पटना: कुछ मामलों में भले ही बिहार अन्य राज्यों से पीछे हो, पर सूचना के अधिकार के मामले में वह दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण बन रहा है. पीडीएस सिस्टम, स्वास्थ्य सहित कई अन्य मामलों में बिहार तमिलनाडु से पीछे चल रहा है, पर सूचना के अधिकार के तहत सूचना देने के मामले में बिहार तमिलनाडु के आरटीआइ कार्यकर्ताओं के लिए आदर्श बन रहा है.
वहां के आरटीआइ कार्यकर्ता राज्य सरकार से बिहार के तर्ज पर टेलीफोन पर सूचना के लिए आवदेन दर्ज करने और सूचना देने की मांग कर रहे हैं. बिहार में अब तक इस सुविधा का लाभ लेनेवालों की संख्या एक करोड़ 38 लाख 792 तक पहुंच चुका है. टेलीफोन पर सूचना देने का प्रावधान सिर्फ बिहार में है. बिहार में यह सेवा 2007 के जनवरी से शुरू हुआ है, जो अब तक निर्वाध चल रहा है. इससे सुदूर गावों अथवा दूर देश में बैठे कोई सूचना प्राप्त कर सकता है. आवेदनकर्ता को एक सूचना के लिए सिर्फ उसके टेलीफोन से ही 10 रुपये का शुल्क काट लिया जाता है. इसके लिए राज्य सरकार ‘जानकारी’ नाम से एक कार्यालय का संचालन कर रही है. इस कार्यालय में कई टेलीफोन लाइन की सुविधा दी गयी है.
सूचना चाहनेवाले 155310 और 155311 पर सूचना के लिए टेलीफोन पर ही आवेदन कर सकते हैं. टेलीफोन पर मिले आवेदन को कार्यालय के कर्मचारी संबंधित विभाग के सूचना पदाधिकारी से सूचना की मांग करते हैं, जिसे मांगनेवालों को उपलब्ध करा दिया जाता है. समय पर सूचना नहीं मिलने पर आवेदनकर्ता पुन: टेलीफोन पर ही प्रथम और द्वितीय अपील भी दायर करते हैं. सूचना आयोग के अधिकारी ने बताया कि इससे कम पढ़े लिखे लोग के साथ विकलांग, बुजुर्ग, लाचार व्यक्ति को भी घर बैठे सूचना मिल जाता है. अधिकारी ने बताया कि कभी-कभी 10 रुपये के पोस्टल ऑर्डर बाजार में उपलब्ध नहीं होता है. ऐसे में टेलीफोन से सेवा प्राप्त करना आसान होता है. बिहार में इस सेवा की सफलता और दूसरे राज्यों में चर्चा के कारण ही अरुणाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यों में बिहार के तर्ज पर टेलीफोन से आवेदन दर्ज कर सूचना देने का अध्ययन किया गया है.
पांच रुपये में देख सकते हैं एक घंटा फाइल
अधिकारी ने बताया कि बिहार में 10 रुपये के पोस्टल ऑर्डर और टेलीफोन पर सूचना देने के अलावा किसी कार्यालय में पांच रुपये प्रति घंटा की दर से किसी अभिलेख को देखने का अधिकार है. आवेदक को अभिलेख देखने के लिए पहला घंटा कोई शुल्क नहीं देने का प्रावधान किया गया है. हालांकि, इस सुविधा का प्रचार-प्रसार कम होने के कारण आम लोगों में इस सुविधा का उपयोग नहीं कर रहे हैं.