डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
होती होंगी छह ऋतुएं किसी जमाने में. अब तो ले-देकर दो ही ऋतुएं देश में होती हैं- एक बाढ़-ऋतु और दूसरी सूखा-ऋतु. इधर कुआं, उधर खाई की तरह देश में इधर सूखा तो उधर बाढ़ होती है और जनता को दोनों में से किसी से भी ग्रस्त होकर मरने की आजादी रहती है. किंतु साहित्य में इन ऋतुओं का कोई ढंग का वर्णन देखने को नहीं मिलता.
बाढ़-ऋतु के बारे में तो फिर भी यह दलील दी जा सकती है कि बहुत संभव है, उसका वर्णन हुआ हो, जो अपने रचयिताओं के साथ बाढ़ में ही बह गया हो, किंतु सूखा-ऋतु का क्या? बेशक इस अभाव की पूर्ति होनी चाहिए. चूंकि इस लक्ष्य की पूर्ति का बीड़ा उठाने के लिए कोई और कवि, संभवत: इस कारण से कि बीड़े की जगह बीड़ा क्यों है और अद्धा या पौवा क्यों नहीं है, सामने आता दिखाई नहीं देता, अत: मैं ही अपनी काव्य-प्रतिभा का परिचय देते हुए इस शुभ कार्य को करने का प्रयास करता हूं.
।। अहा, गांव में फिर सूखा पड़ा. चारों तरफ सूखे की छटा छायी है. इधर सूखा, उधर सूखा. जिधर देखता हूं, उधर सूखा. यहां तक कि जिधर नहीं भी देखता हूं, उधर भी सूखा. इस भांति, कवि कहता है कि, बाढ़ का आनंद लेने के बाद अब ग्रामवासी सूखे का मजा चखने को मजबूर हैं।।1।।
।। कुत्ते, भैसें, गायें और अन्य पालतू पशु (अपनी-अपनी) जीभ बाहर लटकाये हांफते हुए शोभा को प्राप्त हो रहे हैं. कुछ ढोर ऐसे भी हैं, जो चारे और पानी के अभाव में ढेर होने में लगे हैं. वृक्षों से रह-रह कर पक्षीगण भी जैसे उनकी सहानुभूति में पट-पट जमीन पर आ गिरते हैं. कवि कहता है कि पट-पट की ध्वनि जमीन पर गिरनेवाले पक्षी करते हैं या खुद जमीन, इसमें विद्वानों के बीच भारी मतभेद है।।2।।
।। न जल में कुंभ रहा और न कुंभ में जल. मनुष्य के प्राणों की कीमत भी उधर पानी से भरे घड़े जितनी भी नहीं रही. घड़े-भर पानी के लिए जानें ली-दी जा रही हैं. कवि कहता है कि और तो और, पानी के अभाव में शवों का अंतिम संस्कार भी बिना नहलाये ही किया जा रहा है।।3।।
।। उधर प्रशासन जो है, इस बात के लिए सचेष्ट है कि भूख से हुई मौतों को प्रमाणित न किया जा सके. लू पड़ने से उसे और सुविधा हो गयी है. भूख-प्यास से मरनेवाले लोग उसके अनुसार भूख-प्यास से न मर कर लू से मरते हैं, मानो लू से मरना कोई खास बात न हो. कवि कहता है कि इस प्रकार ताजा स्थिति यह है कि लू से अब तक आधे आदमी तो गांव में मर चुके हैं और शेष इसी कारण मरने को तैयार बैठे हुए हैं।।4।।
।। केंद्र सरकार सूखे को लेकर सूखाग्रस्त राज्यों की सरकारों से भी ज्यादा उत्साहित है और उत्साह-उत्साह में कहीं पानी की ट्रेनें बिना पानी भरे ही भेजे दे रही है, तो कहीं पानी रखने का इंतजाम देखे बिना ही. दोनों ही हालतों में ट्रेनें बैरंग लौटाई जा रही हैं. पद्मश्री आदि के लालच में कवि कहता है कि फिर भी केंद्र सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. उसने तो अपना काम कर दिया, अब उन राज्यों की सरकारें जानें या फिर सूखा-पीड़ित।।5।।
।। इधर सूखा पड़ा, उधर नेता लोगों को सूखा-पीड़ित क्षेत्रों का दौरा कर सूखे के साथ सेल्फी लेने का सुअवसर मिला. कवि कहता है कि उसके क्षेत्र के नेता ने उसे साक्षी मानते हुए विधिवत यह प्रतिज्ञा की कि जब तक सूखा पड़ना जारी रहेगा, तब तक वे सूखा-पीड़ितों की सहानुभूति में केवल सूखे मेवों पर ही निर्वाह करेंगे।।6।।
।।इति कविवर सुरेशकांतविरचित सूखाऋतुवर्णन: समाप्तप्राय:।।