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हमारी प्रकृति का नियम

संसार का निर्माण परमात्मा ने बहुत ही सोच-समझ कर संतुलन के आधार पर किया है. पूरे ब्रह्मांड की एक-एक वस्तु, एक-एक कण परमात्मा द्वारा निर्धारित नियमों के अंतर्गत चल रहा है. अनादिकाल से यह क्रम चलता आ रहा है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु अपनी गति के अनुरूप चल रही है.यही कारण है कि इस संसार की […]

संसार का निर्माण परमात्मा ने बहुत ही सोच-समझ कर संतुलन के आधार पर किया है. पूरे ब्रह्मांड की एक-एक वस्तु, एक-एक कण परमात्मा द्वारा निर्धारित नियमों के अंतर्गत चल रहा है.
अनादिकाल से यह क्रम चलता आ रहा है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु अपनी गति के अनुरूप चल रही है.यही कारण है कि इस संसार की व्यवस्था कभी भंग नहीं होती. व्यवस्था भंग वहां होती है, जहां कोई नियम न हो, कोई बंधन न हो, प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र और स्वच्छंद हो, लेकिन जहां व्यवस्था होती है, वहां कोई स्वच्छंदता नहीं होती, सर्वत्र नियम होता है. हमारा इतना बड़ा देश इसलिए चल रहा है कि प्रत्येक व्यक्ति इसके संविधान को मानता है. जब कभी कहीं व्यवस्था टूटती है, तो समाज अथवा देश में अव्यवस्था फैल जाती है.
जैसे-सड़क पर सभी चलते हैं, जब सभी लोग नियमबद्ध होकर चलें, तो यातायात के नियमों का पालन होने लगता है. लेकिन, जब कोई व्यक्ति यातायात नियम को तोड़ता है, तो सड़क पर अव्यवस्था फैल जाती है, भगदड़ मच जाती है.
इसलिए हमारा विद्यालय हो, परिवार हो, समाज अथवा देश हो, सभी जगह नियमों का पालन करना अनिवार्य है. परमात्मा और प्रकृति ने इस संसार में सबों के लिए पहले से ही सब कुछ सुनिश्चित कर रखा है. आदमी जन्म लेता है, तो जन्म के पहले उसके लिए दूध का प्रबंध कर दिया जाता है. फिर बच्चे बड़े होते हैं, तो वस्त्र, मकान, भोजन की सारी व्यवस्था स्वत: होती जाती है.
संसार में जितने भी जीव आते हैं, सबों के खाने-पीने की पूरी व्यवस्था पहले से ही हुई रहती है. एक अनुमान के अनुसार 70 वर्ष का व्यक्ति करीब 100 टन अनाज खा जाता है. ऐसा नहीं है कि वह कमाता है, तब खाता है.
प्रत्येक जीव के भोजन की व्यवस्था प्रकृति पहले से करती रहती है और जब कभी प्रकृति का नियम टूटता है, तो अनेक दुर्घटनाएं घटने लगती हैं, क्योंकि प्रकृति कभी भी अव्यवस्था बर्दाश्त नहीं कर सकती. वह तुरंत फैसला करती है. जैसा समय पर सूर्योदय होना, चांद निकलना, रात-दिन होना, बारिश आदि सब कुछ प्रकृति के नियम के अंतर्गत चल रहा है, ठीक उसी प्रकार हमारे जीवन में भी पूरी व्यवस्था की हुई है.
– आचार्य सुदर्शन

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