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विमुद्रीकरण के आगे

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री नोटबंदी के तमाम लाभ प्रत्यक्ष दिखते हैं. पाकिस्तान में चल रही नकली नोटों की फैक्ट्रियों को झटका लगेगा. नेताओं द्वारा एकत्रित किये गये नोटों पर संकट आयेगा. प्राॅपर्टी तथा जूलरी के बाजारों में व्याप्त कालेधन पर अंकुश लगेगा. इन महत्वपूर्ण उपलब्धियों को हासिल करने के लिए आम आदमी को कुछ समय […]

डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
नोटबंदी के तमाम लाभ प्रत्यक्ष दिखते हैं. पाकिस्तान में चल रही नकली नोटों की फैक्ट्रियों को झटका लगेगा. नेताओं द्वारा एकत्रित किये गये नोटों पर संकट आयेगा. प्राॅपर्टी तथा जूलरी के बाजारों में व्याप्त कालेधन पर अंकुश लगेगा. इन महत्वपूर्ण उपलब्धियों को हासिल करने के लिए आम आदमी को कुछ समय तक परेशानी झेलनी पड़ेगी. आनेवाले समय में अर्थव्यवस्था प्लास्टिक मनी की ओर मुड़ेगी, जो कि सही दिशा में है. नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी. नकद के स्थान पर लोग अधिकाधिक पेमेंट चेक अथवा डेबिट कार्ड से करेंगे.
बैंक खाते के माध्यम से खरीद करने में अर्थव्यवस्था पर नोट छापने का बोझ कम पड़ता है. साथ-साथ टैक्स की चोरी पर अंकुश लगेगा. डेबिट कार्ड से किये गये पेमेंट की राशि विक्रेता के खाते में जमा होती है. जैसे आपने 1,000 रुपये की घड़ी खरीद कर डेबिट कार्ड से पेमेंट किया.
यह रकम दुकानदार के खाते में जमा हो गयी. दुकानदार इस रकम से घड़ी कंपनी को पेमेंट करेगा. कंपनी को घड़ी की बिक्री को अपने खाते में दिखाना होगा और इस पर टैक्स देना होगा. लेकिन, आम आदमी के लिए प्लास्टिक मनी का उपयोग कठिन होता है. चाय एवं सब्जी बेचनेवाले प्लास्टिक मनी को कम ही स्वीकार करेंगे. आम आदमी के लिए बैंक के खाते को आॅनलाइन देखना-समझना भी मुश्किल है. इसलिए सही दिशा में होने के बावजूद देश में प्लास्टिक मनी का फैलाव सीमित ही रहेगा.
नोटबंदी में समस्या है कि कालाधन पुनः पैदा हो जायेगा.
कालेधन के पैदा होने का मूल कारण टैक्स की दरों का अधिक होना है तथा भ्रष्ट नौकरशाही है. वर्तमान में एक्साइज ड्यूटी, सेल्स टैक्स तथा इनकम टैक्स का सम्मिलित बोझ लगभग 30 प्रतिशत पड़ता है. एक करोड़ प्रति माह का उत्पादन करनेवाली फैक्ट्री को 30 लाख का टैक्स देना होता है. मालिक के लिए लाभप्रद होता है कि सरकारी अधिकारी को दो लाख रुपये प्रति माह दे दे और 28 लाख की टैक्स की बचत कर ले. यह व्यवस्था पूर्ववत् बनी रहेगी. शीघ्र ही कालाधन पुनः प्रचलन में आ जायेगा. नेता फिर से कालेधन का उपार्जन करने लगेंगे. अतः कालेधन की मूल समस्या के समाधान के लिए टैक्स की दरों में कटौती तथा निचले स्तर पर सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर नकेल कसना जरूरी है. तब नेताओं के लिए कालेधन का उपार्जन करना भी कठिन हो जायेगा. दुर्भाग्य है कि इस दिशा में सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाये हैं. फलस्वरूप निचले स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ेगा.
कालेधन का प्रचलन कम होने से घड़ी कंपनी द्वारा एक्साइज ड्यूटी अदा करके ही बिक्री की जायेगी.अर्थव्यवस्था साफ होगी. अर्थव्यवस्था के इस शुद्धिकरण से सरकार को टैक्स ज्यादा मिलेगा, हाइवे ज्यादा बनाये जायेंगे, मनरेगा का विस्तार होगा, आधुनिक हथियार बनाये जायेंगे इत्यादि. लेकिन, यह प्रभाव पलट जायेगा, यदि बढ़े हुए राजस्व का उपयोग सरकारी खर्चों को पोषित करने के लिए किया जायेगा. जैसे बीते दिनों में सरकार ने सार्वजनिक बैंकों में पूंजी निवेश किया है. इन बैंकों के अधिकारी भ्रष्ट हैं. घूस लेकर माल्या जैसों को घटिया लोन देते हैं, जो बाद में खटाई में पड़ जाते हैं. इन्हें ही और पूंजी देने से धन की बरबादी बढ़ेगी.
नोटबंदी का एक अनकहा उद्देश्य सरकारी बैंकों में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुव्यवस्था पर परदा डालना है. नोटबंदी के कारण लोगों ने भारी मात्रा में घर में पड़े नाेटों को बैंकों में जमा करा दिया है.
इस धन को बैंक घूस लेकर माल्या जैसाें को अधिकाधिक वितरित कर सकेंगे. बैंकों द्वारा जमा रकम के एक अंश को सरकारी बांड में निवेश किया जायेगा. इससे सरकार के पास खर्च करने को धन आसानी से उपलब्ध हो जायेगा. वर्तमान में सरकार द्वारा इस रकम को सरकारी कर्मियों की खपत बढ़ाने में किया जा रहा है. सरकारी कर्मियों के पेट पहले ही भरे हैं. बढ़े हुए वेतन के एक अंश को इनके द्वारा सोना या स्विस चॉकलेट खरीदने अथवा विदेशी यात्रा में लगाया जायेगा. यह रकम देश से बाहर चली जायेगी. रॉफेल जेट की खरीद से भी यह रकम बाहर चली जायेगी.
बड़े नाेटों को निरस्त करने से हुई राजस्व की वृद्धि का अंतिम प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि इस रकम का प्रयोग किस दिशा में किया जाता है. यदि रकम का उपयोग हाइवे बनाने एवं मनरेगा की दर में वृद्धि के लिए किया गया, तो अर्थव्यवस्था चल निकलेगी. इसके विपरीत यदि बढ़े हुए राजस्व का उपयोग सार्वजनिक बैंकों के भ्रष्टाचार, सरकारी कर्मियों की खपत बढ़ाने को तथा रॉफेल जेट की खरीद के लिए किया गया, तो अर्थव्यवस्था गड्ढे में जा गिरेगी.
हाल में रेटिंग एजेंसियों- स्टैंडर्ड एंड पुअर्स तथा फिच ने कहा है कि भारत की सरकारी आय कम तथा खर्चा ज्यादा है. सरकारी बैंकों की हालत गड़बड़ है. इससे संकेत मिलता है कि सरकारी राजस्व के उपयोग में सुधार की जरूरत है. विमुद्रीकरण को सही दिशा देने के लिए टैक्स दरों में कटौती करनी होगी, टैक्स वसूली के निचले तंत्र में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना होगा एवं सरकारी खर्चों को उत्पादक दिशा में लगाना होगा.

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