17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कश्मीर का समय-चक्र

धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले कश्मीर का समय-चक्र किसी ऐसे गड्ढे में फंस गया लगता है, जहां वह दशकों से घूम तो रहा है, आगे नहीं बढ़ पा रहा. नयी सदी के शुरुआती कुछ वर्षों में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कोशिशों के असर से जगी उम्मीदों को छोड़ दें, तो हर बार यही […]

धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले कश्मीर का समय-चक्र किसी ऐसे गड्ढे में फंस गया लगता है, जहां वह दशकों से घूम तो रहा है, आगे नहीं बढ़ पा रहा. नयी सदी के शुरुआती कुछ वर्षों में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कोशिशों के असर से जगी उम्मीदों को छोड़ दें, तो हर बार यही हो रहा है- घाटी में फिर से उबाल और हिंसा की खबरें आती हैं, फिर सुरक्षा बलों की कार्रवाई और कुछ दिनों के कर्फ्यू के बाद हालात को सामान्य घोषित कर बात खत्म. कश्मीर एक बार फिर अशांत है. हिजबुल कमांडर बुरहान वानी की आठ जुलाई को मुठभेड़ में मौत के बाद भड़की हिंसा में 44 लोग मारे जा चुके हैं. तनाव के मद्देनजर कई इलाकों में 11वें दिन भी कर्फ्यू है.

प्राइवेट टेलीकॉम ऑपरेटर्स की सेवाएं बंद हैं. बीते तीन दिनों से घाटी में अखबार नहीं छपे हैं. लेकिन, इन सबके बीच सोशल मीडिया पर दो ऐसे पत्र वायरल हो रहे हैं, जिन्हें जरा ठहर कर पढ़ा जाये, तो पता चलता है कि कश्मीर का समय-चक्र वास्तव में किस गड्ढे में फंसा है. पहला खुला पत्र मेजर गौरव आर्या ने सेना और भारत सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे कश्मीरियों के नाम लिखा है, जिसमें एलान है कि ‘अगर तुम भारतीय सेना के खिलाफ लड़ रहे हो, तो ये जान लो, सेना तुम्हें जान से मार देगी.’

जबकि इसके जवाब में दूसरा खुला खत एक कश्मीरी युवा का है, जिसने विनम्रता से आम कश्मीरियों का दर्द बयां करते हुए पूछा है कि ‘अगर मैं आज दिल्ली में विरोध-प्रदर्शन करूं, तो क्या वहां भी मुझे गोली मार दी जायेगी?’ साथ में उसकी सलाह भी है- ‘कश्मीरियों को अंधा, अपाहिज बना देना या मार डालना कोई बहादुरी नहीं है. आप अपने ऊंचे घोड़ों से उतरिये और उन्हें एक इनसान के तौर पर देखिए.’ दरअसल, सोच के इन दो सिरों के बीच का फासला ही वह गड्ढा है, जो समय-चक्र को रोक रहा है. इस सोच के एक सिरे पर सेना और शेष भारत के लोग हैं, तो दूसरे सिरे पर कश्मीर की नयी पीढ़ी.

कश्मीर समस्या का कोई समाधान तभी मिल सकता है, जब सोच के इस फासले को पाटने की ईमानदार कोशिश होगी. हालांकि अपने जवाबी खत में मेजर आर्या ने बेहद संजीदगी से सेना की चुनौतियों का जिक्र किया है. उधर, केंद्रीय गृह मंत्री ने संसद में एलान किया है कि कश्मीरियों से बातचीत के लिए वे खुद कश्मीर जायेंगे. उम्मीद करनी चाहिए कि दोनों पक्ष खुले मन से सकारात्मक संभावनाओं की तलाश करेंगे और हताशा की ऊर्जा को संकल्प की दिशा में मोड़ने में कामयाब होंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें