जिले में सोन को छोड़ सूखे पड़े हैं सभी नहर, नाले, नदी व तालाब
औरंगाबाद (नगर) : जुलाई महीना खत्म होने में अब मात्र छह दिन शेष बचे हैं. जिले में अब तक पांच से 10 फीसदी ही धान की रोपनी हो सकी है. किसानों द्वारा खेतों में लगाये गये बिचड़े वर्षा के अभाव में जलने लगे हैं.
खेतों में बड़े–बड़े दरार उभर आये है. दिन में तेज धूप उग रहा है, तो रात में ओस गिर रही है. दूर–दूर तक वर्षा होने की उम्मीद नहीं दिख रही. जिले में कृषि विभाग ने एक लाख 71 हजार हेक्टेयर में धान की रोपनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. लेकिन, अब तक 10 हजार हेक्टेयर में भी रोपनी नहीं हो सकी है.
जिले के सोन नहर छोड़ कर सभी नहर नाले, नदी, सरोवर व तालाब सूखे पड़े हैं. गरमी के मौसम में खेतों में धूल उड़ रही है. यहां तक कि सोन नद में भी पर्याप्त मात्र में पानी नहीं है, जिससे किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाया जा सके. मात्र 186 एमएम ही वर्षा हुई. इससे धान की रोपनी होना संभव नहीं दिखा रहा. किसानों के समक्ष अब कोई विकल्प नहीं है.
उनके समक्ष धान की खेती के लिए कोई विकल्प नहीं है. दूसरी तरफ, सरकार या विभाग ने अब तक कोई घोषणा भी नहीं की है. कृषि विभाग के अधिकारी अब भी वर्षा होने की बात कह रहे हैं.
यानी कि सभी बिंदुओं पर गौर किया जाये व धरातल पर जाकर देखा जाये, तो इससे स्पष्ट होता है कि इस जिले में अकाल की विकराल समस्या उत्पन्न होनेवाली है. क्योंकि जिले के नवीनगर, मदनपुर, कुटुंबा, रफीगंज, देव, गोह प्रखंड के खेतों में धूल उड़ रहे हैं. एक भी प्रतिशत रोपनी नहीं हो सकी है.
औरंगाबाद, ओबरा, बारूण, दाउदनगर व हसपुरा के नहरी इलाकों में रोपनी अब जाकर शुरू हुई है. लेकिन, नहर में पर्याप्त पानी नहीं होने से किसान भगवान भरोसे खेतों में धान की फसल लगा रहे हैं.
यदि यह कहा जाये कि अकाल आ गयी, तो कोई गलत नहीं होगा. जिला कृषि पदाधिकारी शैलेंद्र कुमार ओझा ने बताया कि सुखाड़ वाले क्षेत्रों में पांच प्रतिशत व सिंचित क्षेत्र में 15 से 20 प्रतिशत धान की रोपनी हो सकी है. जब उनसे पूछा गया कि विभाग इसे अकालग्रस्त क्षेत्र क्यों नहीं घोषित करता, तो उन्होंने बताया कि वर्षा होने की उम्मीद मौसम विभाग द्वारा जतायी गयी है.
इस कारण अभी निर्णय नहीं लिया जा सका है. उन्होंने बताया कि अब तक मात्र 186 एमएम वर्षा हुई है. इस कारण धान की रोपनी गति नहीं पकड़ पा रही है.