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बजट की सनसनी

डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार बजट सनसनी का दूसरा नाम है और वित्त मंत्री उसे पेश भी उसी तरह किया करते हैं, जैसे न्यूज-चैनल अपने ‘सनसनी’ या उससे मिलते-जुलते नामों वाले कार्यक्रम पेश करते हैं. नारा भी दोनों का एक ही रहता है- सोना है तो जाग जाओ! अंतर सिर्फ इतना है कि न्यूज-चैनल वाले […]

डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
बजट सनसनी का दूसरा नाम है और वित्त मंत्री उसे पेश भी उसी तरह किया करते हैं, जैसे न्यूज-चैनल अपने ‘सनसनी’ या उससे मिलते-जुलते नामों वाले कार्यक्रम पेश करते हैं. नारा भी दोनों का एक ही रहता है- सोना है तो जाग जाओ! अंतर सिर्फ इतना है कि न्यूज-चैनल वाले सोने का एक मतलब लेते हैं और वित्त मंत्री दूसरा. आम आदमी की नींद अलबत्ता दोनों ही हराम कर देते हैं.
बजट से पूर्व आर्थिक सर्वे और फिर बजट भी वित्त मंत्री को ही पेश करते देख सुखद आश्चर्य हुआ, वरना आशंका बनी हुई थी कि नोटबंदी की तरह इन्हें भी प्रधानमंत्री ही पेश न कर दें.
आर्थिक सर्वे और बजट का चोली-दामन का साथ है और यहां भी दामन उड़-उड़ कर यह अंदाजा करवाता रहता है कि चोली के नीचे क्या है या क्या हो सकता है. सर्वे में बताया गया कि जीडीपी और इंडस्ट्री की वृद्धि-दर घटेगी और जीएसटी से राजकोषीय लाभ मिलने में समय लगेगा. कच्चे तेल के घटे दाम से अप्रत्याशित राजकोषीय लाभ होने की उम्मीद भी जतायी गयी, जिसका यह मतलब बिलकुल नहीं कि आम आदमी अपने लिए भी पेट्रोल-डीजल के दाम घटने की उम्मीद लगा बैठे.
महीनाभर पहले आया बजट एक क्रांतिकारी बात है. इस क्रांति का कोई संबंध पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों से भी है, ऐसा सोचना भी पाप है. बजट के अनुसार, गरीब लोगों को अपनी गरीबी के साथ जितनी मौज-मस्ती करनी हो, कर लें, क्योंकि 2019 के बाद उनके पास यह मौका नहीं रहेगा. एक करोड़ परिवार तो अवश्य ही गरीबी से बाहर कर दिये जायेंगे. अलबत्ता इनमें वे लोग शामिल नहीं होंगे, जो गरीब न होते हुए भी जुगाड़ से बीपीएल-कार्ड बनवा कर गरीबी का पूरा लुत्फ उठा लेते हैं. 50,000 ग्राम-पंचायतों से भी गरीबी का तमगा छीन लिया जायेगा.
कृषि-क्षेत्र की वृद्धि-दर को उसकी अनिच्छा के विरुद्ध खींच कर 4.1 फीसदी पर लाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए किसानों को 10 लाख करोड़ रुपये का कर्जा दिया जायेगा. आत्महत्या के आकांक्षी किसान थोड़ा रुकें और कर्जा लेने के बाद ही आगे कदम बढ़ायें. मनरेगा, जिसका फुल फॉर्म प्रधानमंत्री ने पता नहीं कैसे, ‘कांग्रेस के विकास की कब्रगाह’ बताया था, के तहत 48 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया जायेगा. ‘दिल्ली तेरे बटुवे में गालिब का मजार’ कहनेवाले मोहम्मद अल्वी अभी होते, तो कांग्रेस की मजार रूपी मनरेगा का बटुवा भरने के लिए मोदी के गुण गाते.
रेलों की बढ़ती असुरक्षा को देखते हुए उनके लिए एक लाख करोड़ रुपये का सुरक्षा कोष गठित करने का प्रस्ताव किया गया है.रेल संबंधी सभी समस्याओं के समाधान के लिए कोच-मित्र होंगे, जो अपने आप में समस्या न बन जायें, यह देखना होगा. लेकिन, रेल-बजट को भी आम बजट से जोड़ देने से रेलमंत्री पर भला क्या बीत रही होगी? अब तक दो ही तो आकर्षण होते थे रेल मंत्री बनने के, जिसके लिए, खासकर गंठबंधन की सरकारों में, खूब मारामारी होती थी. एक तो जैसे भी हो, रेलगाड़ी को घसीट कर अपने विधानसभा-क्षेत्र तक ले जाना और दूसरे, रेल-बजट पेश करना.
ये आकर्षण भी खत्म हुए, तो भला कौन लगातार दुर्घटनाग्रस्त होती रेलों का मंत्री बनने के लिए आतुर होगा. आय वाले आयकर में मिली छूट से राहत का अनुभव भी कर सकते हैं. जिन्हें आय नहीं होती, उन्हें आयकर की चिंता वैसे ही नहीं सताती. बजट ने राजनीतिक दलों को चंदे से होनेवाली दो हजार रुपये से ज्यादा की नकद आय पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, जिसका कोई न कोई तोड़ वे ढूंढ़ ही लेंगे, वरना जनता की नजर में उनकी भला क्या साख रह जायेगी?

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