देश के दूसरे कई राज्यों में जहां हाउसिंग सेक्टर या रियल इस्टेट बिजनेस उछाल पर है, वहीं बिहार में इसकी सुगबुगाहट न तो सरकारी और न ही निजी स्तर पर दिख रही है. राज्य में नया बिल्डिंग बाइलॉज लागू नहीं हुआ है और पटना के मास्टर प्लान पर फिलहाल रायशुमारी हो रही है. उधर, नगर निगम ने 1150 निर्माणाधीन भवनों को जांच के दायरे में रखा है.
ऐसे में पहले से 500 करोड़ रुपये की पूंजी फंसाये बैठे बिल्डर आगे किसी नये प्रोजेक्ट में पूंजी निवेश का कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. लेकिन, इसकी मार तो उनलोगों को ङोलनी पड़ रही है, जो फ्लैट खरीदने का सपना पाले लंबे समय से किराये के मकान में रह रहे हैं.
पटना: दूसरे राज्यों ने हाउसिंग सेक्टर की बदौलत काफी तरक्की हासिल कर ली, मगर बिहार में दूर-दूर तक इसका प्रभाव नहीं दिखता. बिहार का हाउसिंग सेक्टर लंबे अरसे से बदहाल है. मौजूदा हालत यह है कि न तो सरकारी उपक्रम बिहार राज्य आवास बोर्ड ने पिछले चार दशकों में कोई नया प्रोजेक्ट उतारा है और न ही प्राइवेट डेवलपर्स इस दिशा में आगे बढ़े. नीतीश सरकार के पहले पांच वर्षो के कार्यकाल में प्राइवेट डेवलपरों के रुचि दिखाने से हाउसिंग सेक्टर में कुछ हलचल जरूर दिखी थी, मगर उसके बाद यह फिर से विवादों में उलझ कर रह गया है. फिलहाल मास्टर प्लान व बिल्डिंग बाइलॉज नहीं होने और लंबे समय से सैकड़ों निर्माणाधीन भवनों के जांच के दायरे में रहने की वजह से करीब 500 करोड़ की निजी पूंजी फंसी हुई है.
नये प्रोजेक्ट आने से मिलती राहत : राजधानी पटना पर बोझ बढ़ने की वजह से न सिर्फ जमीन, बल्कि फ्लैट की कीमत भी आसमान छूने लगी है. लोगों को किराये पर भी घर मिलना मुश्किल हो गया है. अगर हाउसिंग सेक्टर विकसित होता, तो कम जमीन पर अधिक मकान बनते और फ्लैटों की कीमत घटती. यही नहीं, महंगे किराये से भी लोगों को छुटकारा मिलता.
सरकारी प्रोजेक्ट की हालत खस्ता : बिहार राज्य हाउसिंग बोर्ड ने अंतिम बार 1974-75 में कंकड़बाग हाउसिंग प्रोजेक्ट ही डिलिवर किया था. उसके बाद से बोर्ड का कोई नया प्रोजेक्ट जमीन पर नहीं उतर पाया है. कुछ वर्षो पहले बोर्ड ने फिर कंकड़बाग के लोहिया नगर व बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी में ही मल्टी स्टोरेज बिल्डिंग व कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है, मगर यह प्रोजेक्ट भी अब तक फाइलों में ही बंद है. आधिकारिक सूत्रों की मानें, तो टेंडर नीति के प्रावधानों की वजह से कोई भी बिल्डर इसके निर्माण को लेकर सामने नहीं आ रहा.
तो घट सकती है कीमत : प्राइवेट डेवलपर्स का मानना है कि अगर हाउसिंग सेक्टर में सुधार लाते हुए प्राइवेट डेवलपर्स को मौका दिया जाये, तो न सिर्फ फ्लैटों की कीमतें घट सकती हैं, बल्कि मकानों का किराया भी सस्ता हो जायेगा. एनसीआर को इसका उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर इसका विकास नहीं हुआ होता, तो दिल्ली पर कितना दबाव होता. सरकार को पुराने शहर के साथ ही नये इलाकों में अधिक-से-अधिक वल्र्ड क्लास टाउनशिप विकसित करने के बारे में सोचना चाहिए. यह काम सरकार खुद नहीं कर सकती. इसके लिए प्राइवेट डेवलपर्स को प्रोत्साहित करना ही चाहिए.
