भ्रष्टाचार हमेशा विकास की राह में बड़ी बाधा साबित होती है और इसके पनपने का सबसे बड़ा कारण होता है पारदर्शिता का अभाव. हम भारतीय इसके भुक्तभोगी रहे हैं और गाहे-ब-गाहे इसके विरुद्ध आवाज भी उठाते रहते हैं. इस निराशाजनक परिदृश्य में अब एक संतोषजनक खबर यह आयी है कि भारतीय कंपनियां सांगठनिक रूप से उत्तरोत्तर पारदर्शी होती जा रही हैं.
सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पारदर्शिता पर निगाह रखनेवाली प्रतिष्ठित वैश्विक संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले 15 देशों की 100 से अधिक कंपनियों का अध्ययन किया गया है. इनमें सभी भारतीय कंपनियों ने सांगठनिक पारदर्शिता में 75 फीसदी या इससे अधिक स्कोर हासिल किया है. यह औसत अन्य देशों की कंपनियों से बहुत अधिक है. इस मामले में चीनी कंपनियों का रिकॉर्ड सबसे खराब है. भारत की बेहतर स्थिति का बड़ा कारण ठोस कंपनी एक्ट का होना है, जबकि चीन में भ्रष्टाचाररोधी कानून या तो हैं ही नहीं, या फिर बहुत ही कमजोर हैं.
इस अध्ययन में ब्राजील, मैक्सिको और रूस की कंपनियां भी शामिल की गयी हैं और कुल 54 कंपनियों का स्कोर 50 फीसदी या इससे अधिक रहा है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अधिक पारदर्शी होने का सुझाव दिया है, ताकि बढ़ते भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सके और आर्थिक विकास का लाभ ज्यादा-से-ज्यादा आबादी तक पहुंचाया जा सके. हालांकि भारत को इस रिपोर्ट से अधिक संतुष्ट होने की जरूरत नहीं है.
कुछ दिन पहले ही जारी हुई ग्लोबल फ्रॉड सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट में 285 कंपनियों के अध्ययन के बाद बताया गया था कि जिन कंपनियों में कॉरपोरेट भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलीं, उनमें से 25 फीसदी कंपनियां भारतीय हैं. भारत की 80 फीसदी से अधिक कंपनियों ने निवेश, व्यापारिक लेन-देन आदि में घपले से पीड़ित होने की बात भी कही थी.
ऐसे में यह जरूरी है कि सरकारें और कंपनियां विभिन्न रिपोर्टों, दस्तावेजों तथा अपने अनुभवों के आधार पर भ्रष्टाचार को रोकने तथा पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में अपने प्रयासों को और तेज करें. इस संबंध में नियम-कानूनों को कठोर करने, व्यापारिक प्रक्रिया को सरल बनाने तथा आर्थिक विकास के लाभ को समुचित रूप से बांटने की दिशा में ठोस पहल की जरूरत है.