18.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

रोशनी रहते नेत्रहीन विद्यालयों में पढ़ने को मजबूर

पटना: इनके पास आंखें हैं, लेकिन देख नहीं सकते. यह सामान्य बच्चों की तरह रह सकते हैं, लेकिन ये अंधे बच्चों की श्रेणी में आते हैं. ये अच्छे स्कूल में पढ़ सकते हैं, पर मजबूरी में यह अंधे स्कूल में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं. यह हाल कहीं और नहीं, बल्कि कदमकुआं स्थित नेत्रहीन विद्यालय […]

पटना: इनके पास आंखें हैं, लेकिन देख नहीं सकते. यह सामान्य बच्चों की तरह रह सकते हैं, लेकिन ये अंधे बच्चों की श्रेणी में आते हैं. ये अच्छे स्कूल में पढ़ सकते हैं, पर मजबूरी में यह अंधे स्कूल में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं. यह हाल कहीं और नहीं, बल्कि कदमकुआं स्थित नेत्रहीन विद्यालय का है. एक्सपर्ट की मानें, तो अगर यहां के कुछ बच्चों की आंखों का इलाज किया जाये, तो वे अपनी आंखों से देख सकते हैं. लेकिन, ये बच्चे गॉड फादर के इंतजार में हैं. आर्थिक रूप से कमजोर इन बच्चों को अभी तक कोई मदद करने वाला नहीं मिला है, जिससे ये बच्चे अभी भी अंधेपन में अपनी जिंदगी जी रहे हैं.

एक साल पहले मिली थी जानकारी : स्कूल प्रशासन के अनुसार, इसकी जानकारी एक साल पहले मिली थी. उन दिनों स्कूल की ओर से एक हेल्थ चेकअप कैंप लगाया गया था. इसमें आंखों को ले कर स्पेशल जांच की गयी. जांच में पता चला कि कई बच्चे हैं, जिनकी आंखों में 20 से 30 परसेंट तक रोशनी बची हुई है. अगर इनकी आंखों में डिवाइस लगा दिये जायें, तो ये बची हुई रोशनी का इस्तेमाल देखने में कर सकते हैं. इस संबंध में स्कूल के होस्टल अधीक्षक राजेंद्र कुमार ने बताया कि हमलोग कोशिश में लगे हैं कि उन बच्चों की रोशनी के लिए डिवाइस मिल जाये, लेकिन अभी तक मदद के लिए कोई नहीं आया है. इस डिवाइस को लगाने में लगभग 15 हजार के आसपास खर्च आयेगा.

1922 में हुई है स्कूल की स्थापना : स्कूल की स्थापना 1922 में की गयी थी. स्कूल के अध्यक्ष राजेंद्र कुमार ने बताया कि इस स्कूल को बिहार गवर्नमेंट ने 1958 में अपने अधीन लिया था. यहां पर अभी 68 बच्चे पढ़ रहे हैं. हर साल कुछ बच्चे यहां से मैट्रिक देते हैं.2014 की परीक्षा में पांच बच्चे इसमें शामिल होंगे.

डिवाइस की मदद से देख पा रहे हैं डॉ सुब्रतो : डॉ सुब्रतो गुहा की आंखें इंफेक्शन होने से खराब हो गयी थीं. पटना वीमेंस कॉलेज के बीबीए में मार्केटिंग के प्रोफेसर डॉ गुहा को देखने में काफी परेशानी थी.

जांच में पता चला कि उनकी आंखों की 70 परसेंट रोशनी जा चुकी है. अब वो नहीं देख पायेंगे. डॉ गुहा ने बताया कि देखने में दिक्कतें होने से मैं क्लास रूम में पढ़ा नहीं पा रहा था. बाद में इस डिवाइस को लगाने से मैं देख पा रहा हूं.

ये हैं पीड़ित बच्चे

आफताब आलम, 9वीं

श्री कांत, 9वीं

सीताराम, 9वीं

सुनील, 8वीं

राहुल, 8वीं

अमन कुमार, 8वीं

ठीक हो सकती हैं इनकी आंखें
इन बच्चों की आंखों में थोड़ी-बहुत प्रॉब्लम है. अगर इनका इलाज सही से किया जाये, तो इनकी बची हुई रोशनी वापस आ सकती है. इस संबंध में लो विजन एंड विजन रिहेबिलटेशन के एक्सपर्ट डॉ राजीव प्रसाद बताते हैं कि इसमें इमेज प्रिंटिंग के द्वारा बची हुई रोशनी को काम में लाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति की 70 परसेंट रोशनी चली गयी है और 30 परसेंट बची हुई है, तो उसे डिवाइस के माध्यम से यूज किया जा सकता है. अगर डिवाइस को लगातार लगाया जाये, तो धीरे-धीरे आंखों में रोशनी वापस भी आ सकती है.

ऐसे होगा इनका इलाज

लो विजन एंड विजन रिहैब्लिटेशन के थ्रू इलाज होने से लौट सकती है रोशनी.

चश्मा, दवा, लेजर, ऑपरेशन से जिनकी आंखें ठीक नहीं होतीं, उनके लिए भी फायदेमंद.

इसमें डिवाइस की मदद से पीड़ित व्यक्ति आसानी से देख सकेंगे.

डिवाइस रोशनी का पुनर्वास करने का काम करता है.

डिवाइस आंखों की सूखी हुई नसों को फिर से ठीक कर देता है.

यह मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी होगी

अगर डिवाइस लगने से बच्चों की आंखें ठीक हो जाती हैं, तो इससे अधिक खुशी की बात क्या होगी. पिछले दिनों स्कूल जांच शिविर लगायी गयी थी, उसी में हमें पता चला था कि बच्चे ठीक हो सकते हैं, लेकिन हम क्या कर सकते हैं. अगर कोई मदद को आगे आयें, तो बड़ी कृपा होगी.

– खगेंद्र कुमार, प्रिंसिपल

नेत्रहीन उच्च विद्यालय, पटना

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें