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रोजगारपरक की जगह सामान्य शक्षिा का केंद्र बना बेसिक स्कूल

रोजगारपरक की जगह सामान्य शिक्षा का केंद्र बना बेसिक स्कूलकबाड़खाने की शोभा बनी चरखा-तकली महात्मा गांधी की परिकल्पना पर आधारित रोजगारमुख शिक्षा पर लगा ग्रहणफोटो नंबर-39,परिचय- कबड़खाने की पड़ा चरखा- तकलीअंबा (औरंगाबाद). प्रखंड़ के रामपुर में स्थापित बेसिक स्कूल भी अब शिक्षा का सामान्य केंद्र बनकर रह गया है. इस स्कूल में अब पहले की […]

रोजगारपरक की जगह सामान्य शिक्षा का केंद्र बना बेसिक स्कूलकबाड़खाने की शोभा बनी चरखा-तकली महात्मा गांधी की परिकल्पना पर आधारित रोजगारमुख शिक्षा पर लगा ग्रहणफोटो नंबर-39,परिचय- कबड़खाने की पड़ा चरखा- तकलीअंबा (औरंगाबाद). प्रखंड़ के रामपुर में स्थापित बेसिक स्कूल भी अब शिक्षा का सामान्य केंद्र बनकर रह गया है. इस स्कूल में अब पहले की तरह बच्चों को कृषि व अन्य तकनीकों की शिक्षा नहीं दी जाती. चरखे व तकली स्कूल के कबाड़खाने में शोभा बढ़ा रहे हैं. पहले इस स्कूल में कृषि के साथ-साथ अन्य तकनीकों की शिक्षा दी जाती थी. यहां मिलनेवाली शिक्षा की बात ही कुछ और होती थी. महात्मा गांधी की परिकल्पना पर आधारित इस स्कूल में पढ़नेवाले छात्र एक ओर जहां रोजगारपरक शिक्षा ग्रहण कर व्यावहारिक जीवन में इसका उपयोग करते थे. वहीं दूसरी ओर इनमें संस्कार भी कुट-कुट कर भरा होता था, जिससे उनका सामाजिक जीवन सुखमय होता था. आज बेसिक स्कूलों में ये सारी गतिविधियां नहीं हैं.जरूरी है रोजगारपरक शिक्षा : रोजगारपरक शिक्षा छात्रों के लिए कितनी जरूरी है ये तो वे ही जानते हैं जिन्हें सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी रोजगार नहीं मिलता और वे मारे-मारे फिरते हैं. वे न घर के रह जाते हैं और न घाट के. नौकरी न मिलने की स्थिति में सामान्य शिक्षा से प्राप्त डिग्रियां किसी काम की नहीं रह जातीं और रोजगारपरक तालिम इन छात्रों को मिली नहीं. यदि इन छात्रों को भी चरखा चलाने, सूत काटने, खेती करने समेत अन्य कुटीर उद्योगों की शिक्षा दी जाती तो ये छात्र भी सड़क पर मारे फिरने को मजबूर न होते. तभी तो महात्मा गांधी ने रोजगारपरक शिक्षा की कल्पना की थी और स्कूलों में इसकी व्यवस्था की बात कही थी.उदासीनता का शिकार: प्रखंड का बेसिक स्कूल रामपुर. इस विद्यालय के पास संसाधनों का अभाव तो नहीं है, पर यह रोजगारपरक शिक्षा के प्रति उदासीनता राजकीय नीति का शिकार है. यही कारण है कि यहां की रोजगारपरक शिक्षा दम तोड़ गयी. विद्यालय के चरखा, तकली व अन्य रोजगारपरक उपकरण कबाडखाने में शोभा बढ़ा रहे हैं. इस स्कूल में पढ़े लोग बताते हैं कि पहले इस विद्यालय में आवासीय व्यवस्था होती थी और यहां रहकर छात्र सामान्य अघ्ययन के साथ-साथ नैतिक व रोजगारपरक ज्ञान अर्जित करते थे. छात्रों को चरखा चलाने, तकली चलाने, सूत बनाने समेत खेती की शिक्षा दी जाती थी. यहां तकनीक व कृषि के अलग-अलग शिक्षक होते थे. ये शिक्षक भी आवासीय होते थे. विद्यालय की व्यवस्था को बड़े प्यार से लोग आश्रम की संज्ञा देते थे. आश्रम से पास करनेवाले छात्रों में नैतिक ज्ञान कुट-कुट कर भरा होता था.बन गया सामान्य शिक्षा का केंद्र : आश्रम के नाम से जाना जानेवाला अब बना है सामान्य स्कूल प्रखंड का यह काफी पुराना स्कूल है. इसकी स्थापना 1949 में की गयी थी. स्थापना के बाद से इस शिक्षा केंद्र को लोग आश्रम के रूप में जानते थे. गुरुकुल की तरह यहां पढ़ाई की भी व्यवस्था थी, पर आज महज एक सामान्य शिक्षा का केंद्र बनकर रह गया है. यहां वर्ग एक से आठ तक की पढाई होती है. स्कूल में अब 279 छात्र हैं पर शिक्षकों की संख्या मात्र पांच है.खेत से होकर पहुंचते बच्चे : विकास की गति चाहे जितनी आगे बढ़ गयी हो पर आज भी इस स्कूल के शिक्षक व बच्चे खेत से होकर ही गुजरते हैं. गरमी के दिन में भी स्कूल तक पहुंचने के लिए कोई संपर्क पथ नहीं है. बरसात के दिनों में शिक्षक पैंट मोड़ कर व जूते-चप्पल हाथ में लेकर स्कूल तक पहुंचते हैं. अभिभावकों ने सरकार का ध्यान इस विद्यालय की ओर आकृष्ट कराया है और विद्यालय में रोजगारपरक शिक्षा शुरू कराने की मांग की है.————————-बेसिक स्कूल के हालातरोजगारपरक शिक्षा की थी यहां सुविधामहात्मा गांधी की परिकल्पना पर आधारित थी शिक्षातकनीक समेत यहां कृषि की होती थी पढ़ाईइसके लिए यहां पदस्थापित थे विशेष शिक्षक चरखा व तकली आज कबाडखाने में हैं पड़े रोजगारपरक शिक्षा पर सरकार का नहीं है ध्यानस्कूल की जमीन बांट दी गयी है गरीबों में

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