नहीं मिल रहा कोई प्रोत्साहन : प्राइवेट डेवलपरों का कहना है कि दूसरे राज्यों में प्राइवेट डेवलपर्स को सरकार के स्तर पर मदद मिलती है. दूसरी तरफ बिहार में मदद तो दूर, राह में रोड़े अटकाये जाते हैं. राजधानी पटना की ही बात करें, तो इसके पास न तो मास्टर प्लान है और न ही कोई टाउन प्लानर. बिल्डिंग बाइलॉज को भी सरकार ने लंबे समय से अकारण रोक रखा है. दो साल से शहर में कोई भवन का नक्शा तक पास नहीं हो रहा. 1150 से अधिक बिल्डिंग निगम की निगरानी टीम की जांच के दायरे में हैं. आखिर शहर में हाउसिंग सेक्टर का विकास हो तो कैसे? उनका कहना है कि अगर सरकार से उचित सहयोग मिले तो न सिर्फ शहर का विकास होगा, बल्कि पटना देश के नक्शे पर बेहतर और स्मार्ट सिटी के रूप में उभर कर सामने आयेगा.
जल्द पूरी हो जांच की प्रक्रिया : 1150 भवनों के निगरानी जांच के दायरे में रहने से उनका निर्माण कार्य रुका हुआ है. इसकी मार न सिर्फ ग्राहकों, बल्कि बिल्डरों पर भी पड़ रही है. बड़े बिल्डर तो दूसरे राज्यों के प्रोजेक्ट में निवेश कर रहे हैं, मगर छोटे बिल्डरों की तो पूंजी ही फंस चुकी है. निर्माण में देर होने से उसकी लागत बढ़ती चली जा रही है. बिल्डर-ग्राहक दोनों कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. डेढ़ साल से जांच की प्रक्रिया चल रही है, जिसमें अब तक 450 भवनों पर निगरानी वाद दायर हुआ है और उनमें से 110 भवनों पर नगर आयुक्त कोर्ट का फैसला आया है. हालांकि पिछले कुछ महीनों से इसकी सुनवाई की गति में भी कमी आयी है. बिल्डरों का कहना है कि अगर सरकार और नगर निगम जांच को लेकर इतना ही तत्पर है तो अतिरिक्त कर्मियों को लगा कर जांच प्रक्रिया जल्द खत्म करे ताकि बेकसूर लोगों को राहत मिले और उनका प्रोजेक्ट शुरू हो सके.
क्या हो सकता है उपाय
– मास्टर प्लान और बिल्डिंग बाइलॉज जल्द-से-जल्द लागू हो
– नगर आयुक्त कोर्ट में पड़े बिल्डिंग विवाद मामलों का जल्द-से-जल्द निबटारा
– दूसरे राज्यों की तरह एमनेस्टी स्कीम का प्रावधान कर अनियमित क्षेत्र को रेगुलराइज किया जाये. अब तक केरल, गाजियाबाद, तमिलनाडु, गुजरात और झारखंड में भी एमनेस्टी स्कीम लाकर लोगों को राहत दी गयी है.
बिल्डरों की क्या है परेशानी
– प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं होने से लागत में बढ़ोतरी
– पूंजी का संकट, बैंक व ग्राहकों के समक्ष साख में गिरावट
– नये बिल्डरों को अधिक नुकसान
ग्राहकों की दिक्कत
– महंगी दर पर जमीन व फ्लैट खरीदने की मजबूरी
– मकान मालिक को महंगा किराया देकर रहने की मजबूरी
– प्रोजेक्ट विलंब से होने से बैंक का कर्ज चुकाने में परेशानी, ब्याज दर में बढ़ोतरी
– बजट का गड़बड़ होना
बिल्डिंग बाइलॉज को लेकर भी हैं आपत्तियां
सरकार ने दिसंबर, 2013 में बिल्डिंग बाइलॉज का प्रारूप जारी कर दिया है. मगर इसको लेकर व्यवसायी वर्ग में काफी आपत्ति है. उन्होंने सरकार के समक्ष इन मामलों को उठाया भी. व्यवसायियों ने पटना की सघन आबादी को देखते हुए शहर के लिए भुवनेश्वर की बजाय केरल या पश्चिम बंगाल मॉडल के बाइलॉज को अधिक उपयुक्त माना. उनका कहना है कि प्रारूपित बाइलॉज लागू होने पर छोटे भू-स्वामी भारी घाटे में रहेंगे, वहीं बड़े भू-स्वामियों को फायदा होगा. शहर के किसी भी हिस्से में नया अपार्टमेंट नहीं बन सकेगा. उन्होंने सुझाव दिया कि पुराने बसे क्षेत्र व नये इलाके के विकास को लेकर अलग-अलग नियम बनाये जाएं. इससे आम लोगों के साथ ही डेवलपरों को भी सुविधा होगी. उन्होंने गुड़गांव-नोएडा की तरह पटना के आसपास के शहरों में भी बड़े प्रोजेक्ट लगाने की वकालत की. इससे पटना पर दबाव घटेगा और बिहार के दूसरे शहर भी विकसित होंगे.
