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जिले में मॉनसून की सक्रियता से किसानों में खुशी, फसलों को मिला जीवनदान

अररिया: शनिवार रात से जिले भर में रुक-रुक कर हो रही बारिश से किसानों के चेहरे की खुशी लौट आयी है. वैसे तो जिले में मॉनसून की सक्रियता जुलाई माह के पहले सप्ताह से ही देखी जा रही थी. आसमान में घुमड़ते काले बादल जरूर दिख रहे थे, लेकिन बारिश का सिलसिला बिल्कुल रुका हुआ […]

अररिया: शनिवार रात से जिले भर में रुक-रुक कर हो रही बारिश से किसानों के चेहरे की खुशी लौट आयी है. वैसे तो जिले में मॉनसून की सक्रियता जुलाई माह के पहले सप्ताह से ही देखी जा रही थी. आसमान में घुमड़ते काले बादल जरूर दिख रहे थे, लेकिन बारिश का सिलसिला बिल्कुल रुका हुआ था. इससे जिले में किसानों के चेहरे पीले पड़ने लगे थे. शनिवार रात से रविवार की सुबह तक जिले भर में 80 सेमी से ज्यादा बारिश होने की बात सामने आ रही है. दरअसल जिले के बड़े भू-भाग में गेहूं की फसल बरबाद होने के बाद किसानों की सारी उम्मीद धान के बेहतर पैदावार पर टिकी है. मॉनसून के शुरुआती दौर में बारिश नहीं होने से किसानों में निराशा बढ़ती जा रही थी. मॉनसून की पहली बारिश से किसानों के चेहरे पर खुशी फिर से लौटने लगी है.
बारिश से बिचड़ों के आच्छादन में आयेगी तेजी
जानकारी के मुताबिक जिले में धान आच्छादन के लिए 94 हजार हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. जिले की मुख्य फसल धान की खेती के लिए किसानों ने जून के पहले सप्ताह से ही अपने खेतों में बिचड़े लगा रखे हैं. बारिश में हो रही देरी से बिचड़ा का आच्छादन नहीं हो पा रहा था. साथ ही खेतों में लगे बिचड़े भी सूखने लगे थे. कुर्साकांटा,सिकटी, पलासी सहित अन्य प्रखंडों के नीचले इलाकों में जहां आच्छादन किया गया था. वहां भी हालत अमूमन ऐसी ही थी. बारिश से खेतों में लगे फसल की हालत तो सुधरेगी ही. इसके साथ में बिचड़ा के आच्छादन में भी तेजी आयेगी.
पाट के किसानों को बारिश से होगा फायदा
बारिश नहीं होने से पाट की खेती करनेवाले किसान इसे तैयार करने को लेकर परेशान थे. वर्षा नहीं होने से जिले के सभी छोटे बड़े तरण ताल आमतौर पर सूख चुके थे या उनमें नाम मात्र पानी ही शेष था. इससे पाट के किसान फसल तैयार करने को लेकर खासा चिंतित थे. बारिश से जिले के सभी छोटे-बड़े नदी नालों में पानी जमा होने से फसल तैयार करने को लेकर किसानों की परेशानी दूर हो गयी है.
सिंचाई के लिए जिले में बारिश पर निर्भरता ज्यादा
मालूम हो कि जिले में जोत भूमि का करीब 80 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई के लिए बारिश पर पूरी तरह निर्भर है. कृत्रिम सिंचाई के विकल्प के बावजूद किसान इससे परहेज करते हैं. किसानों की मानें तो इससे एक तो फसल उत्पादन की लागत बढ़ जाती है, तैयार फसल को बेच कर भी इसकी पूर्ति नहीं हो सकती है. दूसरा यह कि कृत्रिम संसाधनों से सिंचाई पे आने वाले खर्च को यहां के बहुसंख्यक छोटे व मझौले किसान वहन नहीं कर पाते हैं.
कहते हैं कृषि पदाधिकारी: डीएओ नवीन कुमार ने कहा कि बारिश से नि:संदेह किसानों को काफी फायदा होगा. धान व पाट की खेती करने वाले कृषकों के लिए बारिश खासा महत्वपूर्ण साबित होगी. अगर इसी तरह मॉनसून के दौरान जिले में पर्याप्त बारिश होती रही तो गेहूं की फसल बरबाद होने से किसानों को हुए नुकसान को कुछ हद तक पाटा जा सकेगा.

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