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धौनी के स्कूल पहुंची विश्वकप ट्रॉफी, छात्रों में उत्साह

जेवीएम श्यामली में पहुंची विश्व कप क्रिकेट की ट्रॉफी, उमड़े छात्र रांची : दुनिया के सभी क्रिकेटर का सपना होता है कि वह आइसीसी वर्ल्ड कप ट्रॉफी उठाये. उसके साथ फोटो खिंचवाये. आपने भी अपने चहेते क्रिकेटरों को यह ट्रॉफी उठाते देखा होगा. गुरुवार को रांची के स्कूली छात्रों को भी एक ऐसा ही मौका […]

जेवीएम श्यामली में पहुंची विश्व कप क्रिकेट की ट्रॉफी, उमड़े छात्र

रांची : दुनिया के सभी क्रिकेटर का सपना होता है कि वह आइसीसी वर्ल्ड कप ट्रॉफी उठाये. उसके साथ फोटो खिंचवाये. आपने भी अपने चहेते क्रिकेटरों को यह ट्रॉफी उठाते देखा होगा. गुरुवार को रांची के स्कूली छात्रों को भी एक ऐसा ही मौका मिला. वर्ल्ड कप 2011 की यह ट्रॉफी देश के विभिन्न हिस्सों से होते हुए रांची पहुंची. दोपहर एक बजे इसे टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी के स्कूल जेवीएम श्यामली लाया गया.

स्पोर्ट्स टीचर ने हटाया परदा

धौनी के प्रारंभिक कोच सह स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर केशव रंजन बनर्जी ने छात्रों के बीच ट्रॉफी पर लगा परदा हटाया. इस दौरान छात्र काफी उत्साहित थे. ट्रॉफी स्कूल परिसर में करीब दो घंटे तक रही. स्टार स्पोर्ट्स के सौजन्य से इसे रांची लाया गया.

उत्साहित थे छात्र

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धौनी के स्कूल पहुंची विश्वकप ट्रॉफी, छात्रों में उत्साह 2

ट्रॉफी आने की खबर स्कूल के छात्रों को पहले से लग गयी थी, इसलिए वे काफी उत्साहित थे. स्कूल में चहल-पहल बढ़ गयी थी. फिर दोपहर एक बजे जब ट्रॉफी छात्रों के सामने लायी गयी, तो छात्र उसे घेर कर खड़े हो गये. बाद में आयोजकों ने छात्रों को ट्रॉफी के साथ फोटो खिंचवाने का मौका दिया.

बैलेंसिंग द बॉल

इससे पहले एंकर पूजा ने कार्यक्रम की शुरुआत बैलेंसिंग द बॉल नामक खेल से की. इसमें छात्रों को बल्ले से बॉल का बैलेंस करना था और जो सबसे अधिक देर तक ऐसा करता, वही विजेता बनता. बैलेंसिंग द बॉल के विजेता रितिक हुए.

जानिये ट्रॉफी का इतिहास

यह ट्रॉफी विश्व कप की विजेता टीमों को दी जाती है. वर्तमान में विश्व विजेता टीम को जो ट्रॉफी दी जा रही है, इसका निर्माण 1999 की विश्व चैंपियनशिप के लिए किया गया था. निर्माण सोने व चांदी से किया गया है. यह लगभग 60 सेमी ऊंची है. इसमें एक गोल्डेन ग्लोब है, जिसे सिल्वर के तीन कॉलम (स्तंभ) थामे हुए हैं. कॉलमों को स्टंप्स और बेल्स का रूप दिया गया है, वजन लगभग 11 किलोग्राम है और इसके आधार (बेस) पर पिछले विजेताओं के नाम उकेरे गये हैं.

प्रूडेंशियल वर्ल्ड कप (1975-1983)

विश्व कप क्रिकेट के शुरुआत के तीन संस्करणों का आयोजन इंगलैंड में किया गया. विश्व विजेताओं को जो ट्रॉफी दी गयी, उसे प्रूडेंशियल कप का नाम दिया गया. इसका डिजाइन यूके की फाइनेंशियल सर्विस कंपनी प्रूडेंशियल पीएलसी ने किया था. 1975 व 1979 में वेस्टइंडीज की टीम विजेता रही. 1983 में भारत चैंपियन बना.

रिलायंस वर्ल्ड कप (1987)

विश्व कप के चौथे संस्करण का आयोजन भारतीय उप महाद्वीप में किया गया. भारतीय प्रायोजकों की वजह से ट्रॉफी का नाम रिलायंस वर्ल्ड कप रखा गया. 1987 में ऑस्ट्रेलिया विश्व विजेता बना और कप्तान एलन बॉर्डर ने यह ट्रॉफी उठायी.

बेनसन एंड हेजेस कप (1992)

1992 में विश्व कप का आयोजन ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में किया गया. बेनसन एंड हेजेस इस ट्रॉफी के प्रायोजक थे. इसलिए इसे बेनसन एंड हेजेस नाम दिया गया. पहली बार इस ट्रॉफी में किसी भी धातु का इस्तेमाल न कर इसका निर्माण क्रिस्टल से किया गया. इस बार पाकिस्तान ने विश्व कप जीता.

विल्स वर्ल्ड कप ट्रॉफी (1996)

1996 में एक बार पुन: विश्व कप क्रिकेट का आयोजन भारतीय उप महाद्वीप में किया गया. इसकी मेजबानी भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका ने संयुक्त रूप से की. एक बार फिर ट्रॉफी का नामकरण इसके प्रायोजक के नाम पर किया गया. इस बार विल्स इसकी प्रायोजक थी, इसलिए इसे विल्स वर्ल्ड कप ट्रॉफी का नाम दिया गया और श्रीलंका की टीम चैंपियन बनी.

आइसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप ट्रॉफी (1999 से अब तक)

हरेक वर्ल्ड कप में अलग-अलग ट्रॉफियों के बाद इस टूर्नामेंट के लिए एक अनोखे और स्थायी ट्रॉफी का निर्माण 1999 में किया गया. इसकी डिजाइन लंदन की गेरार्ड एंड कंपनी ने की. इसके निर्माण में कंपनी को दो महीने लगे. इसे सोने व चांदी से तैयार किया गया. इस ट्रॉफी का वजन लगभग 11 किग्रा और ऊंचाई 60 सेंटीमीटर है.

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