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बोधकथा: समय का महत्व

एक दिन युधिष्ठिर राजभवन में बैठे एक मंत्री से बातचीत कर रहे थे. किसी समस्या पर गहन विचार चल रहा था. तभी एक ब्राह्मण वहां पहुंचा. कुछ दुष्टों ने उस ब्राह्मण को सताया था. उन्होंने ब्राह्मण की गाय उससे छीन ली थी. वह ब्राह्मण महाराज युधिष्ठिर के पास फरियाद लेकर आया था. मंत्री जी के […]

एक दिन युधिष्ठिर राजभवन में बैठे एक मंत्री से बातचीत कर रहे थे. किसी समस्या पर गहन विचार चल रहा था. तभी एक ब्राह्मण वहां पहुंचा. कुछ दुष्टों ने उस ब्राह्मण को सताया था. उन्होंने ब्राह्मण की गाय उससे छीन ली थी. वह ब्राह्मण महाराज युधिष्ठिर के पास फरियाद लेकर आया था. मंत्री जी के साथ बातचीत में व्यस्त होने के कारण महाराज युधिष्ठिर उस ब्राह्मण की बात नहीं सुन पाये. उन्होंने ब्राह्मण से बाहर इंतजार करने के लिए कहा. ब्राह्मण मंत्रणा भवन के बाहर रूक कर महाराज युधिष्ठिर का इंतज़ार करने लगा.

मंत्री से बातचीत समाप्त करने के बाद महाराज ने ब्राहमण को अंदर बुलाना चाहा, लेकिन तभी वहाँ किसी अन्य देश का दूत पहुंच गया. महाराज फिर बातचीत में उलझ गये. इस तरह एक के बाद एक कई महानुभावों से महाराज युधिष्ठिर ने बातचीत की. अंत में सभी को निबटाकर जब महाराज भवन से बाहर आये तो उन्होंने ब्राहमण को इंतज़ार करते पाया. काफी थके होने के कारण महाराज युधिष्ठिर ने उस ब्राहमण से कहा, “अब तो मैं काफी थक गया हूं. आप कल सुबह आइयेगा. आपकी हर संभव सहायता की जाएगी.” इतना कहकर महाराज अपने विश्राम करने वाले भवन की ओर बढ़ गये.

ब्राह्मण को महाराज युधिष्ठिर के व्यवहार से बहुत निराशा हुई. वह दुखी मन से अपने घर की ओर लौटने लगा. अभी वह मुड़ा ही था की उसकी मुलाकात महाराज युधिष्ठिर के छोटे भाई भीम से हो गयी. भीम ने ब्राहमण से उसकी परेशानी का कारण पूछा. ब्राह्मण ने भीम को सारी बात बता दी. साथ ही वह भी बता दिया की महाराज ने उसे अगले दिन आने के लिए कहा है.

ब्राह्मण की बात सुकर भीम बहुत दुखी हुआ. उसे महाराज युधिष्ठिर के व्यवहार से भी बहुत निराशा हुई. उसने मन ही मन कुछ सोचा और फिर द्वारपाल को जाकर आज्ञा दी, “सैनिकों से कहो की विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े बजाएं,” आज्ञा का पालन हुआ. सभी द्वारों पर तैनात सैनिकों ने विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े बजाने शुरू कर दी. महाराज युधिष्ठिर ने भी नगाड़ों की आवाज़ सुनी. उन्हें बड़ी हैरानी हुई. नगाड़े क्यों बजाये जा रहे हैं, यह जानने के लिए वह अपने विश्राम कक्ष से बाहर आये.

कक्ष से बाहर निकलते ही उनका सामना भीम से हो गया. उन्होंने भीम से पूछा, “विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े क्यों बजाये जा रहे हैं? हमारी सेनाओं ने किसी शत्रु पर विजय प्राप्त की है?”

भीम ने नम्रता से उत्तर दिया, “महाराज, हमारी सेनाओं ने तो किसी शत्रु पर विजय प्राप्त नहीं की”

“तो फिर ये नगाड़े क्यों बज रहें हैं? महाराज ने हैरान होते हुए पूछा.

“क्योंकि पता चला है की महाराज युधिष्ठिर ने काल पर विजय प्राप्त कर ली है.” भीम ने उत्तर दिया

भीम की बात सुनकर महाराज की हैरानी और बढ़ गयी. उन्होंने फिर पुछा, “मैंने काल पर विजय प्राप्त कर ली है. आखिर तुम कहना क्या चाहते हो?

भीम ने महाराज की आंखों में देखते हुए कहा, “महाराज, अभी कुछ देर पहले आपने एक ब्राह्मण से कहा था की वह आपको कल मिले. इससे साफ़ जाहिर है की आपको पता है की आज आपकी मृत्यु नहीं हो सकती,आज काल आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यह सुनने के बाद मैंने सोचा की अवश्य अपने काल पर विजय प्राप्त कर ली होगी, नहीं तो आप उस ब्राह्मण को कल मिलने के लिए न कहते. यह सोच कर मैंने विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े बजने की आज्ञा दी थी.”

भीम की बात सुनकर महाराज युधिष्ठिर की आँखे खुल गयी. उन्हें अपनी भूल का पता लग चुका था. तभी उन्हें पीछे खड़ा हुआ ब्राह्मण दिखाई दे गया. उन्होंने उसकी बात सुनकर एकदम उसकी सहायता का आवश्यक प्रबंध करवा दिया.

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