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खनन मानक की नहीं होती जांच, फल-फूल रहा बालू का अवैध कारोबार
पटना: सारण जिले के डोरीगंज इलाके में सरकार की खनन नीति के विपरीत बालू निकासी हो रही है. हर दिन तय मानकों की अवहेलना हो रही है और बालू का अवैध कारोबार फल-फूल रहा है. घाट किनारे इसकी नियमित जांच नहीं होती. इस जिले में रायपुर विधगावां पंचायत के बलबन टोला इलाके में पड़ने वाली […]
पटना: सारण जिले के डोरीगंज इलाके में सरकार की खनन नीति के विपरीत बालू निकासी हो रही है. हर दिन तय मानकों की अवहेलना हो रही है और बालू का अवैध कारोबार फल-फूल रहा है. घाट किनारे इसकी नियमित जांच नहीं होती. इस जिले में रायपुर विधगावां पंचायत के बलबन टोला इलाके में पड़ने वाली सोन नद से लाल बालू निकालकर नावों द्वारा गंगापार डोरीगंज के घाटों पर लाया जाता है. इस काम में लगे सुधीर (परिवर्तित नाम) कहते हैं कि नदी किनारे तब तक खुदायी होती रहती है जब तक बालू निकलता रहता है. अब वो गहरायी तीन मीटर तक है या पांच मीटर इसका ध्यान नहीं रखा जाता. वहां इसकी जांच भी नहीं होती. कोई अधिकारी भी नहीं दिखते.
अधिक से अधिक बालू निकालने की कोशिश
उन्होंने इसका कारण बताया कि बालू खरीदारों की लाइन लगी रहती है. मांग की भरपायी के लिए जहां खनन हो रहा है वहीं अधिक से अधिक बालू निकालने की कोशिश होती है. जल्दी-जल्दी बालू निकालना और उसकी ढुलायी करना प्राथमिकता होती है. इन सब में मानकों का ध्यान नहीं रहता.
मानक से ज्यादा खनन
वहीं खनन के बाद नाव में रखे लाल बालू के साथ मिट्टी भी दिखी. इसके बारे में जब मल्लाह सुरेश (परिवर्तित नाम) से पूछा गया कि बालू के साथ मिट्टी कैसे आयी तो उन्होंने कहा कि खनन के समय बालू निकलने के बाद जब मिट्टी निकलने लगी तो उसे भी काट लिया गया. ऐसा अकसर चार-पांच मीटर खनन के बाद होता है. इस काम में लगे लोगों की कोशिश रहती है कि ज्यादा से ज्यादा बालू निकाल ली जाये.
बढ़ जाती है नदी की चौड़ाई
सुरेश ने कहा कि नदी के बीच में तो खनन संभव नहीं होता, साथ ही यह नियम के खिलाफ है. इसलिए किनारे पर खनन होता है. कई बार तो जमीन के नीचे से पानी निकल आता है तब खुदायी बंद होती है. ऐसा चार-पांच मीटर खनन के बाद हो जाता है. उन्होंने कहा कि इसका दुष्परिणाम यह होता है कि नदी की चौड़ाई बढ़ जाती है और नदी के घाट खराब हो जाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन
सुप्रीम कोर्ट ने 27 फरवरी, 2012 को एक आदेश पारित किया था. इसमें पर्यावरण संरक्षण और वैज्ञानिक ढंग से खनन के लिए दिशा-निर्देश दिये गये थे. इसके तहत खनन से पहले पर्यावरणीय स्वीकृति लेना अनिवार्य है. माइनिंग प्लान बनाना और विभाग से पास कराना अनिवार्य है. खनन पट्टा का न्यूनतम क्षेत्रफल पांच हेक्टेयर होना चाहिये. इसकी न्यूनतम समय सीमा पांच साल है. बालू बंदोबस्ती के लिए हर नदी में स्ट्रेच का निर्माण करना चाहिये. बालू खनन की अधिकतम गहरायी तीन मीटर होनी चाहिये. इसके खनन से संबंधित प्रतिबंधित क्षेत्र का निर्धारण किया जाना चाहिये. इसमें पुल के पायों के पास और नदी के बीच में खनन प्रतिबंधित हैं.
2014 में बिहार सरकार की नयी बालू खनन नीति
सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन के अनुसार बिहार सरकार ने साल 2014 में नयी बालू नीति बनायी. इसके तहत सारण जिले के घाटों की भी बंदोबस्ती हुयी है. इसमें डोरीगंज इलाके के बालू घाट शामिल हैं. इसके अनुसार घाटों की बंदोबस्ती लेने वाले को खनन से पहले पर्यावरणीय स्वीकृति लेना आवश्यक है. वहीं बालू खनन की अधिकतम गहरायी की सीमा तीन मीटर रखी गयी है, लेकिन इसकी अवहेलना हो रही है.
प्रशासनिक जांच की ढिलायी का ही नतीजा है कि नियत मात्रा से ज्यादा बालू निकाले जा रहे हैं.
रेल पायों के नीचे खनन की सूचना
केवल यही नहीं हाल ही में बालू निकालने के लिए रेलवे के कई पीलर के नीचे भी खनन की सूचना पुलिस को मिली. पटना में तो पाटलिपुत्र थाना इलाके में बालू निकालने के लिए एक पीलर के नीचे खनन की सूचना प्रशासन को दी गयी. इस मामले में निगरानी विभाग को जांच सौंपा गया है.
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