पटना: सेहतमंद जीवन के लिए हर दिन जितनी दूध की जरूरत होती है, बिहार के लोगों को वह उपलब्ध नहीं है. मांस और अंडे की उपलब्धता के मामले में भी बिहार के लोग राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे हैं.
राज्य में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता महज 175 ग्राम है, यानी एक ग्लास (200 ग्राम) से भी कम. देश में औसत प्रति व्यक्ति दूध की खपत रोजाना 290 ग्राम है. इस आधार पर बिहार के लोगों को राष्ट्रीय औसत से 115 ग्राम कम दूध मिल रहा है.
यहां के लोगों को एक साल में औसतन प्रति व्यक्ति सिर्फ आठ अंडा खाने को मिलता है. यही हाल मांस (चिकेन और बकरा) के मामले में भी है. हर बिहारी सालाना औसतन दो किलो 54 ग्राम मीट ही खाने को मिलता है. यह स्थिति तब है जब देश का 8.56 प्रतिशत पशुधन बिहार में हैं.
मानक से काफी पीछे : भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के अनुसार, किसी व्यक्ति को सेहतमंद जीवन के लिए रोजाना 300 ग्राम दूध, प्रति वर्ष 180 अंडा और प्रति वर्ष 10 किलो 54 ग्राम मीट की जरूरत होती है. आइसीएमआर के इस मानक की तुलना में बिहार बेहद पीछे है. देश के कई राज्यों में दूध, मांस और अंडा की उपलब्धता का औसत काफी बेहतर है. पंजाब में दूध की उपलब्धता प्रति व्यक्ति रोजाना 950 ग्राम है. राजस्थान में 650 ग्राम, यूपी 310 ग्राम, हरियाणा 720 ग्राम, गुजरात 445 ग्राम, जम्मू और कश्मीर 352 ग्राम, आंध्रप्रदेश में 391 ग्राम है.
बदहाली के प्रमुख कारण
राज्य में पशु संसाधन के विकास पर समुचित ध्यान नहीं.
न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं.
दूध उत्पादन में प्रति किलो करीब 22 रुपये की लागत, मुनाफा कम
दुग्ध को-ऑपरेटिव संघ (कॉम्फेड) किसानों से 24-28 रुपये प्रति किलो दूध खरीदता है.
जबकि बाजार में यह दूध 34-38 रुपये प्रति किलो बेचा जाता है.
पशु टीकाकरण, पशु अस्पताल समेत अन्य योजनाओं का क्रियान्वयन बेहतर नहीं.
पशु बांझपन और अन्य कई बीमारियों से सालाना करीब 15 हजार पशुओं की हो जाती है मौत.
राज्य में पशु चिकित्सकों की भारी कमी, सृजित पद 2037 में सिर्फ 1000 ही कार्यरत.
जानवरों के फ्रोजेन सीमैन बैंक की हालत बेहद खराब
पॉल्ट्री विकास और एवियन फ्लू जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए उचित व्यवस्था नहीं