बाबा रामदेव की व्यथा विचित्र है. वे नरेंद्र मोदी के लिए चाणक्य की भूमिका निभाते हुए उन्हें गद्दी पर बिठाना चाहते हैं, पर रास्ते के अवरोधों को वह नजरअंदाज कर रहे हैं. उनका ‘भारत स्वाभिमान संगठन’ अपने अंजाम तक पहुंचने से पहले ही भाजपा से हाथ मिलाने को मजबूर हो गया. रामदेव अगर केजरीवाल या अन्ना सरीखे हमख्याल लोगों से तालमेल कर पाते, तो आज हालात अलग होते.
मोदी की राह में सबसे बड़ी बाधा है आम आदमी पाटी. मैं यह नहीं कहता कि केजरीवाल बहुत सारी सीटें ले आयेंगे अथवा वह प्रधानमंत्री के दावेदार बन जायेंगे. पर इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि उन्हें मिलने वाला अधिकतर मत भाजपा के होगा.
केजरीवाल से हाथ नहीं मिलाने के कई कारण भाजपा के पास हो सकते हैं, लेकिन बाबा रामदेव के साथ तो ऐसी बात नहीं. मोदी के लिए पूरे देश में अभियान चलाने वाले बाबा रामदेव ने कभी अपने समर्थकों के दिल में झांकने का प्रयत्न नहीं किया. अगर वह ऐसा करते, तो उन्हें पता चलता कि इनमें से काफी लोग बाबा के साथ केजरीवाल को भी पसंद करते हैं. अगर समय रहते उन्हें सही मार्ग नहीं मिला, तो मतों का विभाजन तय है.
इसके परिणाम का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है .देश में पहली बार किसी बाबा पर लोगों ने इतनी आस्था व्यक्त की. अगर वह इस अभियान को किसी तरह सफल कर लेते हैं, तो निस्संदेह युग परिवर्तन का नायक बनेंगे. परंतु इसके लिए उन्हें अपना अहं त्यागना चाहिए. सभी जानते हैं कि केजरीवाल से उनका वैचारिक मतभेद है. पर युग परिवर्तन के अभियान जैसे बड़े काम में छोटे-छोटे मतभेद भुला देने चाहिए. अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि सभी के सपने चकनाचूर हो जायें.
डी कृष्णमोहन, राजधनवार, गिरिडीह