गौरव . जिले के साहित्यकार हक्कानी अल कासमी का किया गया चयन
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मिलेगा साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार
गौरव . जिले के साहित्यकार हक्कानी अल कासमी का किया गया चयन गुजराती उपन्यास के उर्दू अनुवाद के लिए हक्कानी अल कासमी का किया गया चयन. अररिया : जिले के साहित्यकारों व साहित्य प्रेमियों के साथ-साथ जिले वासियों के लिए एक बेहद अहम व खुश कर देने वाली खबर आयी है. राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि […]
गुजराती उपन्यास के उर्दू अनुवाद के लिए हक्कानी अल कासमी का किया गया चयन.
अररिया : जिले के साहित्यकारों व साहित्य प्रेमियों के साथ-साथ जिले वासियों के लिए एक बेहद अहम व खुश कर देने वाली खबर आयी है. राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत में अपनी विशेष पहचान बनाने वाले हक्कानी अल कासमी का चयन अब साहित्य एकेडमी पुरस्कार के लिए किया गया है. एक गुजराती उपन्यास के उर्दू अनुवाद के लिए उन्हें साहित्य एकेडमी अनुवाद पुरस्कार दिया जायेगा. ऐसा निर्णय बुधवार को दिल्ली में हुई साहित्य एकेडमी एक्जक्यूटिव कमेटी की बैठक में लिया गया.
साहित्य एकेडमी के वेबसाइट पर पुरस्कार के चयन से संबंधित दी गयी जानकारी में कहा गया है कि दिल्ली के रविन्द्र भवन में आयोजित बैठक में विभिन्न भारतीय भाषाओं की 22 पुस्तकों का चयन पर कमेटी ने अपनी स्वीकृति दे दी. जिन 22 पुस्तकों व चयन साहित्य एकेडमी अनुवाद पुरस्कार के लिए हुआ है, उन में हक्कानी अल कासमी द्वारा गुजराती से अनुवादित उपन्यास आंगलियात भी शामिल है.
वेब साइट पर उपलब्ध प्रेस नोट के मुताबिक वर्ष 2016 के अनुवाद पुरस्कार के लिए केवल उन अनुवादों पर विचार किया गया जिनका प्रकाशन एक जनवरी 2010 से 31 दिसबंर 2014 के बीच हुआ. जानकारी के मुताबिक अनुवाद करने वाले लेखक को एक विशेष समारोह के दौरान 50 हजार रुपये का नगद पुरस्कार व ताम्र पत्र दिया जायेगा. गौरतलब है कि जिले के जोकीहाट प्रखंड के बगडहरा गांव के मूल निवासी लगभग 36 वर्षीय हक्कानी अल कासमी पिछले एक दशक से अधिक समय से दिल्ली में रह कर साहित्य सृजन में अपना समय दे रहे हैं.
उन्होंने उर्दू विषय में अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय से एमए व एमफिल किया है. जिले के साहित्यकार जुबैरूल हसन गाफिल, दीन रजा अखतर, रजी अमद तनहा, रहबान अली राकेश, फरमान अली फरमान, बसंत कुमार राय आदि ने श्री हक्कानी की इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साहित्य में अपनी विशेष पहचान बनायी है. साहित्य में एक नये रूझान के अगुआ की भूमिका निभा रहे हैं. देश के बड़े साहित्यिक आलोचकों में उनका शुमार होता है.
साहित्यकारों व उनके चाहने वालों ने बताया कि कई नमाचीन अखबारों में अपनी पत्रकारिता की छाप छोड़ने के बाद वे फिलहाल दिल्ली से ही अपनी साहित्यिक पत्रिका अंदाजे बयां का संपादन कर रहे हैं. बताया गया कि केवल उर्दू ही नहीं बल्कि हिंदी, अंग्रेजी के अलावा कई विदेशी भाषा के साहित्य पर भी उनकी गहरी पकड़ है. तक्कलुफ बरतरफ, फिलिस्तीन के चार मुम्ताज शोराअ, बदन की जमालियात व अदब का कोलॉज उनकी आदि उनकी कुछ बहुत लोकप्रिय रचनाएं हैं. साथ उनकी पुस्तक रेणु के शहर में जिले की साहित्यिक विरासत की अहम दस्तावेज है.
इस संबंध में पूछे जाने पर दिल्ली से दूरभाष पर जानकारी देते हुए श्री हक्कानी ने बताया कि आंगलियात का अर्थ सौतेला होता है. इस गुजराती दलित उपन्यास के लेखक जोसेफ मकवान हैं. उर्दू अनुवाद का प्रकाशन साहित्य एकेडमी ने वर्ष 2014 में किया था. उन्होंने कहा कि वे पुरस्कार के लिए चयन होने की खबर से खुश हैं.
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