चीन में शीर्ष पदों और नौकशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई में बीते चार सालों में करीब दो लाख चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों को दंडित किया गया है. दिसंबर, 2012 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भ्रष्ट पार्टी सदस्यों पर लगाम लगाने के लिए आठ-सूत्री नियमों की घोषणा की थी. एकदलीय शासन व्यवस्था होने के कारण चीन में महत्वपूर्ण राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य ही काबिज होते हैं.
करीब नौ करोड़ सदस्यों की भारी-भरकम संख्या सरकार की पहलों की लिए बड़ी चुनौती है, पर दंडित सदस्यों की संख्या कार्रवाई के प्रभावी होने का ठोस सूचक जरूर है. इस संदर्भ में अगर भारत में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की कोशिशों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये, तो स्थिति बेहद निराशाजनक है. लोकतांत्रिक पारदर्शिता, स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वायत्त जांच एजेंसियों के बावजूद हमारा राजनीतिक तंत्र और प्रशासन व्यवस्था गंभीर भ्रष्टाचार से ग्रस्त है. जांच प्रक्रिया में सुस्ती से आरोपों की पड़ताल समुचित ढंग से नहीं हो पाती है और सुनवाई में देरी के कारण दोषियों को सजा दे पाना मुश्किल होता है. केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) के पास भ्रष्टाचार से जुड़े साढ़े छह हजार से अधिक मामले हैं. न्यायिक तंत्र तीन करोड़ से अधिक लंबित मुकदमों के बोझ तले दबा है और वह भ्रष्टाचार के मामलों की त्वरित सुनवाई कर सकने की स्थिति में नहीं है. पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार-निरोधक ब्यूरो भी कार्यरत है तथा सतर्कता आयोग जैसी सांविधिक संस्था भी अस्तित्व में है.
परंतु, राजनेताओं और निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों की बड़ी संख्या उच्च पदस्थ नौकरशाहों के साथ मिल कर घपले-घोटालों को अंजाम देती रहती है. संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं तथा बड़े प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए सरकारी अनुमति मिलने में अनावश्यक विलंब भी दोषियों के लिए ढाल बन जाता है. अगर किसी घोटाले का खुलासा भी होता है, तो कुछ दिन सुर्खियों में रहने के बाद उसे लोग भूल जाते हैं.
शीर्ष पदों से लेकर निचले स्तर तक भ्रष्टाचार के तार आपस में जुड़े हैं. यदि चीन में सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों के विरुद्ध कार्रवाई हो सकती है, तो भारत में तमाम संस्थाओं के होने के बावजूद राजनीतिक और प्रशासनिक बेईमानियों को क्यों नहीं रोका जा सकता है? चीन सरकार की पहल हमारे एक मिसाल बन सकती है.