परेशानी की मुख्य वजह
– अगर किसी के पास 2764 फुट (दो कट्ठा) जमीन है, तो उसका दो तिहाई यानी 1700 स्क्वायर फुट में ही कुल निर्माण किया जा सकता है, जबकि 16 कट्ठा (21 हजार 776 फुट) जमीन वाले भू-स्वामी ढाई सौ फीसदी ज्यादा 54 हजार 440 फुट निर्माण कर सकते हैं.
– दो कट्ठा जमीनवाले को भी उतना ही एमवीआर देना होगा, जिस हिसाब से 16 कट्ठा जमीन के मालिक देंगे. इससे गरीबों पर चौतरफा मार पड़ेगी, जबकि भू-माफियाओं को सीधा लाभ मिलेगा.
– नया बिल्डिंग बाइलॉज लागू होने पर शहर के 98 फीसदी इलाकों में पुराने मकान की जगह नये अपार्टमेंट नहीं बन सकेंगे. बाइलॉज के मुताबिक निर्माण स्थल पर कम-से-कम 27 फुट चौड़ी सड़क अनिवार्य है, लेकिन पटना शहर में मात्र दो फीसदी सड़कें ही 27 फुट या उससे अधिक चौड़ी हैं.
– प्रस्तावित बाइलॉज में सड़कों की चौड़ाई और प्लॉट के रकबा के हिसाब से मकानों की ऊंचाई तय होगी. ऐसे में पहले से जो मकान बने हैं वो तो ठीक हैं, लेकिन जो लोग नया मकान बनाने की बाट जोह रहे हैं, उन पर आफत आयेगी. एक ही कॉलोनी में दो तरह का कानून दिखेगा.
– नौ महीने से नया नक्शा पास करने पर रोक है. नया बाइलॉज लागू किये जाने से पहले ही पुराने बाइलॉज पर रोक क्यों लगा दी गयी है. ऐसे में व्यापार प्रभावित हो रहा है.
– नया बाइलॉज लागू हुआ तो इंस्पेक्टर राज आ जायेगा. जिस जगह पर 3000 स्क्वायर फुट बन सकता है, वहां पर मात्र 800 स्क्वायर फुट निर्माण की ही इजाजत दी गयी है. ऐसे में लोग जबरन या मजबूरीवश अवैध निर्माण करेंगे. बड़े व संरक्षण प्राप्त लोग तो बच जायेंगे, मगर छोटे लोगों पर दबाव बना कर उनसे वसूली की जायेगी.
बदहाली के कारण
लंबे समय से हाउसिंग क्षेत्र में सरकारी या निजी निवेश नहीं होना
मास्टर प्लान व बाइलॉज का अभाव
जमीन कीमिनिमम वैल्यू रेट (एमवीआर) में लगातार बढ़ोतरी
बैंकों का ढुलमुल रवैया, लगातार गतिरोध से विश्वास की कमी
निगरानी कोर्ट में डेढ़ साल से 1150 से अधिक मामलों का फंसा होना
फ्लैट व जमीन खरीदने वालों पर इनकम टैक्स की सीधी नजर
हाउसिंग सेक्टर को लेकर सरकार जागरूक नहीं है. लंबे समय से कई भवन निगरानी के दायरे में हैं, मगर उनका निष्पादन नहीं हो पा रहा. मास्टर प्लान और बिल्डिंग बाइलॉज भी अब तक लागू नहीं हुआ है. प्रोजेक्ट लंबित होने से बिल्डर-ग्राहक दोनों कर्ज से दब गये हैं. सरकार व नगर निगम अगर जांच प्रक्रिया को जल्द पूरा करे तो सबको राहत मिलेगी. साथ ही प्राइवेट हाउसिंग सेक्टर का भी विकास होगा.
मणिकांत, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, बिल्डर एसोसिएशन ऑफ इंडिया