झारखंड अपनी खनिज संपदा के लिए ही नहीं कला और संस्कृति के लिए भी जाना जाता है. कला एवं संस्कृति के लिए वर्तमान सरकार बधाई की पात्र है. परंतु इस दिशा में अभी और कार्य करने की आवश्यकता है. आवश्यकता है कि कला रूपी पैशन कलाकारों का प्रोफेशन बन सके. ढोलक और तबले पर थाप देनेवाली नन्हीं उंगलियां, रंग में सराबोर कूचियां थामे नाजुक हाथ और घुंघरू बांधे छोटे-छोटे पांव. डर है कि संगीत की ध्वनि समय के शोर में कहीं गुम न हो जाये, रंग अपनी अर्थवत्ता न खो दें.
कला को सिर्फ पुरस्कार की नहीं, अर्थ या पैसों की भी जरूरत है. क्योंकि कलाकारों को भी उस समृद्धि एवं सम्मान के साथ जीने का अधिकार है जो सम्मान एक समृद्ध पदाधिकारी आदि को उपलब्ध है. यूं तो रांची के राज्य संग्रहालय तथा रामदयाल मंडा कला भवन में कलाकारों को मंच उपलब्ध हो रहा है, परंतु इन छिटपुट प्रयासों से काम नहीं चलनेवाला है. जरूरत है कि राज्य की राजधानी रांची तथा अन्य जगहों पर भी मुंबई, बड़ौदा, दिल्ली, चंडीगढ़, वाराणसी, कलकत्ता तथा पटना आदि की तर्ज पर आवासीय फाइन आर्ट्स कॉलेज खोले जायें.
यदि अपने राज्य में इस तरह के कॉलेज होंगे तो आइएफए से मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स तक हमारे यहां के बच्चे अपने ही राज्य में करके यहां मुकम्मल नौकरी प्राप्त कर सकते हैं और पूरी दुनिया में झारखंड का नाम रोशन कर सकते हैं. हमारे राज्य के गांव-देहातों, कस्बों में भी एक से बढ़ कर एक छोटी उम्र के कलाकार हैं, परंतु ध्यातव्य हो कि 10वीं कक्षा तक आते-आते बस्तों के बोझ तले कहीं उनका हुनर तोड़ दम न तोड़ दे. सरकार से गुजारिश है कि राज्य में अधिक से अधिक फाइन आर्ट्स कॉलेज यथाशीघ्र खोले जायें.
उषा किरण, खेलगांव, रांची