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मुसलिम महिलाओं के अधिकार

रशीद िकदवई राजनीतिक टिप्पणीकार उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार अगर वास्तव में मुसलिम महिलाओं को उनके हक के लिए अपनी लड़ाई छेड़े हुए है और उनको उनका हक दिलाना चाहती है, तो राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कृषि भूमि में भी इन महिलाओं को उत्तराधिकारी बनाये जाने की वकालत करनी पड़ेगी. न सिर्फ वकालत, […]

रशीद िकदवई

राजनीतिक टिप्पणीकार

उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार अगर वास्तव में मुसलिम महिलाओं को उनके हक के लिए अपनी लड़ाई छेड़े हुए है और उनको उनका हक दिलाना चाहती है, तो राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कृषि भूमि में भी इन महिलाओं को उत्तराधिकारी बनाये जाने की वकालत करनी पड़ेगी. न सिर्फ वकालत, बल्कि इसके लिए पहले से बने कानून को भी उन्हें सख्ती से लागू करना होगा. इसके साथ ही नये प्रावधान लाने पड़े, तो उसे भी वे लायें, जिसको लेकर मुसलिम कानून (शरिया) में भी प्रावधान है. इस मसले पर राज्य की पूर्ववर्ती सरकारें, चाहे वह अखलेश यादव की सरकार हो या फिर मायावती की, किसी ने कोई काम नहीं किया. ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) ने भी कृषि भूमि और संपत्ति के अधिकार को लेकर मुसलिम महिलाओं के पक्ष में अपनी मांग बढ़ा दी है.

तीन तलाक के मुद्दे पर मुसलिम महिलाओं को अपने पक्ष में करनेवाली भाजपा को उत्तर प्रदेश में मिली आप्रत्याशित जीत से उत्साहित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इस विषय पर काम करना स्वागतयोग्य है.

योगी सरकार इन दिनों उत्तर प्रदेश में केंद्र की मोदी सरकार के एजेंडे पर काम कर रही है. मुसलिम महिलाओं में लैंगिक समानता को लेकर जिस तरह योगी आदित्यनाथ काम कर रहे हैं, उसके लिए उनकी तारीफ करना जायज है. वहीं तीन तलाक के अलावा भी मुसलिम महिलाओं के लिए संपत्ति में अधिकार को भी योगी को अपने एजेंडे में शामिल करना चाहिए, जिससे मुसलिम महिलाओं को उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में भी कुछ सुधार हासिल हो सके.

वर्तमान की बात करें, तो उत्तर प्रदेश में शादीशुदा बेटियों, माताओं, विधवाओं और बहनों को इसलामिक कानून के तहत कृषि भूमि में एक तिहाई हिस्सेदारी का सम्मान (ज्यादातर मामलों में) नहीं किया जा रहा है. योगी सरकार को जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम 1950 का पालन करते हुए इस ओर आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि यह कानून पुरुषों के अधिकारों के समाप्त होने के बाद भी महिलाओं के विरासत में मिली संपत्ति का अिधकार नहीं देता है.

साल 2005 में उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने अधिनियम की धारा 171 (2) और 174 में संशोधन किया था, लेकिन कृषि संपत्ति का वारिस होने का अधिकार केवल अविवाहित बेटियों को ही दिया गया था. जबकि विवाहित, अविवाहित, विधवा या तलाकशुदा महिलाओं को सपत्ति में अधिकार देना भी स्वीकार करना होगा. इसके लिए ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी वकालत कर रहा है कि ऐसी सभी महिलाओं को संपत्ति में अधिकार देना सुनिश्चित किया जाये, ताकि हमारे समाज में उनकी आर्थिक स्थिति को एक बल मिल सके.

यहां उल्लेखनीय यह भी है कि उत्तर प्रदेश में हाल ही में किये गये एक अध्ययन के अनुसार, केवल छह प्रतिशत महिलाओं के नाम ही जमीन है, एक प्रतिशत से भी कम महिलाएं किसी सरकारी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेती हैं, और सिर्फ दो प्रतिशत महिलाएं संस्थागत ऋण का उपयोग करती हैं. यही नहीं, इस सर्वे में केवल आठ प्रतिशत महिलाओं की कृषि से आय होना बताया गया है.

यह ध्यान देनेवाली बात है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में, कृषि भूमि पर राज्य का कानून तो महिलाओं को हक देता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह दिखता नहीं, बल्कि यह पुरुषों के नाम पर ही रहता है.

बेटियों को संपत्ति में अधिकार के नाम पर यह कह कर उनके हक से वंचित कर दिया जाता है कि उसकी शादी में ही दहेज के रूप में उसका हक दे दिया गया है. हालांकि, विधवाओं और बेटियों को कानूनी रूप से कागजों पर तो उनका नाम रहता है, लेकिन वास्तविकता में यह होता नहीं है.जानकारों की मानें, तो ये आंकड़े उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए काम करने का बेहतर अवसर देते हैं.

इसके आधार पर वह मुसलिम महिलाओं के लिए एक ‘योगी मॉडल’ बना सकते हैं, जिसके तहत कानून की मदद से वह मुसलिम महिलाओं को भूमि स्वामित्व सुनिश्चित करने के साथ ही उनकी कृषि आय बढ़ा कर उस पर नियंत्रण, उचित प्रशिक्षण, आसानी से क्रेडिट तक पहुंच, कौशल विकास और लैंगिक असमानता को भी वह कम कर सकते हैं. योगी आदित्यनाथ अगर इसमें सफल होते हैं, तो ‘मुसलिम महिलाओं के लिए योगी मॉडल’ का उपयोग अन्य भाजपा शासित राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम, झारखंड और अन्य राज्यों की सरकारों द्वारा भी इस मॉडल को अपनाया जा सकता है.

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