नयी दिल्ली : चाहे पुरुष हों या महिला मुक्केबाज उन्होंने तमाम परिस्थितियों से जूझने के बावजूद कुछ हासिल करने के लिये रिंग के भीतर अपना खून, पसीना और आंसू बहाये लेकिन भारतीय मुक्केबाजी में सत्ता के लिये झगडा इस साल भी बरकरार रहा. अच्छी खबर यह रही कि नई संस्था के आने के बाद भारत […]
नयी दिल्ली : चाहे पुरुष हों या महिला मुक्केबाज उन्होंने तमाम परिस्थितियों से जूझने के बावजूद कुछ हासिल करने के लिये रिंग के भीतर अपना खून, पसीना और आंसू बहाये लेकिन भारतीय मुक्केबाजी में सत्ता के लिये झगडा इस साल भी बरकरार रहा.
अच्छी खबर यह रही कि नई संस्था के आने के बाद भारत फिर से अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (आइबा) का हिस्सा बन गया. इसके अलावा राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में कुछ मुक्केबाजों ने जानदार प्रदर्शन किया. लेकिन भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने बॉक्सिंग इंडिया को मान्यता देने से इन्कार कर दिया जिससे स्थितियां अब भी मुश्किल बनी हुई है. इसके अलावा एल सरिता देवी को एशियाई खेलों में कांस्य पदक लेने से इन्कार करने के कारण एक साल का प्रतिबंध भी झेलना पडा.
मुक्केबाजी संघ में पिछले साल से चल रही रस्साकसी इस साल भी जारी रही. आखिर में आइबा ने समिति बनायी और फिर नई संस्था ने कार्यभार संभाला. लेकिन ऐसे में आईओए ने कडा रवैया अपना दिया और इसे मान्यता नहीं दी. अब देखना है कि आगामी वर्ष में बॉक्सिंग इंडिया को मान्यता मिलती है या नहीं. आईओए ने अब भी पुराने भारतीय एमेच्योर मुक्केबाजी संघ को मान्यता देता है.
रिंग से बाहर के ड्रामे के बाद रिंग के अंदर मुक्केबाजों ने जानदार प्रदर्शन किया. साल में अधिकतर समय उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेलने का मौका नहीं मिला लेकिन जब अवसर हाथ में आया तो उन्होंने इसका फायदा उठाया.