पटनाः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घटना के तुरंत बाद अपने आवास पर डीजीपी अभयानंद के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा की. इसके बाद औरंगाबाद के एसपी दलजीत सिंह को हटा कर उनकी जगह उपेंद्र कुमार शर्मा को नया एसपी बनाया गया है. श्री सिंह को मुख्यालय बुला लिया गया है. श्री शर्मा दरभंगा के एसपी थे. साथ ही मुख्यमंत्री ने हमले में मारे गये सभी लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये अनुग्रह अनुदान देने की घोषणा की. बैठक में मुख्यमंत्री ने डीजीपी से कहा कि नक्सलियों के खिलाफ वह राज्यव्यापी सघन अभियान चलाएं. वहीं, उन्होंने घटनास्थल पर पुलिस के आलाधिकारियों को भेजने का निर्देश दिया. इसके बाद एडीजी, मुख्यालय और मगध रेंज के आइजी व डीआइजी को घटनास्थल पर रवाना किया गया. मुख्यमंत्री ने डीजीपी से दो टूक शब्दों में कहा कि नक्सली घटना को लेकर सरकार किसी भी स्तर पर समझौता नहीं करेगी. इसे रोकने के लिए जो भी संभव कार्रवाई है, की जानी चाहिए.
ग्रामीणों ने शव नहीं उठने दिये
हमले की सूचना मिलते ही हजारों लोग घटनास्थल पर पहुंचे, पर पुलिस को पहुंचने में डेढ़ घंटे लग गये. दाउदनगर के एसडीपीओ के साथ बड़ी संख्या में सीआरपीएफ व कोबरा के जवान भी पहुंचे. लोगों ने पुलिसवालों को शव उठाने से मना कर दिया. उनका कहना था कि जब तक मुख्यमंत्री यहां नहीं आते, शवों को नहीं उठने दिया जायेगा. देर रात तक मान-मनौव्वल जारी था.
हाल ही में जेल से छूटे थे सुशील
पटनाः एडीजी, मुख्यालय रवींद्र कुमार ने कहा कि नक्सली ही अमूमन लैंड माइंस विस्फोट करते हैं. ऐसे में नक्सलियों के मंसूबों का पता लगाने के लिए जांच शुरू कर दी गयी है. पटना से एफएसएल की टीम को घटनास्थल पर भेजा गया है. सुशील पांडेय हाल ही में जेल से छूट कर बाहर आये थे. उन्होंने सुशील के किसी प्रतिबंधित संगठन से संबंधित होने से इनकार करते हुए कहा कि इसकी जांच करायी जा रही है.
ये मारे गये हमले में
सुशील पांडेय, पप्पू पांडेय, सुभाष पांडेय, प्रवेश पांडेय, राम वल्लभ उपाध्याय, मनीष पांडेय व योगेंद्र पांडेय
नक्सलियों के निशाने पर थे सुशील
औरंगाबादः पिछले काफी दिनों से सुशील पांडेय उग्रवादियों के हिट लिस्ट में थे. लेकिन, मौका हाथ नहीं लग पा रहा था. दरअसल, श्री पांडेय अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम व्यक्ति थे. इसलिए वह उग्रवादियों की हिट लिस्ट में नाम दर्ज होने के बावजूद बच रहे थे. पर, हाल में दाउदनगर इलाके में नक्सलियों की ताकत कम होने का संकेत मिलने के साथ ही श्री पांडेय की सुरक्षा के प्रति तत्परता भी कम हो गयी थी. उन्हें अब विश्वास हो गया था कि नक्सली इस क्षेत्र में कमजोर हो गये हैं. लगता है नक्सलियों ने इस स्थिति का लाभ उठाया.
आसान नहीं था सामना करनाः सुशील पांडेय दाउदनगर के एक चर्चित व्यक्ति थे. इनके सामने न तो कोई अपराधी टिकते थे और न नक्सली. नक्सली संगठन भले ही इन्हें मुख्य टारगेट में रखे थे, लेकिन इन पर सीधा हमला करने की स्थिति में संगठन भी नहीं था. इसीलिए लैंड माइंस का सहारा लिया गया. वह भी ऐसे समय में, जब वे अपने गांव के एक बच्चे को अस्पताल से देख कर वापस लौट रहे थे.
झेलना पड़ा आक्रोश
सुशील पांडेय सहित सात लोगों की मौत की घटना के बाद लोगों का आक्रोश इतना बढ़ गया था कि एसपी और एसडीपीओ सहित पुलिस के बड़े पदाधिकारी साहस नहीं कर पा रहे थे कि घटनास्थल पर जाकर शव को उठायें. काफी देर तक पुलिस सहमी रही और लोग पुलिस के विरुद्ध नारे लगाते रहे. उनका कहना था कि घटना के दो घंटे बाद खुदवां थाना की पुलिस पहुंची.अगर समय से पुलिस आती तो नक्सली पकड़े जाते. पिसाय गांव के सैकड़ों लोग घटनास्थल पहुंचे. मृतकों के परिजनों की चीत्कार से घटनास्थल गूंज उठा.
परिजनों को शांत कराने के लिए लोगों की कतार लग गयी. लेकिन इस घटना के बाद सांत्वना से काम बनते नहीं दिख रहा था. समझाने वाले भी अपनी आंखों के आंसू रोक नहीं पा रहे थे. सुशील पांडेय की पत्नी व जिला पार्षद सुधा देवी की हालत खराब थी.
क्षेत्र के लिए यह बड़ी घटना है. इस घटना से ओबरा का क्षेत्र दहल उठा है. घटना की जानकारी पाते ही आसपास के दर्जनों गांव के लोग घटनास्थल पर पहुंचे गये. यहां आनेवाले लोगों में आक्रोश था और लोग प्रशासन के विरुद्ध अपने गुस्से का इजहार कर रहे थे.