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शराबबंदी की गूंज

बिहार में पांच अप्रैल से लागू हुई पूर्ण शराबबंदी की गूंज अब प्रदेश की सीमाओं से बाहर, देश ही नहीं, विदेशों में सुनाई देने लगी है. इस समय तमिलनाडु में जारी विधानसभा चुनाव में शराबबंदी एक मजबूत मुद्दा बन कर उभरा है. ब्रिटेन के प्रमुख अखबार ‘द गार्जियन’ ने इस पर एक विशेष रिपोर्ट तैयार […]

बिहार में पांच अप्रैल से लागू हुई पूर्ण शराबबंदी की गूंज अब प्रदेश की सीमाओं से बाहर, देश ही नहीं, विदेशों में सुनाई देने लगी है. इस समय तमिलनाडु में जारी विधानसभा चुनाव में शराबबंदी एक मजबूत मुद्दा बन कर उभरा है. ब्रिटेन के प्रमुख अखबार ‘द गार्जियन’ ने इस पर एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है.
रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु में बड़ी संख्या में अवयस्क लड़कियों को फैक्टरियों में बंधुआ मजदूर के रूप में काम कर अपने परिवार का भरण-पोषण और खुद के लिए दहेज का इंतजाम करना पड़ रहा है. इस मजबूरी का कारण उनके पिताओं की शराब की लत है. इतना ही नहीं, शराबियों के अभद्र व्यवहार की वजह से राज्य में बच्चियों और महिलाओं का शाम के बाद घर से निकलना दूभर हो गया है. जब बिहार में शराबबंदी की चर्चा शुरू हुई थी, बहुत से लोगों ने इससे राज्य के राजस्व को होनेवाले हजारों करोड़ रुपये के नुकसान पर चिंता जतायी थी.
लेकिन, राज्य में शराबबंदी के सुपरिणाम कई रूपों में दिखने लगे हैं. इससे हत्या, छिनतई, मारपीट, महिलाओं और बच्चों के साथ बुरे बरताव जैसे अपराधों में कमी साफ देखी जा रही है. समाज, खासकर महिलाओं, ने जिस उत्साह से इस निर्णय का स्वागत किया है, वह अभूतपूर्व है. ऐसे में इस चर्चा का अन्य राज्यों में विस्तार भविष्य के लिए एक शुभ संकेत है. एक स्वस्थ समाज ही समृद्ध समाज हो सकता है. शराब गरीबी और बीमारी का एक बड़ा कारण है. इस सामाजिक बुराई से होनेवाले नुकसान की तुलना राजस्व से करना अनुचित है.
आम तौर पर हमारे देश में सरकारी फैसलों को राजनीति के चश्मे से देखने का चलन है, लेकिन इस फैसले ने साबित किया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता के साथ उठाये गये कदम ठोस सामाजिक परिवर्तन का आधार बन सकते हैं. कई अन्य राज्यों में उठ रही शराबबंदी की मांग इसी दिशा में संकेत है.
इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि चुनावी वादों को सत्ता में आने के बाद भूल जाने की राजनीतिक संस्कृति के विपरीत नीतीश सरकार ने इस वादे को निभा कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है. इससे प्रेरित होकर शराब के दुष्परिणामों से निबटने के लिए पूरे भारत में बन रहे सामाजिक दबाव पर दुनिया की नजर है. ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि राजनीतिक खींचतान से ऊपर उठ कर विभिन्न संगठन और लोग सब मिल कर इस सामाजिक मुहिम को उत्तरोत्तर गति देंगे, ताकि शराब के शाप से हमारा देश-समाज मुक्त हो सके.

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