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सुकमा का हल निकालें
सुकमा में एक बार फिर 25 जवान शहीद़. फिर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का वक्तव्य आया कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा और इसे हम चुनौती की तरह लेते है. सवाल है, आखिर कब तक देश के सपूत इस तरह अपने प्राणों की आहूति देते रहेंगे? जवान देश- समाज की सुरक्षा का व्रत लेते […]
सुकमा में एक बार फिर 25 जवान शहीद़. फिर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का वक्तव्य आया कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा और इसे हम चुनौती की तरह लेते है. सवाल है, आखिर कब तक देश के सपूत इस तरह अपने प्राणों की आहूति देते रहेंगे? जवान देश- समाज की सुरक्षा का व्रत लेते हैं, इसका यह मतलब नहीं कि वे सरकार की गलत नीतियों के एवज में अपने प्राण न्योछावर करते रहें? सरकार की पहली विफलता तो यह है कि वह उन परिस्थितियों को दूर नहीं कर पा रही, जिसके कारण लोग हथियार उठे हैं.
और यह सच है कि देश का 80 फीसदी संसाधन केवल 20 फीसदी लोगों के कब्जे में है़ दूसरी गलती कि बंदूक के सहारे बंदूकधारी को सुधारने की कोशिश हो रही रही है. अपराध को रोकने के लिए सरकार का बंदूक का सहारा लेना गलत नहीं है, मगर सामाजिक-आर्थिक कारणों से इसके लिए पैदा हो रही परिस्थितियों को जब तक हल नहीं किया जायेगा, तब तक सुकमा जैसी वारदातें नहीं रुकेंगी.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी
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