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बिहार ने वित्त आयोग से मांगे 63,633 करोड रुपये

पटना : बिहार सरकार ने 14वें वित्त आयोग से कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा बढा कर 50 प्रतिशत करने किए जाने की मांग की है. राज्य सरकार ने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए बिहार को 63,633.48 करोड रुपये का आवंटन किए जाने दिए जाने की आवश्यक्ता जताई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में […]

पटना : बिहार सरकार ने 14वें वित्त आयोग से कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा बढा कर 50 प्रतिशत करने किए जाने की मांग की है. राज्य सरकार ने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए बिहार को 63,633.48 करोड रुपये का आवंटन किए जाने दिए जाने की आवश्यक्ता जताई है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सरकार के प्रतिनिधियों ने आज यहां 14वें वित्त आयोग की टीम के साथ बैठक की. वित्त विभाग के प्रधानसचिव रामेश्वर सिंह ने बाद में पत्रकारों से कहा कि केंद्रीय करों में राज्यों को मिलने वाला मौजूदा हिस्सा उनकी प्राथमिकताओं और दायित्वों के निर्वहन के हिसाब से अपार्यप्त है.

उन्होंने कहा कि कर राजस्व में केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों का बंटवारा आधा.आधा होना चाहिये. बिहार सरकार ने अपनी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए 63,633.48 करोड रुपये की भी मांग की. प्रथमिकता वाले इन क्षेत्रों में कृषि , मानव विकास मिशन और शासन व्यवस्था में सुधार के लिए सहायता की मांग शामिल है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कल कहा था कि कुल कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा 32 प्रतिशत जबकि केंद्र का 68 प्रतिशत होता है. हम चाहेंगे कि यह 50-50 प्रतिशत होना चाहिये.उन्होंने कहा कि कर राजस्व के बंटवारे में जनसंख्या को 20 प्रतिशत, प्रति व्यक्ति आय के अंतर को 70 प्रतिशत तथा 10 प्रतिशत वित्तीय प्रबंधन को वेटेज :भारांश: दिया जाना चाहिए. सिंह ने कहा कि बिहार जैसे पिछडे राज्य की विकास दर और प्रति व्यक्ति आय काफी कम है ऐसे में जनसंख्या के अनुपात में जबतक धनराशि प्राप्त नहीं होगी तबतक हम राष्ट्रीय औसत को नहीं पा सकेंगे.

बिहार सरकार ने वित्त आयोग की टीम से कहा कि पिछले वित्त आयोग ने बिहार को उसकी आबादी के अनुरुप अनुदान नहीं दिया गया. इसे आबादी के अनुरुप किया जाए. सिंह ने कहा कि बिहार की आबादी पूरे देश का करीब साढे आठ प्रतिशत है पर पिछले वित्त आयोग द्वारा बिहार को ग्रांट्स इन एड पांच प्रतिशत से थोडा कम ही मिला था.सिंह के अनुसार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वित्त आयोग की टीम से कहा कि बिहार को विशेष राज्य दर्जा दिया जाने का मामला उनका विषय नहीं है पर अगर यह अगर मिला रहता तो बिहार में निजी क्षेत्रों में निवेश होता. मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं प्राप्त होने के कारण यहां निजी निवेश कम है.

उन्होंने कहा कि बिहार में पिछले आठ सालों में जो तेजी से विकास हुआ है वह सरकारी क्षेत्र में ही निवेश का प्रतिफल है. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए राशि का पूरा भार केंद्र सरकार को स्वयं वहन करना चाहिए.उन्होंने कहा कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यों के अंशदान को भी तय दिए जाने से राज्य की प्राथमिकताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है क्योंकि बिहार जैसे पिछडे और गरीब राज्य को ऐसी योजनाओं के लिए अपने हिस्से का जुटाने के लिए अपनी प्राथमिकताओं में कटौती करनी पड़ती है. वित्त विभाग के सचिव सिंह ने कहा कि केंद्र जहां अधिक समावेशी विकास की बात करता है ऐसे में बिहार के पांच सालों में सात लाख 38 हजार करोड रुपये का अंतर पाटने के लिए आयोग को अपनी अनुशंसा में बिहार के हितों का ध्यान रखना चाहिए.

उन्होंने कहा कि बिहार सरकार का मानना है कि प्रति व्यक्ति विकास खर्च समानता की ओर बढना चाहिए. इस अवसर पर वित्त विभाग के सचिव (संसाधन) संजीव हंस ने बताया कि राज्य सरकार ने 14वें वित्त आयोग से आपदा प्रबंधन के मामले में शत-प्रतिशत राशि केंद्र के वहन करने तथा जिस प्रकार से करों का हस्तानांतरण होता है उसी प्रकार से पंचायती राज संस्थाओं के लिए भी व्यवस्था की जानी चाहिए.

कल पटना पहुंची आयोग की टीम ने पंचायती राज संस्थानों, नगर निकाय संस्थानों, व्यापार, उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की तथा उनके विचारों को सुना था. भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई वी रेड्डी के नेतृत्व में बिहार के दौरे पर आयी 14वें वित्त आयोग की इस टीम में उसके चार अन्य सदस्य भी शामिल थे.

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