अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
उत्तर प्रदेश के मथुरा के जवाहरबाग में एक व्यक्ति (रामबृक्ष यादव) कई साल से समानांतर सरकार चला रहा था. जवाहरबाग पर उसका कब्जा था. यहां उसने सरकार की अरबों की जमीन पर कब्जा कर रखा था. अपना गिराेह बना रखा था. इस गिराेह के पास अत्याधुनिक हथियार थे. उसकी दादागीरी देखिए. जाे चाहता था, वह करता था. जवाहरबाग में आनेवालों और वहां टहलनेवालाें से परिचयपत्र मांगता था, टैक्स (प्रवेश शुल्क) वसूलता था. उस इलाके काे स्वतंत्र मानता था. खुद काे स्वतंत्र कहता था. कई साल से यह धंधा चल रहा था.
जब उस इलाके काे खाली कराने के लिए पुलिस गयी, ताे उस पर हमला कर दिया, जिसमें युवा एसपी मारे गये. पुलिस ने जब जवाबी कार्रवाई की, ताे उसमें खुद रामबृक्ष यादव भी मारा गया. उसके साथी भी मारे गये.
यह घटना भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत है. जहां कानून का राज हाेना चाहिए, वहां अगर काेई कानून की धज्जियां उड़ाता हुआ, खुद की सेना तैयार करता है आैर राज करता है, ताे यह तब तक संभव नहीं है, जब तक उसे सत्ता का समर्थन हासिल न हाे. ऐसी बात नहीं है कि किसी काे रामबृक्ष यादव की राष्ट्रविराेधी गतिविधियाें की जानकारी नहीं थी.
राजनेता हाें या अफसर, सभी काे यह जानकारी थी. अफसराें ने कई बार इस संबंध में सरकार काे पत्र लिखा था, लेकिन अधिकारियाें काे कार्रवाई के लिए खुली छूट नहीं मिली. उसका संपर्क इतना मजबूत था कि पुलिस कड़ी कार्रवाई कर ही नहीं सकती थी. ऐसी भी घटनाएं घटीं, जब पुलिस वहां गयी हाे आैर उसे बंधक बना लिया गया था.
राजनेताअाें ने वाेटबैंक की राजनीति में देश काे दावं पर लगा दिया है. उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण इतने तगड़े हैं कि अफसर उसमें उलझना नहीं चाहते. लेकिन यूपी के नेता यह नहीं समझ सके कि आज जिस अपराधी काे अपने हित के लिए बढ़ावा दे रहे हैं, कल वही उनके गले की हड्डी बननेवाला है. अब वहां की सरकार मुंह छिपा रही है.
देश की राजनीति ने पहले भी ऐसे रामबृक्षाें काे, नेताआें काे पैदा किया, बढ़ावा दिया आैर इसका खामियाजा भी भुगता. 1980-84 के बीच पंजाब इसी कारण जला था. भिंडरावाला के आतंक को अॉपरेशन ब्लू स्टार से खत्म किया गया. जिन दिनाें रामबृक्ष यादव या भिंडरावाले या काेई अन्य, ऐसी गतिविधियाें में शामिल हाे रहा था, उसी दिन कार्रवाई हाेनी चाहिए थी. अगर उन दिनाें यह कार्रवाई हाे गयी हाेती, ताे शायद भिंडरावाले आगे पनप नहीं पाता.
मथुरा में अगर रामबृक्ष यादव काे वहां की सरकार, उनके मंत्रियाें का संरक्षण नहीं मिला हाेता, पुलिस काे कार्रवाई करने की छूट मिली हाेती, ताे शायद वह इतना ताकतवर कभी नहीं बन पाता. यह कैसे संभव है कि उसके अड्डे पर अनगिनत हथियार हाें, बम-गाेला, बारूद भरे हाें आैर किसी काे पता नहीं. सच ताे यह है कि नेताआें के संरक्षण में यह धंधा फल-फूल रहा था. धार्मिक विचारधारा का भी अपने धंधे काे फैलाने के लिए रामबृक्ष ने इस्तेमाल किया था.
स्वार्थ की राजनीति से ऐसे रामबृक्ष पैदा हाेते हैं. जमीन के धंधे में पैसा हाेता है. मथुरा की वह जमीन अरबाें की थी. जमीन माफिया से लेकर नेता तक इसमें शामिल थे. सरकार की जमीन पर कब्जा कर लेना आैर जब पुलिस खाली कराने आये ताे हमला बाेल देना, यह सब देश के अन्य हिस्साें में भी छाेटे पैमाने पर हाे रहा है.
सरकारी जमीन, सड़काें पर कब्जा कर लेने के बाद उन्हें तभी हटाया जाता है, जब उन्हें कहीं आैर बसाने के लिए जमीन दे दी जाती है. यह शुद्ध राजनीति है. सरकार के ऐसे निर्णयाें से ही अतिक्रमणकारियाें का मनाेबल बढ़ता है. अगर अदालत बीच में हस्तक्षेप नहीं करे, खाली कराने का आदेश नहीं दे, ताे शायद सत्ता में बैठे लाेग कभी भी अतिक्रमणकारियाें काे नहीं हटायेंगे.
आज देश के कई राज्याें में लाखाें एकड़ सरकारी जमीन पर किसी आैर का कब्जा है. वहां जब खाली कराने के लिए पुलिस जाती है, ताे विराेध हाेता है. पुलिस पर हमले हाेते हैं. विरोध करनेवाले वैसे नेता-चेहरे सामने आते हैं, जिनका वहां वाेट बैंक हाेता है. ऐसे कदमाें से कब्जा करनेवालाें का मनाेबल बढ़ता है. बेहतर है सरकार अब भी चेते.
ऐसे तत्वाें काे शह देना बंद करे. कार्रवाई करे. अगर संबंधित राज्याें की सरकार अपराधियाें का अपने हक में इस्तेमाल करेगी, ताे मथुरा जैसी घटना हाेती रहेगी. बेहतर है कि ईमानदार अफसराें काे बढ़ावा मिले. यह तभी संभव है जब राजनीति में बैठे लाेग ईमानदारी बरतें. जाति-धर्म आैर वाेट बैंक की राजनीति से ऊपर उठ कर राज्य-देश काे सर्वाेपरि मानें. ऐसा कर ही कानून का राज स्थापित किया जा सकता है आैर रामबृक्ष यादव जैसे अपराधियाें काे राेका जा सकता है.