पटना. भाजपा से गंठबंधन टूटने के बाद बिहार विकास के मोरचे पर तेजी से नीचे आ रहा है. 2012-13 में बिहार देश के 20 बड़े राज्यों में 11 वें स्थान पर था. आज खिसक कर 20 वें पायदान पर पहुंच गया है.
उक्त बातें बुधवार को भाजपा विधान मंडल दल के नेता सुशील मोदी ने कहीं. उन्होंने कहा है कि विख्यात अर्थशास्त्री लवीश भंडारी और सुमित काले की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. दोनों ने राज्यों की दशा-दिशा का आंकलन वस्तुनिष्ठ आंकड़ों के आधार पर किया है.
इसी आधार पर उन्होंने राज्यों की रैकिंग भी की है. अर्थशास्त्रियों ने रैकिंग के लिए कृषि,आधारभूत संरचना,अर्थव्यवस्था,निवेश,स्वास्थ्य,शिक्षा,प्रशासन और उपभोक्ता बाजार के वस्तुनिष्ठ आंकड़ों को आधार बनाया था. बिहार की रैंकिंग सभी श्रेणियों में 16 से 20 के बीच है. बिहार में कृषि रोड मैप की चर्चा तो बड़े जोर-शोर से हुई, लेकिन एक वर्ष में इस मोरचे पर सूबा पांचवें से खिसक कर 20 वें स्थान पर पहुंच गया. आधारभूत संरचना के मामले में भी बिहार आठवें स्थान से खिसक कर 18 वें स्थान पर आ गया.
अर्थव्यवस्था विकास के मामले में बिहार चौथे से 18 वें, निवेश के मामले में आठ से 15 वें, उपभोक्ता बाजार के मामले में आठवें से 16 वें और स्वास्थ्य के मामले में 15 वें स्थान से खिसक कर बिहार 16 वें स्थान पर चला आया है. शिक्षा के क्षेत्र में बिहार नौवें से स्थान से खिसक कर 15 वें स्थान पर पहुंच गया है. सुशील मोदी ने कहा है कि भाजपा से गंठबंधन टूटने के बाद बिहार में जिस तरह से जोड़-तोड़ और राजनीतिक अस्थिरता के दौर में सरकार चल रही है. उसी का नतीजा है कि बिहार सभी मानकों पर पिछड़ा साबित हुआ. विकास के सारे काम-काज प्रभावित हुए हैं. सुशासन और समावेशी विकास का नारा लफ्फाजी बन कर रह गया है.