हर साल मैं किसी बेरोजगार आदमी को ढूंढ लेता हूं और अपने गुरु के जन्मदिन पर उसके लिए दुकान खोल देता हूं. एक छोटा-सा जनरल स्टोर, जहां बिस्किट, चॉकलेट, पेन-पेंसिल जैसी छोटी-मोटी चीजें रखवा देता हूं. ऐसी ही एक दुकान एक अपाहिज के लिए खुलवायी. एक दिन मैं उसकी बेटी से मिला.
मैंने पूछा- काम कैसा चल रहा है. उसने कहा- स्वामी जी, मेरी दुकान बहुत अच्छी चल रही है. यह सुन कर मुझे सुकून मिला. उस रात मेरी नींद कुछ अधिक शांत रही. अगर तुम मेरी इस विचारधारा को सांसारिक समझते हो तो ठीक है, लेकिन मेरी दृष्टि से यह आध्यात्मिक विचारधारा है, क्योंकि मनुष्य ईश्वर का एक व्यक्त रूप है. पूरा विश्व ईश्वर की अभिव्यक्ति है.
इसलिए जब हम मानव-सेवा करते हैं, पीड़ित, असहाय, जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं, तब हम वास्तव में परमात्मा के लिए ही यह करते हैं. इसमें समाज-सेवा का सवाल ही नहीं है. यह आध्यात्मिक साधना है. जब सभी दरिद्र, बीमार, भूखे, कंगाल, उपेक्षित और अभागे लोगों के लिए तुम्हारे हृदय में करुणा और प्रेम का उदय होगा, जब तुम अपने से कम भाग्यशाली व्यक्तियों की भलाई करोगे, तब मुझे बहुत खुशी होगी.
– स्वामी सत्यानंद सरस्वती