18.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

एक समग्र सोच की दरकार

।।अजय साहनी।।(सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ)छत्तीसगढ़ में हुए ताजा नक्सली हमले के बाद नक्सलवाद को लेकर बहस फिर तेज हो गयी है. यह हमला ऐसे समय हुआ है, जब माना जा रहा था कि राज्य में नक्सली कमजोर हो रहे हैं, पर इस बर्बर घटना ने साबित कर दिया है कि नक्सली अब भी पूरी मजबूती […]

।।अजय साहनी।।
(सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ)
छत्तीसगढ़ में हुए ताजा नक्सली हमले के बाद नक्सलवाद को लेकर बहस फिर तेज हो गयी है. यह हमला ऐसे समय हुआ है, जब माना जा रहा था कि राज्य में नक्सली कमजोर हो रहे हैं, पर इस बर्बर घटना ने साबित कर दिया है कि नक्सली अब भी पूरी मजबूती के साथ काम कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर नक्सली हमले से सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों की कमजोरी एक बार फिर सामने आ गयी है. ऐसी ही बहस कुछ समय पहले नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 76 जवानों के मारे जाने के बाद भी शुरू हुई थी, लेकिन स्थितियां कुछ समय बाद जस की तस हो गयीं.

अक्सर कहा जाता है कि नक्सल समस्या की मुख्य वजह सामाजिक और आर्थिक है. वैसे देखा जाये तो देश की हर समस्या की वजह सामाजिक और आर्थिक विषमता है. तो क्या देश में कानून व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत नहीं है? हर अपराध के पीछे कोई न कोई उद्देश्य होता है, पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन अपराधों पर लगाम लगाने के लिए आप क्या कार्रवाई करते हैं. देश में नक्सल समस्या कोई नयी बात नहीं है. बीते करीब 20 सालों से यह समस्या विकराल रूप धारण कर रही है. ऐसे में अहम सवाल यह है कि इन 20 सालों में सरकार ने नक्सल समस्या से निबटने के लिए क्या काम किया? सभी को मालूम है कि नक्सली भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ काम कर रहे हैं. इसके बावजूद उन्हें समय-समय पर इनाम दिया जाता है. सरकार का यदि मानना है कि नक्सल समस्या का समाधान विकास है, तो सरकार को विकास करने से किसने रोक रखा है. अगर यही मुख्य समस्या है तो सरकार ऐसे इलाकों में भी विकास का काम करके दिखाये, जहां नक्सली समस्या नहीं है. हकीकत यह है कि आज विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा नक्सली ही हैं. इसलिए मेरा मानना है कि विकास के सहारे ही नक्सल समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है.

नक्सल समस्या की मुख्य वजह इन इलाकों में प्रशासन का नहीं होना है. प्रशासन के बिना कानून का राज स्थापित नहीं हो सकता है. मध्ययुगीन काल में भी शासकों का अपने प्रभाव क्षेत्र में कानून होता था. वह कानून सही हो या गलत, सभी को उसका पालन करना होता था. लेकिन आज देश में हालात ऐसे बन गये हैं कि कई इलाकों में कानून लागू ही नहीं हो पा रहा है.

देश में किसी भी प्रकार की समस्या सामने आने के बाद नये कानून बनाने पर अधिक ध्यान दिया जाता हैं, उसे लागू करने की चिंता नहीं होती है. अभी क्रिकेट में स्पॉट फिक्सिंग मामला सामने आने के बाद भी एक नया कानून बनाने की बात हो रही है. लेकिन क्या यह कानून बन जाने के बाद क्रिकेट में स्पॉट फिक्सिंग रोकने की गारंटी सरकार ले सकती है? सवाल कानून बनाने का नहीं है, बल्कि कानूनों के क्रियान्वयन का है.

