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हौसले इनके भी, नि:शक्तता आड़े नहीं आयी मुकाम को पाने में

ताराबाड़ी / अररिया : विपरीत परिस्थितियों के बाद भी अपने जोश के दम पर जिंदगी संवारने के प्रयासों में जुटे जिले में कई ऐसे लोग मिल जाते हैं, जिन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता व नि:शक्तता को कभी अपनी सुखी जीवन के मार्ग में बाधा नहीं बनने दिया. कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने नि:शक्तता जैसे अभिशाप की […]

ताराबाड़ी / अररिया : विपरीत परिस्थितियों के बाद भी अपने जोश के दम पर जिंदगी संवारने के प्रयासों में जुटे जिले में कई ऐसे लोग मिल जाते हैं, जिन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता व नि:शक्तता को कभी अपनी सुखी जीवन के मार्ग में बाधा नहीं बनने दिया. कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने नि:शक्तता जैसे अभिशाप की परवाह किये बगैर अपनी गृहस्थी संभाली, बुजुर्ग मां-बाप को सहारा दिया.

इसके साथ ही अपने नौनिहालों की किस्मत संवारने के प्रयासों में भी जुटे हैं. तरौना भोजपुर के मुकेश मंडल का नाम भी ऐसे ही युवाओं में शामिल है. गांव के गोधनु मंडल के पुत्र मुकेश जन्म से ही दोनों पैरों से नि:शक्त हैं. शुरुआत में मुकेश के मां-पिता को उनकी नि:शक्तता की जानकारी नहीं मिल सकी.

समय बीतता गया, लेकिन खुद के पांव पर उनको खड़ा नहीं हो पाता देख मां पिता की चिंता भी बढ़ने लगी. दस वर्ष की अवस्था में मुकेश को सरकारी अस्पताल लाया गया. चिकित्सकों ने जांच के बाद पाया कि मुकेश का दोनों पैर बेकार हो चुका है. चिकित्सकों द्वारा यह जानकारी मां-पिता को दी गयी. यह सुन कर ही दोनों के होश उड़ गये.

धीरे-धीरे मुकेश भी अपनी कमियों को जान गये, लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी. नजदीकी हाई स्कूल से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की. इसके बाद अच्छे अंकों से इंटर करने में भी वे सफल रहे. नि:शक्तता के कारण मुकेश इससे आगे की पढ़ाई नहीं कर सके. उन्होंने गांव में ही रह कर ग्रामीणों की मदद करने की ठानी.

मुकेश गांव में गरीब बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे. मुकेश की मानें तो उन्हें इस काम में काफी मजा आता है. गांव के लोग हमेशा किसी ने किसी बात से उनसे मिलने आते हैं. गांव वालों के प्यार व सम्मान को ही मुकेश अपनी जीवन के सबसे बड़ी पूंजी मानते हैं. मदनपुर पूर्वी के गुलाब चंद सिंह की 16 वर्षीय पुत्री शुक्री कुमारी का एक पांव पोलियो ग्रस्त है.

बचपन में ही पोलियो ने शुक्री को अपना शिकार बना लिया था. सात साल तक तो परिवार वालों को इस बात की भनक तक नहीं लगी. पता चलने पर परिवार वालों ने उसका खूब इलाज कराया, पर शुक्री का पांव ठीक नहीं हो सका. तब तक शुक्री भी इस समस्या के साथ ही जीने की कला में माहिर हो चुकी थी. एक पैर की कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने लठ्ठे का सहारा लिया.

इसके बूते ही शुक्री घरेलू काम में अपनी मां का हाथ बंटाती और तो और वह खेत-खलियान के कार्यों सहित घर के गाय मवेशियों की देखभाल में भी पूर्णत: दक्ष हो गयी. शुक्री के अलावा उनके तीन भाई-बहन हैं. शुक्री उनके पढ़ाई के खर्च में पिता का हाथ बंटाती है. गांव के हाट बाजारों में छोटी-मोटी चीज बेच कर अपने परिवार को आर्थिक तौर पर मदद भी करती है.

गम्हरिया के 32 वर्षीय कमलानंद दास दोनों पैरों से नि:शक्त हैं. इसके बाद भी जीवन जीने के प्रति उनमें उत्साह है. नि:शक्त होने के बाद भी वे अपने बुजुर्ग मां-पिता की सेवा के प्रति तत्पर हैं. कमलानंद ने बताया कि वे सुबह उठ कर रोजमर्रा के कार्य में अपनी मां का हाथ बंटाते हैं.

परिवार के भरण पोषण के लिए कमलानंद मदनपुर बाजार में चना पकौड़ी की दुकान चलाते हैं. कभी-कभी ज्यादा मुनाफा के लिए कमलानंद अपनी ट्राइसाइकिल पर अपनी बनायी चीजों को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में बिक्री के लिए निकल पड़ते हैं. मुनाफा बढ़ा कर कमलानंद अपने परिवार बसाने की योजना को लेकर खासा संजीदा हैं. उन्होंने कहा कि मां-पिता की यह इच्छा है जिसे वह जल्द ही पूरी कर देंगे.

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