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चलता रहा रेफर-रेफर का खेल भटकते रहे परिजन, निगल गयी मौत

मजदूर मेहनत मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का पेट तो भर लेता है, लेकिन अगर घर में कोई विपदा आ जाये, तो उसका सामना नहीं कर पाता है. सिस्टम की हकीकत को मीना की मौत उजागर कर रही है. अररिया : साहब! पैसे रहते तो आज मेरी मीना जिंदा होती. कर्ज, उधार लेकर मुश्किल […]

मजदूर मेहनत मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का पेट तो भर लेता है, लेकिन अगर घर में कोई विपदा आ जाये, तो उसका सामना नहीं कर पाता है. सिस्टम की हकीकत को मीना की मौत उजागर कर रही है.

अररिया : साहब! पैसे रहते तो आज मेरी मीना जिंदा होती. कर्ज, उधार लेकर मुश्किल से 50 हजार रुपये जमा किया, फिर भी नहीं बचा पायी अपनी मीना को. अब कर्ज तोड़ने के लिए बाहर जाकर कमाऊं या फिर तीन माह के बेटे व तीन वर्ष की बेटी के लिए दूध व निवाले का उपाय करूं… साहब, मेरी तो दुनियां ही उजड़ गयी. यह बातें हैं वर्तमान सिस्टम के तले जिंदगी गुजार रहे ऐसे पति की, जो मेहनत मजदूरी कर अपना व अपने परिवार के पेट की भूख, तो शांत कर लेता है,
लेकिन अगर घर में विपदा आ जाये तो उसका मुकाबला नहीं कर पाता है. साथ ही सिस्टम का यह हकीकत भी उजागर कर डालता है कि सरकारी अस्पतालों में गरीबी की मार झेल रहे मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके. वहां पर सिर्फ रेफर का पुर्जा थमा कर कोरम पूरा किया जा रहा है. ऐसा ही वाकया जोकीहाट प्रखंड के भगवानपुर पंचायत के तुरकैली वार्ड संख्या 12 में 28 वर्षीया मीना देवी पति संजय बहरदार के साथ बीता. 14 दिन पूर्व घर में अलाव सेंकने के दौरान वह झुलस गयी. गरीबी के कारण इलाज के लिए अस्पताल दर अस्पताल परिजन उसे लेकर घूमते रहे और अंत में उसकी मौत हो गयी.
परिजनों ने इलाज के लिए पीड़िता को सदर अस्पताल अररिया में भर्ती कराया. चिकित्सकों ने मामूली उपचार के बाद उसके परिजनों को रेफर का पुर्जा थमा दिया और कहा कि शरीर का 33 प्रतिशत हिस्सा जल गया है. पूर्णिया ले जाइये. अशिक्षित और लाचार परिजन अग्निपीड़िता को लेकर पूर्णिया पहुंचे. बड़ी मुश्किल से सदर अस्पताल पूर्णिया में उसे भर्ती लिया गया, जहां इलाज कम चिकित्सकों, नर्स व कंपाउंडर की फटकार ज्यादा पड़ी. परिजनों के अनुसार, न तो ठीक तरह से इलाज हुआ न ही जले भाग का ड्रेसिंग ही समय पर हो पाया. इस दौरान पीड़िता जलन से कराहती रही. जब ज्यादा दबाव बनाया तो चिकित्सकों ने पटना पीएमसीएच रेफर कर दिया.
पास बचे कर्ज के रुपये लेकर परिजनों ने यह हौसला किया कि सरकारी अस्पताल में नहीं प्राइवेट में इलाज करायेंगे. यही सोच के साथ परिजन अग्निपीड़िता को लेकर 19 जनवरी को वापस अररिया पहुंचे, जहां एक निजी चिकित्सक के पास मरीज को भर्ती कराया. पांच दिनों के खर्च ने हिम्मत तोड़ दिया. ऊपर वाले का नाम ले घर लेकर लौट आया. 29 जनवरी को पुनः हालत खराब हुई तो परिजनों ने फिर से सदर अस्पताल अररिया लाया, जहां स्लाइन की चंद बूंदों के अंदर जाते ही मीना ने दम तोड़ दिया.
14 दिनों के असहज दर्द को झेलने के बाद भी मौत से पहले पति को कह गयी तीन साल की बेटी पल्लवी व तीन माह के बेटे अमन का ख्याल रखियेगा.
खास बातें
मीना की मौत ने पीछे छोड़े कई सवाल, क्या आज भी जिंदगी से कीमती हैं पैसे?
तीन माह का नौनिहाल पूछ रहा सिस्टम से सवाल, 33 प्रतिशत जली मां को क्यों नहीं हो पाया इलाज
परिजनों ने पहले अररिया सदर अस्पताल में कराया गया भर्ती, वहां चिकित्सकों ने पुर्जा थमा कर पूर्णिया सदर अस्पताल कर दिया रेफर
पूर्णिया सदर अस्पताल में इलाज कम डॉक्टर व कंपाउंडरों की फटकार ज्यादा िमली, न तो ढंग से इलाज हुआ न ही जले भाग का ड्रेसिंग ही हुआ, फिर वहां से पटना कर दिया रेफर
हिम्मत कर परिजनों ने 19 जनवरी को अररिया में एक िनजी नर्सिंग होम में कराया भर्ती
पांच िदनों के खर्च ने ही परिजनों की हिम्मत तोड़ दी, थक-हार कर परिजन महिला को घर वापस ले आये
29 जनवरी को महिला की फिर हालत खराब हो गयी, परिजनों ने फिर सदर अस्पताल अररिया पहुंचाया, जहां इलाज शुरू होते ही महिला की मौत हो गयी
सही उपचार मिलता, तो बच सकती थी महिला की जान
सदर अस्पताल में बर्न वार्ड, तो है लेकिन व्यवस्था का अभाव है. महिला को उपचार के लिए लाया गया था. पूर्णिया में बर्न वार्ड की बेहतर व्यवस्था होने के कारण मरीज को पूर्णिया रेफर किया गया था. 50-60 प्रतिशत तक झुलसे मरीज रिकवर होते हैं. सही उपचार मिलता तो महिला बच सकती थी.
डॉ एनके ओझा, सिविल सर्जन

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