।। ऋषव मिश्र कृष्णा।।
(प्रभात खबर, भागलपुर)
कल्पतरु भैया कल ही गांव आये हैं. सुबह-सुबह टहलने के लिए मंदिर की ओर निकले हैं. अब मंदिर आ गये हैं तो दुर्गा मैया के दर्शन भी कर लें, यह सोच कर जैसे ही मुख्य द्वार की और बढ़े, तो वे गांव के पंडित बेत्तर बाबा की पूजा पद्धति देख कर हतप्रभ रह गये. कौन नहीं जानता बाबा बेत्तर की पूजा पद्धति को? जोर-जोर से दुर्गा चालीसा का पाठ करना और घंटा बजाना.
गांव के लोगों की नींद ही बाबा के दुर्गा चालीसा के पाठ और घंटे की आवाज से खुलती थी. 40 साल हो गये फूस का मंदिर संगमरमर में तब्दील हो गया, लेकिन बाबा की पूजा पद्धति नहीं बदली. लेकिन यह क्या, आज बाबा मौन धारण कर भगवती की आराधना कर रहे हैं? बगल से ही बिनचुन कक्का गुजर रहे थे, तो कल्पतरु भैया से रहा न गया और पूछ ही बैठे- क्या कक्का! बाबा साइलेंट मोड में काहे चले गये हैं?
वाणी से नि:शक्त हो गये हैं क्या? बिनचुन कक्का मंद- मंद मुस्कुराते हुए बोले- तुम को पता होगा न कि लोकसभा का चुनाव होने वाला है और हमारे बाबा बेत्तर ठहरे साम्यवादी विचारधारा के! कल्पतरु भैया तपाक से बोले- कक्का! लोकसभा के चुनाव और साम्यवादी विचारधारा का बाबा बेत्तर की पूजा पद्धति से क्या लेना-देना. बिनचुन कक्का इस बार खुल कर हंसे और बोले- ई लोकसभा चुनाव और बाबा बेत्तर की साम्यवादी विचारधारा की स्थिति-परिस्थिति के बीच पूजा पद्धति पर ‘नमो’ का प्रभाव है. कल्पतरु भैया सवालिया लहजे में बोले- न .. मो ..?
बिनचुन कक्का खुल कर बोले- दुर्गा चालीसा पढ़े हो न? पिहलके लाइन में है, नमो-नमो दुर्गे.. अब बाबा का कहना है जैसे ही दुर्गा चालीसा शुरू करते हैं दुर्गा मैया की जगह पर नरेंद्र मोदी दिमाग में घूमने लगता है और मन विचलित हो जाता है. एतने पर बात खतम नहीं हुआ है. जानते हो, पंडिये जी के कारण झरनी चायवाला का भट्ठा बैठ गया. कल्पतरु भैया पूछते हैं- ऊ कैसे ? कक्का समझाते हुए कहते हैं- झरनी चायवाला का मति मारा गया था. दुकान का नाम रख लिया ‘नमो टी स्टाल’ ! अब बाबा घूम-घूम कर पूरे गांव में हल्ला कर दिये हैं कि झरनी चायवाला के चायपत्ती पर शनि की कुदृष्टि है.
दू दिन लगातार चाय पी लोगे तो शनि का कोपभाजन बनना पड़ेगा. इसलिए एक-एक दिन छोड़ कर चाय पीने जाओ. एक तो दूसरा पार्टी का आदमी झरनी की दुकान पर पहले ही जाना छोड़ चुके थे. उप्पर से बाबा बेत्तर का कुबात! शनि महाराज दूसरे को जो करें, लेकिन झरनी चायवाले का भट्ठा बैठ गया. वह घर का रहा न घाट का. पता चला है कि उसने इस तरह के अन्य कई दुकानदारों को गोलबंद करना भी शुरू कर दिया है. शायद वह भी दिल्ली वाली पार्टी की तरह पार्टी बना रहा है. इसको लेकर बेत्तर बाबा फिर कोई रणनीति बनाने लगे हैं. अब कल्पतरु भैया को दिव्य ज्ञान हो गया था. पंडित जी की पूजा समाप्त हो गयी थी.