।। चंचल।।
(सामाजिक कार्यकर्ता)
सादगी का मतलब.. कोइ चिखुरी को न समझाये. बहुत देखा है और जिया है. इस सादगी को वो देखें और समङों जिन्होंने सादगी देखा ही नहीं. यह 120 चैनल के जमाने में पैदा हुई पीढ़ी है, जिसने सियासत को ‘संदूक और बंदूक’ के साये में घूमते-टहलते देखा है, उसे यह सादगी लगती है. सादगी प्रचार की चीज नहीं है, जीने का सलीका है, समझे?
लाल्साहेब की बात पर चिखुरी भड़क गये. चिखुरी की बात को तस्दीक किया कयूम मियां ने, जिन्हें गांव के मनबढ़ लौंडे चिखुरी का चमचा बोलते हैं, पर आड़ में. चिखुरी और कयूम का सुर एक ही रहता है. हर संजीदा सवाल का हल गांधी से निकालने में दोनों को महारत हासिल है. चिखुरी सुराजी हैं. जेल काटे हैं और कयूम अपनी दोस्ती में चिखुरी से जो भी सुनते रहे हैं उन्हें जस का तस बयान करते हैं- ‘मुल्क आजाद होई रहा था, अख्खा देश आजादी के जश्न में डूबा रहा. एक शख्स ऐसा भी रहा जो दूर कलकत्ते में बैठा मुल्क के बंटवारे का शोक मना रहा था. कलकत्ता जल रहा था. वह एक अकेला शख्स कलकत्ता को बुझाने में जुटा था. उसका नाम है महात्मा गांधी.’ लखन कहार को ‘डाओट’ हुआ – मुला प्रेंसिपल साहेब कुछ और ही बतावत रहे.’
कयूम प्रिंसिपल के नाम से खुंदक खाते हैं. एक बार प्रिंसिपल ने कयूम के वोट को खुदै दे आये रहे और चुनाव चिह्न् बैल जोड़ी की जगह ‘दिया’ लगाय दिये रहे. तब से दोनों के बीच लंबी खुंदक है.
किस प्रिंसिपल की बात करते हो जी, वे तो बस नाम के ही हैं. बहुत दिनों तक गांव में झूठ बोल के रूआब बनाये रहे, लेकिन जब से परधान क लड़िका बनारस से पढ़ के लौटा है उनकी घिघ्घी बंध जाती है. जब ऊ गांधी, लोहिया, आचार्य, जेपी अउर पता नहीं किसकी-किसकी बात करता है, तो लगता है इ दिया वाले पता नहीं कहां से का-का पढ़े बैठे हैं. गांधी के बारे में उहै बताये रहा कि गांधी बंटवारे के सख्त खिलाफ रहे. चिखुरी ने कयूम को तस्दीक किया- बापू की तो बात ही छोड़ो, नेहरू, पटेल, कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव, लोहिया कितना नाम गिनाऊं, अपने कपरूरी ठाकुर को ही देखो. कम्बख्त.. नयी राजनीति है. संदूक-बंदूक वाले को राजनीति में किसने बिठाया? वह अपने से तो बैठा नहीं, तुमने वोट किया, वह जीता और तुम्हारा मालिक बन बैठा. गलती खुद करोगे गरिआओगे राजनीति को, बकोगे संसद के खिलाफ.
उमर दरजी को ऐसे वक्त की तलाश रहती है – लेकिन उन सादगी वालों की औलादें..? चिखुरी फिर हत्थे से उखड़े- ‘सुन बे उमर तैं का जाने. यह जनता के हाथ की चीज है. जैसा निजाम चाहो वैसा बनाओ. यह अधिकार हमारे पुरखे हमें दे के गये हैं. जो गलत हो उसकी नकेल पकड़ो न. संसद ही सब कुछ नहीं होती, सड़क भी मायने रखती है. इंदिरा गांधी दुनिया की सबसे बड़ी ताकतवर महिला थीं. बहक गयीं. सत्ता मोह में उलझ गयीं. एक 72 साल के बूढ़े नौजवान ने हुकूमत हिला कर रख दिया. उनका नाम जेपी है. जब इंदिरा गांधी गद्दी से हटीं, तो वही जेपी उन्हें ढाढस भी देने पहुंचे. दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोये. कम्बख्त अपना देश ही कबाड़ा हो गया है. मतभेद और मनभेद का मतलब ही नहीं समझता. जिस दिन यह समझ आ जायेगी, मुल्क जवान हो जायेगा. और सुन, हम मुतमईन हैं एक दिन फिर इस मुल्क में बापू डगर दिखायेंगे. यह जो नकली सादगी चकल्लस कर रही है उसे उघार तो होने दो.’ चिखुरी ने रुक कर सांस ली. जब भी चिखुरी सांस लेते हैं, मूछों पर ताव देते हैं. तब कोइ न कोइ टपक पड़ता है लिहाजा लाल्साहेब ने मौका लपक लिया.
‘ससुरा दिल्ली भी कमाल की जगह है. भूंसी सुलगेगी चांदनी चौक में धुंआ उठेगा गांव की मुडेर पर.’ नवल उपाधिया बहुत देर से संजीदा रहे, यह उनकी आदत के खिलाफ है. दद्दा! फागुन आवा मूड़े पे. बसंत पंचमी सामने है. कयूम ने याद दिलाया- ऐसे नहीं है बरखुरदार ऐसे है सुनो- फागुन चढ़ ग तून्ने पे.. जोर का ठहाका लगा. नवल की साइकिल उठ गयी. घंटी बजी. नवल ने सुर भरा- सरसैया क फुलवा झर लागा, फागुन में बाबा दीवार लागा. हबीब की बीवी बकरी हांक रही थी, उसे लगा कि उसे देख कर नवल ने यह सुनाया है, उसने पहले बकरी को फिर नवल को भद्दी सी देसी गाली दी. अगल बगल से हंसी का फुआरा उठा. बेगम अख्तर मुद्दत बाद रेडियो पर थीं. हमरी अटरिया पे आओ बलमुआ, देखा देखी तनिक होय जाय.. आवाज दूर तक जा रही थी..
चिखुरी ने लंबी सांस भरी- ‘कम्बख्त मजहबी जुनून ने इस आवाज को भी नहीं पहचाना और चाकू भोंक दिया. हम कितने नाशुक्रे हैं कभी गणोश शंकर विद्यार्थी को कभी बेगम को अपने जुनून से हलाक कर रहे हैं. कोइ तो इनका हिसाब पूछेगा.’ चिखुरी की आंख गीली होने के पहले कयूम उठ गये. एक-एक करके सब उठे और उठ कर चले गये, लेकिन चिखुरी अकेले तखत पर बैठे दूर तक कुछ देखते रहे, अपलक..