देश के सबसे बेहतरीन हॉकी खिलाड़ियों में शुमार मोहम्मद शाहिद ने लंबी बीमारी से जूझते हुए हमेशा के लिए आंखें मूंद ली हैं. हर तरफ से संवेदनाओं का ज्वार उमड़ रहा है. किसी को मास्को ओलिंपिक में हॉकी का स्वर्णपदक याद आ रहा है, किसी को दिल्ली एशियाड की हॉकी का रजत पदक, तो कोई सोल एशियाड में भारतीय हॉकी टीम को हाथ लगे कांस्य पदक की याद दिला रहा है.सब एक स्वर से स्वीकार रहे हैं कि भारतीय हॉकी के गौरव के इन क्षणों पर मोहम्मद शाहिद की हॉकी स्टिक की जादुई छाप है.
कोई बताना चाह रहा है कि जिस तरह 1980 के दशक में भारतीय क्रिकेट को कपिल देव ने दुनिया का सिरमौर बनाया, उसी तरह मोहम्मद शाहिद ने अपनी बेमिसाल ड्रिब्लिंग और तेज मैदानी दौड़ के बूते भारतीय हॉकी टीम के जलवे को कायम रखा. उनका कमाल यह है कि ऐसा उन्होंने उस दौर में किया, जब हॉकी की दुनिया एकदम से बदल गयी थी. तब जोर कलाइयों के लोच के जरिये स्टिक पर गेंद को चिपका कर विपक्षी को छकाने पर नहीं, बल्कि तेज और लंबे पास देकर गेंद को बहुत दूर से सीधे गोलपोस्ट में दाग देने पर आ गया था. संवेदनाओं के इस उमड़े हुए ज्वार के बीच क्या यह मान लें कि अपने हुनर में बेमिसाल इस खिलाड़ी को चूंकि देश ने पद्म पुरस्कार और अर्जुन अवाॅर्ड से नवाजा, सो उसका कोई उधार हम पर नहीं है?
चंद हफ्ते पहले गुड़गांव के मशहूर मेदांता अस्पताल में भर्ती होने से पूर्व वे अपने शहर बनारस में बेहतर इलाज के लिए तरस रहे थे. आखिरकार, प्रसिद्ध खिलाड़ी धनराज पिल्लई को प्रधानमंत्री कार्यालय, खेल मंत्रालय और खेल संघों से गुहार लगानी पड़ी कि मोहम्मद शाहिद की सुध-बुध ली जानी चाहिए. सरकार ने मदद तो की, पर एकदम आखिरी वक्त में. और, एक कटु सत्य यह भी है कि भारतीय रेलवे ने उन्हें 18 सालों तक एक अदद प्रमोशन के लिए तरसाये रखा, जहां वे 1996 से नौकरी कर रहे थे.
लेकिन, इस स्वाभिमानी खिलाड़ी ने न तो शिकायत की और न ही अपने रुतबे का रौब दिखाया. भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ी और शानदार व्यक्तित्व के धनी मोहम्मद शाहिद को प्रभात खबर की विनम्र श्रद्धांजलि!