लोकसभा चुनाव में टिकट को लेकर जो विवाद पैदा हुआ, उसके कारण अब झारखंड में हेमंत सरकार संकट में आ गयी है. चाहे मामला झामुमो का हो, कांग्रेस का, या सरकार को समर्थन दे रहे छोटे-छोटे दलों का, कई विधायक या तो खुद टिकट चाह रहे हैं या फिर अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे हैं. यही विवाद बढ़ता गया. स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि झामुमो में ही विद्रोह जैसा माहौल बन गया.
पार्टी के विधायक हेमलाल मुरमू झामुमो से भाजपा में चले गये. साइमन मरांडी पार्टी अलग नाराज हैं. कांग्रेस के विधायक ददई दुबे तृणमूल में चले गये हैं. बंधु तिर्की और चमरा लिंडा भी तृणमूल की सदस्यता ले चुके हैं. तकनीकी तौर पर सरकार अल्पमत में आ चुकी है. बंधु और चमरा यह घोषित नहीं कर रहे कि वे सरकार को समर्थन दे रहे हैं या नहीं. चुनाव का वक्त है. अभी तक किसी दल ने राज्यपाल के पास विधिवत सरकार के अल्पमत में होने की बात नहीं उठायी है और न ही सरकार के शक्ति परीक्षण की मांग की है. भाजपा चुप है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में सारा ध्यान लगा है.
यानी यह हेमंत सरकार अल्पमत में होने के बावजूद विपक्ष के रहमोकरम पर चल रही है. किसी भी दल को सरकार गिराने की जल्दबाजी नहीं दिख रही. भाजपा को भरोसा है कि यह सरकार स्वत: गिर रही है फिर इसे गिरा कर क्यों बदनामी मोल ली जाये. यह संकट और गहराने का अनुमान है. झामुमो में विधायकों का एक बड़ा खेमा नाराज है. यह नाराजगी उस समय दिखी थी, जब तीन विधायक सुधीर महतो की पत्नी के पक्ष में खुल कर सामने आ गये थे. बड़ी मुश्किल से उस मामले को सुलझाया गया था.
ऐसी बात नहीं है कि उसके बाद झामुमो में सब कुछ शांत हो गया है. झामुमो के एक विधायक भाजपा से टिकट पाने के लिए प्रयास कर रहे हैं. उन्हें अगर टिकट मिल जाता है तो पार्टी के एक और विधायक कम हो जायेंगे. अगर साइमन गुस्से में पार्टी को अलविदा कहते हैं, तो यह संकट और गहरा हो जायेगा. अब सारी निगाहें झारखंड के विपक्षी दलों और विधानसभा अध्यक्ष पर है. अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. उनके पास मामले को लटकाने का अधिकार है और अगर वे ऐसा करते हैं तो सरकार को कुछ समय का जीवनदान मिल सकता है.