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अब लड़के का निरीक्षण!

नीलोत्पल मृणाल साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता भारतीय समाज में समान्यतः शादी के मामले में लड़कियों को ही देखने, परखने, फोटो छांटने आदि की एकतरफा परंपरा रही है. लड़का चाहे जामुनी कलर से क्यों न रंगा हो, पर उसके लिए कश्मीरी सेब जैसे रंग वाली कन्या की ही अपेक्षा की जाती है. शादी तय होने के […]

नीलोत्पल मृणाल
साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता
भारतीय समाज में समान्यतः शादी के मामले में लड़कियों को ही देखने, परखने, फोटो छांटने आदि की एकतरफा परंपरा रही है. लड़का चाहे जामुनी कलर से क्यों न रंगा हो, पर उसके लिए कश्मीरी सेब जैसे रंग वाली कन्या की ही अपेक्षा की जाती है. शादी तय होने के दौरान लड़कियो को न जाने कितनी जांच-परख और मॉक टेस्ट से गुजरना होता है.
हमारे इलाके में तो इस प्रक्रिया को बाकायदा ‘निरीक्षण’ का नाम दिया जाता है, जो केवल लड़की का होता है. लड़के की भाभी चमड़े का रंग जांच करती है, तो लड़के की चाची आंख और नाक की कटिंग. लड़के की मामी गले की आवाज पर कान देती है कि गला कोयल सा है कि कर्कश है. लड़के की फूआ का ध्यान उसकी लंबाई और हाथ-पैर की बनावट पर होता है कि कहीं कुछ टेढ़ा-मेढ़ा तो नहीं. लेकिन इससे इतर अब जमाना बदलने लगा है. अब मामला सही रूप में पलटा है, जब लड़के को भी इसी परीक्षण से गुजरना पड़ने लगा है.
मैंने हाल ही में एक मित्र की शादी के मामले में एक रोचक माजरा देखा. लड़की वाले लड़के को देखने आये थे. लड़का कहीं बाहर था. लड़के को उसके घर से फोन गया, ‘अरे ऊ तुमको देखने आया है लड़की बाला. घर तनी देख के आना. पिछवाड़ी से घुसना अउर तनी नहा धोआ के तबे जाना दुआर पर.’
लड़का बेचारा नर्वस. किसी तरह साइकिल पर बिना चढ़े उसे घुड़काये घर पहुंचा. नहा-धो के फटाक नीला पर काली धारी वाला सर्ट और सफेद पैंट पहने बाहर दुआर पर आया. लड़के को टोपी पहनने की आदत थी. लड़की के पिता ने कहा, ‘आइये बैठिये, टोपी उतार लीजिए, एतना गर्मी में माथा में दरद उठ जायेगा, बाल को हवा-उवा दीजिए.’ लड़का समझ गया कि उसके बाल को लेकर शंका हो रही है. उसने तुरंत टोपी हटा के लहलहाते बाल को दिखा दिया. लड़की का भाई तपाक से उठा और उसने लड़के के बाल पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘अरे रुकिये, देखें कुछ कीड़ा उड़ा बैठा है क्या? वो उड़ गया.
हटा दिये.’ असल में लड़की के भाई ने कंफर्म किया कि बाल कहीं नकली तो नहीं. तभी एक ने कहा, ‘थके हुए लग रहे हैं. चेहरा पर झाईं जइसा पड़ गया है.’ यह सुनते ही लड़के के पिता ने तुरंत मामला भांपते हुए डिफेंस करते हुए कहा, ‘रंगवा इसका एकदम गोरे है, खानदान का सबसे साफ लइका है. ऊ त घाम-बतास में घूम के ऐसा हो गया है.
मेहनत से एतना लगाव है कि भरे दुपहरिया भी निकल जाता है काम में.’ तभी लड़की के मामा ने कलम-कागज लड़के की तरफ बढ़ाया, ‘बाबू तनी एगो अपलीकेशन लीखिये तो, कॉलेज में छुट्टी के लिए पिरिंसिपल साहेब को.’
लड़का कलम लेते कांप गया. लड़के के जीवन की सबसे कठिन लिखित परीक्षा थी. भगवान का शुक्र है कि मित्र सारे परीक्षण से पास होकर आज विवाहित जीवन गुजार रहा है.
यह सब सुनाते हुए मित्र बोले, ‘हम तो एकदम नरभसा गये थे.’ सोचिए एक लड़की को कैसा लगता होगा, जब उसके साथ यही सब होता है? निश्चित रूप से लड़की का बाप एक मजबूर बाप नहीं था, जिसे बस द्वार-द्वार अपनी बेटी का ही परीक्षण कराना था, बल्कि वह आज की आत्मविश्वासी पीढ़ी की लड़की का जिगर वाला बाप था, जो मंडी में लड़का पसंद करने निकला था और अपनी और अपनी बेटी की पसंद-नापसंद के आधार पर लड़का छांट सकता था, मोल-भाव कर सकता था.
एक देहाती-कस्बाई जड़ समाज के लिहाज से यह ठीक-ठाक और रोचक संकेत है, जहां शादी-ब्याह के लिए अब लड़कों को भी कड़ी जांच से गुजरना पड़ने लगा है. हम तो यही कहेंगे कि अब लड़कियों को भी उनके ‘बेस्ट च्वाॅइस’ का हक दीजिए साब…

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