युवा किसी भी राष्ट्र की शक्ति होते हैं और विशेषकर भारत जैसे महान राष्ट्र की ऊर्जा तो युवाओं में ही निहित है. अत: राष्ट्रीय परिदृश्य में युवाओं की भूमिका स्वत: सिद्ध है, पर जब यही युवा पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण के फेर में देश की संस्कृति, सभ्यता और अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों से दूर होकर वेलेंटाइन डे, फ्रेंडशिप डे जैसे न जाने कितने बेतुके तथाकथित दिवसों को बड़े उत्साह के साथ मनाते नजर आते हैं और जब इन्हें राष्ट्रीय महत्व के दिन भी याद नहीं रहते, तो मन में यह सवाल जरूर आता है कि आखिर हमारे युवा कहां जा रहे हैं?
कैसे हम इन पथभ्रष्ट युवाओं को अपनी शक्ति और ऊर्जा का स्नेत मान सकते हैं और कैसे इनके बल पर देश के विकास का स्वप्न देख सकते हैं? कहने का मतलब यह है कि प्रेमाभिव्यक्ति के लिए कोई एक दिन मनाने का फैशन बेतुका है.
अनिल सक्सेना, टेल्को, जमशेदपुर