आठवीं सदी के देव सूर्य मंदिर के अस्तित्व पर संकट !
औरंगाबाद कार्यालय : अनूठी शिल्प कला व पौराणिकता के लिए विख्यात आठवीं सदी का देव सूर्य मंदिर के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है. एक तो पूर्व से इस मंदिर के गर्भ गृह के मुख्य द्वार पर उभरी दरारें चिंता का विषय थी, वहीं बुधवार को इस मंदिर का एक उत्कृष्ट पत्थर टूट कर गिर गया.
पत्थर टूटने की घटना बुधवार को अर्थात विश्वकर्मा पूजा के दिन घटी. यह पत्थर मंदिर के पूर्वी व दक्षिणी भाग से टूटा है. इस मंदिर में पत्थर टूट कर गिरने की यह पहली घटना है. पत्थर टूट कर गिरने से इसके अस्तित्व को लेकर विभिन्न तरह की चर्चाएं भी शुरू हो गयी. हालांकि इस मामले में मंदिर न्यास समिति चुप्पी साधे है. गुरुवार को सांसद सुशील कुमार सिंह सूर्य मंदिर पहुंचे व न्यास समिति के पदाधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया.
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था और विश्वकर्मा पूजा के दिन ही मंदिर से पत्थर टूट कर गिरने की घटना को लोग कई तरह से देख रहे हैं.
देव सूर्य मंदिर की स्थापत्य कला के बारे में कई किवदंतियां हैं. सूर्य मंदिर में लगी शिला लेखों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी माना जाता है. मंदिर की स्थापत्य से प्रतीत होता है कि इसके निर्माण में नागर शैली का समायोजन किया गया है. पत्थरों पर नकासी देख कर पुरातत्व विभाग के लोग मंदिर के निर्माण में नागर व द्रविड शैली का मिश्रित प्रभाव वाली वेसर शैली का भी समन्वय बताते हैं.
मंदिर में लगे इन पत्थरों की अब तक न तो मरम्मत कराने की आवश्यकता पड़ी थी और न ही रंगरोगन किया गया था. लाखों वर्ष बीत जाने के बावजूद इनकी चमक आज भी मौजूद है. सबसे अहम बात यह है कि सूर्य मंदिर में लगे पत्थरों में से जो एक पत्थर टूट कर गिरा है, शिल्पकारों द्वारा उत्कृष्ट उस पत्थर को फिर से लगाना असंभव माना जा रहा है.
इस संबंध में मंदिर न्यास समिति के अध्यक्ष सह एसडीओ भीम प्रसाद ने बताया कि मंदिर को केमिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता है. इसकी जानकारी बिहार न्यास समिति के अध्यक्ष कुणाल किशोर को दे दी गयी है.