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श्रुतियां एवं स्मृतियां
सनातन धर्म के दो प्रामाणिक स्नेत हैं- श्रुति एवं स्मृति. श्रुति का शाब्दिक अर्थ है ‘जो सुना गया’ तथा स्मृति का अर्थ है ‘जो स्मरण रखा गया’. श्रुति उद्घाटित ज्ञान है, स्मृति पारंपरिक ज्ञान. श्रुति प्रत्यक्ष अनुभव है. महान् ऋषियों ने धर्म के शाश्वत सत्यों को सुना और उनका लिखित प्रमाण भावी पीढ़ियों के लिए […]
सनातन धर्म के दो प्रामाणिक स्नेत हैं- श्रुति एवं स्मृति. श्रुति का शाब्दिक अर्थ है ‘जो सुना गया’ तथा स्मृति का अर्थ है ‘जो स्मरण रखा गया’. श्रुति उद्घाटित ज्ञान है, स्मृति पारंपरिक ज्ञान. श्रुति प्रत्यक्ष अनुभव है.
महान् ऋषियों ने धर्म के शाश्वत सत्यों को सुना और उनका लिखित प्रमाण भावी पीढ़ियों के लिए छोड़ गये. इन्हीं लिखित प्रमाणों से वेदों और उपनिषदों का संकलन हुआ. अत: श्रुति प्राथमिक प्रमाण है. स्मृति उस अनुभव का अनुस्मरण है.
अतएव यह एक परोक्ष प्रमाण है. स्मृतियां भी ऋषियों द्वारा लिखे गये ग्रंथ ही हैं, लेकिन वे अंतिम प्रमाण नहीं हैं. यदि किसी स्मृति में कुछ ऐसा है, जो श्रुति का खंडन करता है, तो उस स्मृति को अस्वीकार किया जायेगा. भगवद्गीता एक स्मृति है. इसी प्रकार महाभारत भी एक स्मृति है. स्मृतियां वे प्राचीन, पवित्र धर्म-संहिताएं हैं, जो सनातन वर्णाश्रम धर्म से संबंध रखती हैं.
वे उन धार्मिक सिद्धांतों एवं कर्मकांडों की संपूर्ति एवं व्याख्या करती हैं, जिन्हें वेदों में विधियां कहा गया है. स्मृतियां वेदों के उपदेशों पर आधारित हैं.
प्रामाणिकता की दृष्टि से स्मृति का स्थान श्रुति के बाद है. यह सनातन धर्म की व्याख्या एवं उसके उन नियमों को निर्धारित करता है, जो हिंदुओं के राष्ट्रीय, सामाजिक, पारिवारिक एवं व्यक्तिगत दायित्वों को व्यवस्थित करते हैं. मुख्य स्मृतियां या धर्म-शास्त्र 18 हैं. सबसे महत्व वाले मनु, याज्ञवल्क्य एवं पराशर के हैं.
स्वामी शिवानंद सरस्वती
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