14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

हानि का मान

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार मान जाने के बजाय मान करना मानव को प्रारंभ से ही ज्यादा रास आया है, जिसका पता कुछ-कुछ उसके ‘मानव’ नाम से भी चल जाता है. मुझे पूरा यकीन है कि उसे ‘मानव’ आम धारणा के विपरीत मनु से उत्पन्न होने के कारण नहीं, बल्कि उसके बात-बात पर मान कर बैठने […]

सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

मान जाने के बजाय मान करना मानव को प्रारंभ से ही ज्यादा रास आया है, जिसका पता कुछ-कुछ उसके ‘मानव’ नाम से भी चल जाता है. मुझे पूरा यकीन है कि उसे ‘मानव’ आम धारणा के विपरीत मनु से उत्पन्न होने के कारण नहीं, बल्कि उसके बात-बात पर मान कर बैठने के कारण ही कहना शुरू किया गया होगा.

हां, यह अवश्य है कि पहले ज्यादातर महिलाएं ही मान करती थीं, जिन्हें मानिनी नायिका कह कर संबोधित किया गया.

मानिनी नायिकाएं विभिन्न कारणों से अपने प्रेमियों या पतियों या फिर दोनों पर ही बहुत कोप करती थीं, जिस कारण आगे चल कर मान का एक अर्थ कोप भी हो गया. मानिनी अथवा कुपित नायिकाओं का कोप करना इतना आम था कि बड़े लोगों के घरों में, जिन्हें प्रासाद या राजप्रासाद कहा जाता था, ड्राइंग-रूम, बेड-रूम, स्टोर-रूम आदि के साथ-साथ एक कोप-रूम भी बनाया जाता था, जो कोप-भवन कहलाता था. मानिनी या कोपिनी नायिका वहां जाकर बैठ जाती थी और तब तक नहीं लौटती थी, जब तक कि उसे उचित मान देकर उसका मान भंग नहीं करवा दिया जाता था.

धीरे-धीरे महिलाओं को इस मान-मनौअल में मजा आना बंद हो गया, तो मान करने का काम पुरुषों ने संभाल लिया. पुरुषों में भी नेताओं ने इस कला को नये-नये आयाम दिये, जो अकसर सत्ता की मलाई में वाजिब लगनेवाला नावाजिब हिस्सा न मिलने पर अपने पद से इस्तीफा देकर मान प्रकट करने लगे और फिर इस बात के लिए बेचैन भी रहने लगे कि ऐसा न हो कि कोई मनाने ही न आये और उनका रहा-सहा मान भी भंग हो जाये.

चूंकि देश में अन्य सभी चीजों की तरह मान भी नेताओं ने ही सबसे ज्यादा पाया और खोया, अत: मान की हानि होने का खौफ भी उन्हें ही सबसे ज्यादा सताता है. यही कारण है कि जरा-सा आरोप लगते ही नेता आरोप लगानेवाले के खिलाफ मानहानि का दावा ठोंकने अदालत पहुंच जाता है. उसकी मानहानि के दावे की रकम सुन कर लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि अरे, जो नेता इतने घपलों-घोटालों में लिप्त रहा, कभी कोई चुनाव नहीं जीत नहीं पाया, उसका इतना बड़ा मान था, यह तो पता ही नहीं था!

हद तो तब होती है, जब हानिग्रस्त हो चुके अपने मान की कथित रूप से पुन: हानि होने पर वह फिर से उतनी ही रकम का दावा ठोंक देता है. लोगों को समझ नहीं आता कि हानि का मान भी क्या उतना ही हो सकता है, जितना मान की हानि का? समझ न आने पर वे मन ही मन कहने को बाध्य हो जाते हैं कि मान जाओ नेताओ, वरना तुम्हारे मान की जनता ऐसी हानि करेगी कि सारा मान-सम्मान भूल जाओगे!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें