आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग का मामला पहली बार 2013 में प्रकाश में आया जब दिल्ली पुलिस ने राजस्थान रॉयल्स के क्रिकेटरों एस श्रीसंत, अंकित चव्हाण और अजित चंदीला को उस सत्र में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग में कथित भागीदारी के लिये गिरफ्तार किया था. इसके बाद यह भी खुलासा हुआ कि मयप्पन और राजस्थान रायल्स के […]
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग का मामला पहली बार 2013 में प्रकाश में आया जब दिल्ली पुलिस ने राजस्थान रॉयल्स के क्रिकेटरों एस श्रीसंत, अंकित चव्हाण और अजित चंदीला को उस सत्र में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग में कथित भागीदारी के लिये गिरफ्तार किया था.
इसके बाद यह भी खुलासा हुआ कि मयप्पन और राजस्थान रायल्स के सह मालिक राज कुंद्रा भी इसमें शामिल थे. मयप्पन को 24 मई को धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप गिरफ्तार कर दिया गया. आईपीएल संचालन परिषद ने मयप्पन और कुंद्रा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिये तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की जिसमें उच्च न्यायालय के दो पूर्व न्यायाधीश भी शामिल थे. इस पैनल ने हालांकि इन दोनों को क्लीन चिट दे दी जबकि पुलिस पर बात पर अडिग थी कि वे दोनों इसमें शामिल थे.
इसके बाद गैरमान्यता प्राप्त क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार ने बंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की जिसने फैसला दिया कि बीसीसीआई के जांच पैनल का गठन गैरकानूनी है और उसने जो साक्ष्य जुटाये हैं उनमें असमानता है. बोर्ड ने बंबई उच्च न्यायलय के फैसले के खिलाफ अपील की तो उच्चतम न्यायालय ने इसके बाद श्रीनिवासन, बीसीसीआई, इंडिया सीमेंट और राजस्थान रायल्स को नोटिस जारी कर दिये.
उस वर्ष सितंबर में बीसीसीआई ने श्रीसंत और चव्हाण पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया जबकि बोर्ड की अनुशासन समिति ने चंदीला पर फैसला सुरक्षित रखा. अक्तूबर में उच्चतम न्यायालय ने नये सिरे से जांच के लिये तीन सदस्यीय समिति गठित की जिसे जांच पूरी करने के लिये चार महीने का समय दिया गया. इस पैनल में उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश मुकुल मुदगल, सीनियर एडवोकेट और अतिरिक्त सालिसिटर जनरल एल नागेश्वर राव और असम क्रिकेट संघ के सदस्य निलय दत्ता शामिल थे.
मुदगल समिति ने यह निष्कर्ष निकाला कि मयप्पन और कुंद्रा के खिलाफ गलत कामों में शामिल रहने के सबूत हैं. इसने उच्चतम न्यायालय को एक मुहरबंद लिफाफा दिया जिसमें भ्रष्टाचार में लिप्त क्रिकेटरों और प्रशासकों के नाम थे.समिति ने हालांकि कहा कि श्रीनिवासन स्पॉट फिक्सिंग या सट्टेबाजी में लिप्त नहीं थे लेकिन साफ किया कि उन्हें आईपीएल के खिलाडियों की भागीदारी के बारे में पता था लेकिन उन्होंने इससे आंख मूंद ली थी.
उच्चतम न्यायालय ने इसके बाद मयप्पन और कुंद्रा और उनकी संबंधित फ्रेंचाइजी के खिलाफ सजा तय करने के लिये न्यायमूर्ति लोढा की अगुवाई में एक अन्य तीन सदस्यीय पैनल गठित किया और घोषणा की कि उसका फैसला ‘अंतिम होगा और वह बीसीसीआई और अन्य सबंधित पक्षों के लिये बाध्यकारी होगा’.