नक्सल समस्या 70 के दशक में पश्चिम बंगाल से शुरू हुई. हालांकि यह नक्सल आंदोलन कुछ वर्षो बाद सिमट गया, लेकिन 90 के दशक में यह फिर से जोर पकड़ने लगा. आज हालत यह है कि देश का एक चौथाई हिस्सा नक्सलवाद की चपेट में है. इसकी मुख्य वजह है इस समस्या को लेकर समग्र सोच का अभाव होना. नक्सलवाद को खत्म करने के लिए एक समग्र सोच के साथ व्यावहारिक और सख्त नीति अपनानी ही होगी. अब यह किसी राज्य का विषय नहीं रह गया है. अर्धसैनिक बलों की तैनाती के बाद भी नक्सली गतिविधियों में तेजी आयी है. इसलिए इसके पूर्ण खात्मे के लिए खुफिया तंत्र को मजबूत करना होगा. खुफिया जानकारी इकट्ठा कर नक्सली आंदोलन की कमर तोड़ी जा सकती है. साथ ही सुरक्षा एजेंसियों को खुली छूट मिलनी चाहिए. लेकिन नक्सलियों से सहानुभूति रखनेवालों पर कार्रवाई की बजाय हार्डकोर नक्सलियों को खत्म करने पर जोर दिया जाना चाहिए.

आंध्र प्रदेश में नक्सल समस्या काफी गंभीर थी. वहां की सरकार ने पहले शांति वार्ता की पहल की. साथ ही पुलिस को अपना काम करने की खुली छूट दी गयी. वार्ता के साथ पुलिस भी अपना काम करती रही. पुलिस के मुखबिर नक्सलियों में शामिल हो गये और उनसे मिलनेवाली जानकारी के आधार पर पुलिस ने नक्सलियों की कमर तोड़ दी. पुलिस की इस कार्रवाई के कारण 2006 तक आंध्र प्रदेश में नक्सल आंदोलन महज कुछ जिलों में सिमट कर रह गया. भले ही आंध्र सरकार का फैसला राजनीतिक तौर पर गलत था, पर सरकार ने पुलिस को खुली छूट देकर सही नीति अपनायी. जब आंध्र प्रदेश ऐसा कर सकता है, तो दूसरे राज्यों में भी नक्सली गतिविधियों को काबू में लाया जा सकता है. नक्सल समस्या अब सिर्फ विकास से जुड़ा मसला नहीं रह गया है. इस आंदोलन का उद्देश्य बदल गया है. कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर नक्सली हमले से साफ जाहिर होता है कि नक्सलियों का मुख्य मकसद भारतीय गणतंत्र की अवधारणा को चुनौती देना है. अगर अब भी सरकार नहीं जागी, तो नक्सल समस्या हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर कर देगी. मौजूदा समय में इस समस्या को सिर्फ राजनीतिक तौर पर हल नहीं किया जा सकता है. इसके लिए सतत सुरक्षा योजना बनानी होगी. राज्य और केंद्र को मिल कर एक समग्र योजना पर काम करना होगा. यूपीए सरकार ने नक्सल समस्या को समाप्त करने के लिए ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाया, पर राजनीतिक विरोध के कारण कुछ दिनों बाद इसे बंद कर दिया गया. सरकार में भी ऐसे समाधान को लेकर आम राय नहीं है.

इतनी तकनीकी प्रगति के बावजूद हजारों नक्सलियों के जमावड़े के बारे में जानकारी हासिल नहीं होने से साफ जाहिर है कि राज्य का खुफिया तंत्र कारगर नहीं है. अहम सवाल यह भी है कि आखिर इतने बड़े नेताओं के दौरों के दौरान एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसेड्योर) का पालन क्यों नहीं किया गया, जबकि नक्सल प्रभावित राज्यों में इसके पालन को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश हैं? ऐसा पहली बार नहीं है, जब ऐसे सवाल उठाये जा रहे हैं. इससे पहले की घटनाओं के बाद भी ऐसे सवाल उठाये गये थे, लेकिन हम सबक सीखने की बजाय अगली घटना का इंतजार करते रहते हैं. कांग्रेसी नेताओं की मौत के बाद भी कुछ दिनों की हाय-तौबा के बाद स्थितियां शायद पहले जैसी ही हो जायेंगी.

नक्सली ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर सुरक्षा बलों का मनोबल कमजोर करने की रणनीति अपनाते रहे हैं. अब समय आ गया है कि राजनीतिक विरोध को दरकिनार कर नक्सलियों के खिलाफ एक व्यापक मुहिम चलायी जाये. कार्रवाई में सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों के समन्वय से नक्सल समस्या को खत्म किया जा सकता है. हालांकि यह देखना बाकी है कि छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले से हमने कोई सबक सीखा या नहीं!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें