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अब तो जागे अमेरिका
पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की मोदी सरकार की कोशिशों के बीच, इस साल के शुरू में पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले ने पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान और सेना के दोहरे चरित्र को फिर से उजागर कर दिया था. हालांकि, पाक हुकूमत द्वारा इस हमले की भर्त्सना और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन देने से […]
पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की मोदी सरकार की कोशिशों के बीच, इस साल के शुरू में पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले ने पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान और सेना के दोहरे चरित्र को फिर से उजागर कर दिया था. हालांकि, पाक हुकूमत द्वारा इस हमले की भर्त्सना और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन देने से एक उम्मीद जगी थी कि पाकिस्तान आतंकवाद को पोषित करने की नीति पर पुनर्विचार कर रहा है.
इसी उम्मीद में भारत ने पाकिस्तान की ज्वॉइंट इन्वेस्टिगेटिव टीम (जेआइटी) को पठानकोट में तहकीकात की इजाजत भी दे दी थी. लेकिन, पाक टीम ने वापस लौट कर तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया था. अब जबकि भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) पाकिस्तान में ऐश फरमा रहे पठानकोट हमले के मास्टरमाइंड जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी कर रही है, अमेरिका ने भी एनआइए को कुछ पुख्ता सबूत सौंपे हैं, जो साबित करते हैं कि इस हमले की साजिश पाकिस्तान में ही रची गयी थी.
अमेरिका ने बताया है कि पठानकोट हमले में शामिल आतंकियों ने जिस फेसबुक ग्रुप का इस्तेमाल किया था, वह पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा था. पंजाब पुलिस के एक एसपी को अगवा करने के बाद आतंकियों ने जिस नंबर पर फोन किया था, वह भी इसी ग्रुप से जुड़ा था. साथ ही आतंकियों को वित्तीय मदद मुहैया करानेवाले संगठन की दो वेबसाइट का संचालन भी पाकिस्तान के कराची शहर से हो रहा था. अमेरिका ने भारत को ये सबूत म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी के तहत सौंपे हैं.
लेकिन, कयास अब भी यही है कि पाकिस्तान तमाम सबूतों को नकारते हुए भारत के खिलाफ अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देता रहेगा. ऐसे में क्या आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका की यह जिम्मेवारी नहीं बनती है कि जब उसके पास अपनी जांच एजेंसियों से हासिल पुख्ता सबूत मौजूद हैं, तो वह पठानकोट हमले के गुनहगारों पर कड़ी कार्रवाई के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाये? भारत वर्षों से कहता रहा है कि पाकिस्तान बड़े पैमाने पर आतंकियों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर रहा है.
लेकिन, पाकिस्तानी पाखंड से वाकिफ होने के बावजूद अमेरिका द्वारा उसे भरपूर आर्थिक एवं सैन्य सहायता देने की अपनी नीति पर पुनर्विचार नहीं करना, अातंकवाद को लेकर अमेरिका के दोहरे रवैये का ही सबूत कहा जायेगा. हाल के वर्षों में आतंकवाद के तेजी से हो रहे वैश्विक प्रसार को देखते हुए अब यह जरूरी हो गया है कि अमेरिका अलग-अलग देशों में फल-फूल रहे आतंकी संगठनों के प्रति अलग-अलग रवैया अपनाना छोड़े.
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