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किसानों के आत्मवश्विास में हो वृद्धि, तब पूरा होगा आच्छादन का लक्ष्य

किसानों के आत्मविश्वास में हो वृद्धि, तब पूरा होगा आच्छादन का लक्ष्यरबी फसल लगाने के समय पर किसान कर रहे हैं पलायनबैंक कर्ज चुकाने व बेटी की शादी को ले धन उपार्जन के लिए परदेश जा रहे हैं किसान व कृषक पुत्र फोटो:5- पीतांबर रायफोटो:6-भीम शंकर महतोफोटो:7-रविंद्र नाथ ठाकुरफोटो:8-गुलाब मंडल फोटो:9- कृष्णदेव झा प्रतिनिधि, अररिया […]

किसानों के आत्मविश्वास में हो वृद्धि, तब पूरा होगा आच्छादन का लक्ष्यरबी फसल लगाने के समय पर किसान कर रहे हैं पलायनबैंक कर्ज चुकाने व बेटी की शादी को ले धन उपार्जन के लिए परदेश जा रहे हैं किसान व कृषक पुत्र फोटो:5- पीतांबर रायफोटो:6-भीम शंकर महतोफोटो:7-रविंद्र नाथ ठाकुरफोटो:8-गुलाब मंडल फोटो:9- कृष्णदेव झा प्रतिनिधि, अररिया विगत वर्षों में फसल आच्छादन के बावजूद किसानों को फसलों का सही उत्पादन नहीं मिल पा रहा है. जिसका कारण है कि किसान या तो खेतों में फसल लगाने से गुरेज कर रहे हैं या फिर कम खेतों में ही फसलों का आच्छादन कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि जिले की मिट्टी में उर्वरा शक्ति कम है. भरपूर उर्वरक जमीन होने के बावजूद किसान विगत वर्षों में फसल के वाजिब उत्पादन नहीं मिल पाने के कारण हताश हो चुके हैं. आवश्यकता है उन्हें सही ऊर्जा प्रदान करने की. किसानों को मिलने वाला फसल क्षति मुआवजा हो या फिर डीजल अनुदान की राशि किसानों को ससमय नहीं मिल पाती है. अगर अनुदान का फायदा सही समय पर किसानों को मिले तो किसानों को फसल उत्पादन करने के लिए कुछ मदद अवश्य मिल पायेगी. जिनसे उनका कुछ तो भला हो सकेगा. किसान पिछले वर्ष हुई गेहूं के फसल की क्षति से ऊबर भी नहीं पाये थे कि इस वर्ष खरीफ धान की फसल भी बे मौसम बारिश के भेंट चढ़ गयी. हजारों एकड़ में लगी धान की फसल को अच्छा खासा नुकसान झेलना पड़ा. इसके बाद धान अधिप्राप्ति में हो रही देरी भी किसानों को मायूस कर रहा है. जिले कुल सिंचित भूमि के हिसाब से जिले को मिला धान अधिप्राप्ति का लक्ष्य कम है. बावजूद इसकी खरीद भी ससमय नहीं हो पा रही है. आखिर किसान क्या करे उनके समझ में नहीं आ रहा है. रबी फसल के आच्छादन के समय किसान बाहरी राज्यों को पलायन कर रहे हैं. जो कि दु:खद है. रबी फसल के आच्छादन का कितना है लक्ष्य जिले में कुल 1,36,850 हेक्टेयर भू भाग पर रबी फसलों के आच्छादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसमें दलहन के आच्छादन के लिए कुल 17700 हेक्टेयर भूमि का लक्ष्य निर्धारित है. रबी फसल के लिए जिले के 56 हजार हेक्टेयर पर गेहूं के आच्छादन का लक्ष्य है. गेहूं आच्छादन का सही समय 15 नवंबर से 15 दिसंबर को माना जाता है. लेकिन यह तिथि बीत जाने के बाद भी जिले में लक्ष्य के अनुरूप आधा हिस्से पर भी गेहूं का आच्छादन नहीं हो पाया है. हताशा: आखिर कब तक ढोयें कर्ज का भार गौरतलब है कि पिछले वर्ष बड़े पैमाने पर जिले में रबी फसलों की बरबादी के बाद किसान थोड़े हताश जरूर हैं. अररिया प्रखंड के रहिकपुर निवासी रवींद्र नाथ ठाकुर जो रबी फसलों के मौसम में खेतों में फसलों के आच्छादन करने के बजाय पंजाब जाने के लिए अररिया बस स्टैंड पहुंचे हैं उनसे बाहर जाने के सवाल पर पूछने पर उन्होंने बताया कि खेतों में फसल लगा कर बरबादी देखने से अच्छा है कि परिवार व बैंक के 50 हजार के कर्ज को चुकाने के लिए अच्छा