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बच्‍चा रोये, फिर भी नहीं जलता चूल्हा

अगलगी के भय के साये में जीते हैं रजंदीपुर ढाला के लोग, दिन में संजीव भागलपुर : अब बात रजंदीपुर ढाला की. बस्ती की शुरुआत में ही घर की साड़ियों व बोरों से बनी चहारदीवारी ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति बताने के लिए काफी थी. ग्रामीणों का इससे बड़ा दर्द और क्या हो सकता है कि […]

अगलगी के भय के साये में जीते हैं रजंदीपुर ढाला के लोग, दिन में

संजीव

भागलपुर : अब बात रजंदीपुर ढाला की. बस्ती की शुरुआत में ही घर की साड़ियों व बोरों से बनी चहारदीवारी ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति बताने के लिए काफी थी. ग्रामीणों का इससे बड़ा दर्द और क्या हो सकता है कि उनके घर दिन में कोई मेहमान आ जायें, तो खाना पका कर खिला नहीं सकते. घास-बांस के बने घर में आगजनी हो जाने के भय से दिन में कोई भी चूल्हा नहीं जलाते. मेहमानों को सुबह का बना भोजन ही परोसते हैं. ग्रामीणों की बेबसी और भी कई हैं, लेकिन मतदान की बात आती है, तो यही कहते हैं कि इस बार ऐसे जनप्रतिनिधि चुनेंगे जो उन्हें स्थायी रूप से बसा सके.

इंतजार

सड़कों के बीच-बीच में बने पुलिया से सड़कों का नाता वर्षो से टूटा हुआ है. कुछ दूर की पक्की सड़क आगे चल कर धूल-माटी में तब्दील हो जाती है. बता पाना मुश्किल हो जाता है कि सड़क पर चल रहे हैं या खेत के गड्ढों में. गाड़ियां लेकर पुलिया पार करना तो दूर, लोग पुलिया के नीचे से ही पैदल गुजरा करते हैं. बाबूपुर मोड़ की तरफ से रजंदीपुर जाने में थोड़ी आसानी होती है. बीच में दो जगह सड़कें थोड़ी-बहुत दुरुस्त है, पर रजंदीपुर ढाला की ओर बढ़ने पर कभी सड़क से 20 फीट नीचे उतरना, तो कभी 20-25 फीट की चढ़ाई कई बार करनी पड़ती है.

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