1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में इनकी भूमिका अहम रही. इस दरम्यान 22 अगस्त को उनकी गिरफ्तारी हुई और उनका घर भी जला दिया गया. इन पर कई तरह के मुकदमा चला और 20 वर्षो की सजा हुई. स्वतंत्रता के लिए वह जेल गये और वहीं 1943 में इनकी मृत्यु भी हो गयी.
सीताराम आजाद को हरिहरगंज थाना पर राष्ट्रीय पताका तिरंगा फहराने व महाराजगंज कलाली जलाने को लेकर पुलिस ने सामान के साथ इनका भी घर जला दिया था. बालेश्वर महतो ने तिरंगा फहराने, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह, विदेशी कपड़ा बहिष्कार करने का नेतृत्व किया था. इन्हीं के निर्देश पर इसी गांव के रामधनी महतो, केवल महतो, गोपी महतो, मुंगेश्वर चंद्रवंशी, प्रताप महतो, दीपा महतो, फुलमती देवी, बेचन महतो ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ी और दो-दो वर्ष को सजा भी काटे. सरडीहा निवासी उमेश्वरी चरण, उरदाना के बिगन मिश्र, 1930 के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया था. सुखदेव सिंह बड़का गांव व केशव सिंह बेदौलिया ने विदेशी कपड़ा बहिष्कार में भूमिका निभायी थी. लभरी निवासी मुरलीधर सिंह व भटकुर निवासी रामजन्म सिंह, रामकेवल सिंह, रामकिशुन राय व साड़ी निवासी दुर्योधन चौधरी इसी कड़ी में अहम भूमिका निभाये और अगस्त क्रांति में भाग लिये.
कुटुंबा के छठु तिवारी स्वतंत्रता सेनानियों को आश्रय देते थे. देशपुर के रामचंद्र सिंह व रामनरेश सिंह भी स्वतंत्रता की लड़ाई में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया. रामनंदन सिंह व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिये. सड़सा निवासी बटुक सिंह सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिये और इसके लिए उन्हें सजा भी हुई. बलिया निवासी बसंत सिंह गांधी जी के करो या मरो के आह्वान पर अगस्त क्रांति में भाग लिया. अंबा निवासी रामनरेश सिंह, गंगानारायण मेमोरियल हाइस्कूल में नेता सुभाष चंद्र बोस को माल्यार्पण किया और उनका साथ दिया.