है कि परदेस ही जा कर कमाया जाये. उन्होंने बताया कि डेढ़ बीघा खेत में गेहूं की खेती की कटाई के वक्त पता चला कि गेहूं सून हो गया. समय आने पर फिर धान की खेती की. धान रोपनी के बाद धूप की मार से पौधे झुलस गये. धान कटने के वक्त आई बरसात ने पौधे व धान की बालियों को ही नुकसान पहुंचा दिया. इस बार खेत को आधी में लगा दिया है. बैंक का कर्ज बढ़ रहा है. बेटी की शादी करनी है लड़का देख लिया है. अब बाहर नहीं जाऊंगा तो कैसे काम चलेगा. सिकटी प्रखंड के डैनिया निवासी पीतांबर राय ने बताया कि पांच एकड़ में लगी गेहूं की फसल की बालियों को पिछले वर्ष आग के हवाले करना परा. मजदूर नहीं मिल पा रहा था कि खेत से सुन पड़ चुके पौधे को काटा जाये. इसी कारण थक कर पौधे को जला देना ही मुनासिब समझा. धान की फसल बेमौसम बरसात के भेंट चढ़ गयी. इसलिए खेती करने से अच्छा है कि कोई दूसरा काम किया जाये. घर में खाने भर अनाज हो जाये तो समझुंगा ईश्वर ने रहम दिखा दिया. अररिया निवासी भीम शंकर महतो ने बताया कि पिछले वर्ष चार बीघा में लगी मकई व पांच बीघा में लगी गेहूं की फसल बरबाद हो गई. खेत में लगाये गये फसल का लागत तक नहीं निकल पाया. परेशान हूं बैंक का कर्ज बढ़ता जा रहा है. घर में बाल बच्चों की पढ़ाई लिखाई चौपट हो रही है. सरकार कृषि ऋण माफ कर दे तो कुछ राहत मिलेगी.वरना खेती को भगवान के भरोसे छोड़ कर परदेस कमाने के सिवाय दूसरा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है. कुर्साकांटा प्रखंड के मराती पुर निवासी गुलाब मंडल ने बताया कि पिछले वर्ष कृषि विभाग के निर्देश पर खेतों में गेहूं का फसल लगाया. पौधा भी जम कर आया. पौधे की हरियाली देख कर मन गद गद हो गया लेकिन कटाई का जब समय आया तो एक बारगी आयी आंधी ने सब कुछ तहस नहस कर दिया. दोबारा धान का फसल गलाया लेकिन इसका भी हश्र यही हुआ. आखिर उन्हें खेतों में हाड़ तोड़ मेहनत करने का क्या परिणाम मिला. न बच्चों को दो जून की रोटी उपलब्ध करा पा रहे हैं न ही बच्चों को अच्छी शिक्षा ही मुहैया करा पा रहे हैं.वर्ष 2014 में बड़े पैमाने पर हुई थी गेहूं फसल की क्षतिकुर्साकांटा प्रखंड के एक किसान खैसरैल निवासी कृष्णदेव झा ने खेतों में लगे गेहूं के सुन पड़ चुके फसल को मजदूर नहीं मिलने के कारण जलाने का प्रयास किया. फसल में खुद आग लगा दिया, लेकिन जब दर्द सहन नहीं हुआ तो खुद को भी फसल के साथ जला डालने की कोशिश कर डाली. परिजनों के कोहराम को सुन कर आस पास के लोगों ने उसे किसी प्रकार से बचाया. सूचना पाकर सीओ वीरेंद्र सिंह , थानाध्यक्ष विकास कुमार आजाद, कृषि समन्वयक संजय सिंह घटनास्थल पर पहुंचे व कृष्णदेव झा को धीरज बंधाया. लेकिन न तो कृष्णदेव झा की हालात सुधरी न ही उसे सरकार पर्याप्त मुआवजा ही मुहैया करा पाया. फसल के आधार पर निर्धारित मुआवजा को मुहैया कराया गया जिससे उसके फसल का लागत का मूल्य भी नहीं निकल पाया. हाल यह है कि आज भी कृष्णदेव झा हजारों के कर्ज में हैं. कहते हैं जिला कृषि पदाधिकारी जिला कृषि पदाधिकारी इंद्रजीत सिंह ने बताया कि यह सच है कि किसानों को पिछले वर्ष फसल की क्षति के दौर से गुजरना पड़ा. किसानों को सरकार के द्वारा निर्धारित मुआवजा की राशि दी गयी है. किसानों को परंपरागत कृषि से ऊपर उठना होगा. किसानों को चाहिए कि वे अपने खेतों में अलग अलग प्रकार के खेती करे अगर एक फसल नुकसान भी हो जाये तो दूसरे फसल से उसकी क्षति पूर्ति संभव हो.

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