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हजारों करोड़ का खेल बजट फिर भी एथलीटों की वही दुर्दशा, कोल्ड स्टोरेज में काम करने को मजबूर राहुल, यहां पढ़ें

National level Athlete Rahul Struggle: कोल्ड स्टोरेज में काम करने को मजबूर नेशनल एथलीट राहुल कहते हैं कि, 'कोल्ड स्टोरेज में काम करना बेहद मुश्कील है. यह एक खुले फ्रीजर में चलने जैसा है. मेरे हाथ और पैर सुन्न हो गए हैं, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं है.'

National level Athlete Struggle: 25 साल के नेशनल एथलीट राहुल पिछले 11 साल से पश्चिमी दिल्ली स्थित एक डेरी में नाइट शिफ्ट कर रहे हैं. वह यहां कोल्ड स्टोर में रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक दूध के पैकेट ट्रक में लोड करने का काम करते हैं. फिर सुबह होते ही वह अपने सपनों की ओर निकल पड़ते हैं और जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में ट्रेनिंग करते हैं. राहुल एक धावक हैं, जो तीन बार के दिल्ली राज्य पदक विजेता रहे हैं.

मेरे पास कोई विकल्प नहीं है: राहुल

इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल मध्यम दूरी से लेकर लंबी दूरी की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते रहे हैं. राहुल ने 2017 के क्रॉस-कंट्री नेशनल में U-20 कांस्य पदक जीता था. उन्होंने यह सभी पदक नाइट शिफ्ट में काम करते-करते ही हासिल किए हैं. कोल्ड स्टोरेज में काम करने को मजबूर राहुल कहते हैं कि, ‘कोल्ड स्टोरेज में काम करना बेहद मुश्कील है. यह एक खुले फ्रीजर में चलने जैसा है. मेरे हाथ और पैर सुन्न हो गए हैं, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं है.’ बता दें कि राहुल ने सबसे पहले उन्होंने साल 2016 में अंडर-20 स्टेट टूर्नामेंट में 10 किमी दौड़ प्रतियोगिता में कांस्य जीता था. उनका एक बक्सा स्टेट ट्रॉफियों के साथ-साथ अलग-अलग स्तर पर खेली गई कई मेडल से भरा पड़ा है.


बेहद संघर्षपूर्ण रहा है राहुल का जीवन

यूपी के बुलंदशहर के पास स्थित सिकरपुर के रहने वाले राहुल का जीवन बड़ा संघर्षपूर्ण रहा है. उन्होंने महज 4 साल के उम्र में अपने पिता को खो दिया था. इसके बाद 10 साल की उम्र में वह अपने भाई के साथ दिल्ली आ गए थे. उनके भाई एक फूड एप कंपनी में डिलीवरी एजेंट हैं. 13 साल की उम्र तक तो राहुल अपने भाई के साथ ही रहे, लेकिन फिर उनके भाई ने उन्हें साफ कह दिया कि वह उनका खर्चा नहीं उठा सकते. ऐसे में महज 13 साल की उम्र में राहुल के सिर पर न तो छत रह गई थी और न ही खाने के लिए रोटी थी. उनकी जैब में पैसे भी नहीं थे. वह अपने बैग में अपने कपड़े भरकर भाई के घर से चल दिए थे.

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राहुल के पास प्रैक्टिस के लिए रनिंग शूज नहीं थे

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एथलेटिक्स के साथ राहुल का सफर थोड़ी देर से शुरू हुआ. उनके मकान मालिक का बेटा पुलिस शारीरिक परीक्षण परीक्षा के लिए प्रशिक्षण ले रहा था और उसने युवा राहुल से पूछा कि क्या वह उसके साथ जाना चाहेगा. लेकिन एक दिक्कत थी, उनके पास रनिंग शूज नहीं थे. उन्होंने किसी तरह अपने कैनवास के जूतों की पहली जोड़ी हासिल की और अपने मकान मालिक के बेटे के साथ प्रशिक्षण लेना शुरू किया, जो अंततः परीक्षा में पास नहीं हो पाया, लेकिन राहुल आगे बढ़ते रहे और 2016 में अपना पहला राज्य पदक हासिल किया-10 किमी में अंडर-20 में कांस्य.

‘मुझे एक दिन की नौकरी की सख्त जरूरत है’: राहुल

राहुल अभी भी जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में एक और ब्रेक की उम्मीद में प्रशिक्षण लेते हैं, लेकिन उनका कहना है कि रात के काम ने उनके शरीर पर असर डालना शुरू कर दिया है. राहुल कहते हैं कि, ‘मुझे एक दिन की नौकरी की सख्त जरूरत है जो मुझे अपने प्रैक्टिस पर फोकस करने की अनुमति दे. चूंकि मैं पूरी रात काम करता हूं, मेरा शरीर दिन के दौरान प्रशिक्षण के लिए अच्छी प्रतिक्रिया नहीं देता है. मुझे ठीक होने के लिए आराम की जरूरत है.’

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