माना कि हमारा देश विकसित हो रहा है. लेकिन, जिनके कारण हमारे देश की शान व गरिमा झलकती है, वो आज कष्ट में हैं. ‘किसान’, यह नाम आज देश के प्रमुख लक्ष्यों में कम ही देखे जाते है.
एक दशक से जिन किसानों के ऊपर ब्याज, गिरवी, उधार, भ्रष्टाचार जैसे शब्द ऐसे गिरे हैं, जैसे शांत कुएं में पत्थर. जब पत्थर ज्यादा प्रभावी हमला करने लगते हैं, तब कुएं का पानी मुख से ऊपर दिखता है. ऐसे में आत्महत्या जैसे शब्द सामने आते हैं. कौन जिम्मेवार है? क्या करें… जिससे किसानों के कष्ट कम हो और उन्हें बोझरहित जिंदगी मिल सके.
अमन कुमार चौधरी, ई-मेल से