान मुठभेड़ में मारे गये एक नक्सली राजीव उर्फ बिहारी यादव के पिता साधू के वेश में पोस्टमार्टम हाउस के समीप पहुंचे. सबजोनल कमांडर रहे बिहारी के पिता जनार्दन यादव ने नम आंखों के साथ पोस्टमार्टम हाउस के पास मीडिया से बात भी की. जनार्दन ने पहले तो अपने बेटे बिहारी के शव को देखते ही फफक पड़े, फिर कुछ देर बाद धैर्य बांध कर एक चबूतरे पर बैठ गये. उनके साथ आये परिजनों व ग्रामीणों ने बताया कि जनार्दन यादव होमगार्ड के जवान थे. काफी वर्षों तक उन्होंने वायरलेस का ऑपरेट किया. इनके नाम आज तक पुलिस पदाधिकारी बड़े गर्व के साथ लेते थे. जनार्दन यादव ने कहा कि यह कभी नहीं सोचे थे कि मेरा बेटा नक्सली बनेगा और पुलिस के हाथों मारा जायेगा. उन्होंने बताया कि सात-आठ वर्ष पहले अपने परिवार से भटक कर राजीव उर्फ बिहारी यादव नक्सली संगठन से जुड़ गया था. हालांकि परिजनों ने इसे कई बार समझाने का प्रयास भी किया. लेकिन वह नहीं मान सके. यही नहीं दो ढाई वर्ष पहले शादी भी करायी, ताकि अपने परिवार के साथ रहे सके. इसके बाद वह कई बार घर आता-जाता रहा. फिर काफी दिनों से घर आना बंद कर दिया. यही कारण रहा कि बिहारी का कोई संतान नहीं हुआ. बिहारी यादव औरंगाबाद जिले के ही ढिबरा थाना के वनमंझौली गांव का रहनेवाला था. जो दो भाइयों में सबसे छोटा था. बड़ा भाई गांव पर ही रह कर खेतीबाड़ी करता है. हालांकि ग्रामीणों ने बताया कि बिहारी बचपन में काफी शांत व समाजसेवी था. कैसे रास्ता भटक गया यह किसी के गले से आवाज नहीं निकल रहा था. जबसे बिहारी नक्सली संगठन से जुड़ा था तब से उसके पिता घर छोड़ साधू के लिए सन्यास ले लिया था. बेटे के शव देखते ही पिता जनार्दन ने बताया कि हम कितना पाप किये थे कि आज बेटा के शव को देखना पड़ रहा है. हालांकि ग्रामीणों ने लगातार इन्हें ढांढ़स बांध रहे थे.

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